नई दिल्ली: रूस-यूक्रेन के बीच जारी भीषण युद्ध के बीच चीन के विदेश मंत्री वांग यी (Chinese Foreign Minister Wang Yi) ने कहा कि ताइवान, चीन का एक अभिन्न अंग है और अंततः मातृभूमि की बाहों में लौटेगा. उनके इस बयान ने तीसरे विश्व युद्ध (Signs of Third World War) की आहट दे दी है. चीन इसी रूख पर कायम रहा तो संभव है कि दुनिया एक और टकराव की साक्षी बन सकती है.
उन्होंने कहा कि अमेरिका में कुछ ताकतें ताइवान की स्वतंत्रता की वकालत करने वालों को प्रोत्साहित करती हैं, जिससे एक चीन सिद्धांत को चुनौती दी जाती है. वांग ने यह भी कहा कि चीन बढ़ते अमेरिकी दबाव की पृष्ठभूमि के खिलाफ राष्ट्रीय संप्रभुता की दृढ़ता से रक्षा करेगा और इसके लिए हर संभव उपाय करने के लिए तैयार है. फरवरी में चीन ने इसके खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने का फैसला किया.
इससे पहले भी चीन ने ताइवान के हवाई क्षेत्र में घुसपैठ की थी. रिपोर्ट्स के अनुसार कुछ दिन पहले चीन का एक फाइटर जेट ताइवान के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन (ADIZ) में दाखिल हुआ. यह बीते महीने में चीन की तरफ से दूसरी घुसपैठ थी. ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने जानकारी दी कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स (PLAAF) के एक शेनयांग जे-16 (Shenyang J-16) लड़ाकू विमान ने ADIZ के दक्षिण-पश्चिम कोने में उड़ान भरी.
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ताइवान ने अपना एयरक्राफ्ट भेजा और रेडियो वॉर्निंग जारी की. साथ ही एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम को तैनात कर दिया था. पिछले कुछ महीने में आठ चीनी सैन्य विमान आइडेंटिफिकेशन जोन में ट्रैक किए जा चुके हैं, जिसमें तीन लड़ाकू विमान, तीन निगरानी विमान और दो हेलिकॉप्टर शामिल हैं. ADIZ वह क्षेत्र होता है जो देश के हवाई क्षेत्र के बाहर तक फैला होता है. जहां प्रवेश से पहले किसी भी विमान को अपनी जानकारी एयर ट्रैफिक कंट्रोलर्स को देनी होती है.
क्यों है ताइवान को लेकर विवाद
रिपोर्ट्स की मानें तो चीन यह मानता है कि ताइवान उसका एक प्रांत है, जो अंतत: एक दिन फिर से चीन का हिस्सा बन जाएगा. दूसरी ओर, ताइवान खुद को एक आजाद देश मानता है. उसका अपना संविधान है और वहां लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार का शासन है. ताइवान दक्षिण पूर्वी चीन के तट से लगभग 100 मील दूर स्थित एक द्वीप है. यह पहली द्वीप शृंखला में मौजूद है, जिसमें अमेरिका समर्थक कई देश स्थित हैं. अमेरिका की विदेश नीति के लिहाज से ये सभी द्वीप काफी अहम हैं.
चीन का कब्जा होगा तो क्या होगा
अगर चीन, ताइवान पर नियंत्रण कर लेता है तो पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपना दबदबा कायम कर लेगा. उसके बाद गुआम और हवाई द्वीपों पर मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकाने को भी खतरा हो सकता है. हालांकि चीन का दावा है कि उसके इरादे पूरी तरह से शांतिपूर्ण हैं.
क्यों अलग हुआ था ताइवान
चीन व ताइवान के बीच अलगाव दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हुआ. उस समय चीन की मुख्य भूमि में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का वहां की सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) के साथ लड़ाई चल रही थी. 1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई और राजधानी बीजिंग पर कब्जा कर लिया. उसके बाद कुओमिंतांग के लोग मुख्य भूमि से भागकर दक्षिणी-पश्चिमी द्वीप ताइवान चले गए. तभी से अब तक कुओमिंतांग ताइवान की सबसे अहम पार्टी बनी हुई है.
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वर्तमान में दुनिया के केवल 13 देश ताइवान को एक अलग और संप्रभु देश मानते हैं. चीन का दूसरे देशों पर ताइवान को मान्यता न देने के लिए कूटनीतिक दबाव रहता है. चीन की ये भी कोशिश होती है कि दूसरे देश कुछ ऐसा न करे जिससे ताइवान को अलग पहचान मिले. ताइवान के रक्षा मंत्री ने हाल ही में कहा है कि चीन के साथ उसके संबंध पिछले 40 सालों में सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं.