वाराणसी: सनातन वैदिक परंपरा में नवरात्रों का अपना महत्व माना जाता है. नवरात्र कई अलग-अलग रूप में मनाए जाते हैं. जिनमे गुप्त नवरात्र, वासंतिक नवरात्र और शारदीय नवरात्र शामिल होते हैं. हर नवरात्र का अपना विशेष महत्व माना जाता है. वासंतिक नवरात्र सनातन धर्म के हिंदू नव संवत्सर की शुरुआत मानी जाती है. इस नवरात्र को देवी दुर्गा के गौरी रूप से जोड़कर देखा जाता है. माता के नौ अलग-अलग गौरी रूप के पूजन का विधान इस नवरात्र में किया जाता है. लेकिन इन सबके बीच कलश स्थापना से लेकर देवी जागरण और अन्य चीजें बाकी नवरात्र की तरह ही पूर्ण होती हैं. इस वर्ष वासंतिक नवरात्र 22 मार्च से शुरू हो रहा है और इस नवरात्र पर कई ऐसे अद्भुत योग बन रहे हैं, जो बीते कई सालों बाद देखने को मिलेंगे.
इस बारे में ज्योतिषाचार्य आचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री ने बताया कि भारतीय सनातन धर्म में चार नवरात्रि है, जो दो गुप्त नवरात्रि मनाई जाती है और दो नवरात्रि हम सभी लोग जानते हैं. हम जिसमें से चैत्र शुक्ल पक्ष की नवरात्रि से ही भारतीयों संवत्सर और नया वर्ष प्रारंभ होता है. नए वर्ष का नाम नल नाम का संवत्सर रहेगा. इसके राजा बुध और मंत्री शुक्र माने जाते हैं. इस संवत् का प्रारंभ बुधवार के दिन से हो रहा है. इस बार नवरात्रि में तीन सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है. दो अमृत सिद्धि योग बन रहे हैं, दो रवि योग बन रहे हैं और गुरु पुष्य योग के दिन नवरात्रि समाप्त हो रही है. ऐसा योग भारतवर्ष के लिए उत्तम और लाभकारी सिद्ध होगा.
ऐसे तय होता है माता का वाहन
देवी का आगमन किस वाहन पर हो रहा है, यह दिनों के आधार पर तय होता है. सोमवार या रविवार को घट स्थापना होने पर मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं. शनिवार या मंगलवार को नवरात्रि की शुरुआत होने पर देवी का वाहन घोड़ा माना जाता है. गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्र शुरू होने पर देवी डोली में बैठकर आती हैं. बुधवार से नवरात्र शुरू होने पर मां दुर्गा नाव पर सवार होकर आती हैं. इस बार नवरात्र 22 मार्च से शुरू हो रही है. ऐसे में इस बार देवी मां नाव पर सवार होकर आ रही हैं.
इन तथ्यों को देवी भागवत के इस श्लोक में वर्णन किया गया है...
शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे।
गुरौ शुक्रे चदोलायां बुधे नौका प्रकीर्त्तिता ।।
वाहनों का यह होता है शुभ-अशुभ असर
माता दुर्गा जिस वाहन से पृथ्वी पर आती हैं, उसके अनुसार साल भर होने वाली घटनाओं का भी अनुमान किया जाता है. इनमें कुछ वाहन शुभ फल देने वाले और कुछ अशुभ फल देने वाले होते हैं. देवी जब हाथी पर सवार होकर आती हैं तो पानी ज्यादा बरसता है. घोड़े पर आती हैं तो युद्ध की आशंका बढ़ जाती है. देवी नौका पर आती हैं तो सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और डोली पर आती हैं तो महामारी का भय बना रहता हैं. इसका भी वर्णन देवी भागवत में किया गया है.
गजे च जलदा देवी क्षत्र भंग स्तुरंगमे.
नोकायां सर्वसिद्धि स्या ढोलायां मरणंधुवम्
इस बार चैत्र नवरात्रि में अष्टमी व्रत 29 तारीख को मान्य है. जबकि महानवमी व्रतों 30 तारीख को मनाया जाएगा. नवरात्रि व्रत का पारण 31 तारीख को प्रातः काल होगा. नवरात्रि के दौरान तीन सर्वार्थ बार सिद्धि योग 23 मार्च, 27 मार्च, 30 मार्च को लगेगा. वहीं, अमृत सिद्धि योग 27 और 30 मार्च को लगेगा. रवि योग 24 मार्च, 26 मार्च और 29 मार्च को लगेगा.
नवरात्रि में कलश स्थापना का समय
प्रातः काल मेष लग्न में 8:45 बजे के बाद 10.41 तक का अच्छा संयोग है.
इसके बाद 12:06 से 12:54 तक का अभिजीत मुहूर्त में बढ़िया मुहूर्त है.
मीन लग्न सुबह 6.50 से 7.10 बजे तक है, जो सर्वोत्तम मुहूर्त है.
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