नई दिल्ली : अमेरिकी कंपनियां 'बर्मा सागौन' का अवैध तरीके से आयात कर अप्रत्यक्ष तरीके से म्यांमार के सैन्य शासकों की आर्थिक मदद कर रही हैं. दूसरी तरफ अमेरिका प्रजातंत्र के नाम पर पूरी दुनिया के सामने सैन्य प्रशासन की आलोचना करता है. बर्मा में प्रजातंत्र को पुनर्स्थापित करने की मुहिम चला रही संस्था 'जस्टिस फॉर म्यांमार' ने अमेरिकी कंपनियों पर ये सनसनीखेज आरोप लगाए हैं.
इस संस्था पर म्यांमार के जुंटा सैन्य प्रशासन ने प्रतिबंध लगा रखे हैं. संस्था का आरोप है कि अमेरिका ने प्रतिबंध के नाम पर टिंबर व्यापार पर रोक लगा दी है. लेकिन म्यांमार द्वारा लकड़ी के व्यापार को जारी रखना सैन्य जुंटा प्रशासन की अवैध गतिविधियों को बढा़ने जैसा है. जुंटा शासन बच्चों की हत्या में शामिल है तथा कई तरह के अपराध में उनकी संलिप्तता है. इसलिए हमारी संस्था अमेरिकी सरकार से अपील करती है कि वे म्यांमार से लकड़की का आयात रोकें, ताकि सैन्य शासन को आर्थिक मदद न मिले.
एक फरवरी से 30 नवंबर 2021 के बीच अमेरिकी कंपनियों ने 1600 टन से अधिक कीमती टीक की लकड़ियों को आयात किया है. 82 अलग-अलग शिपमेंट के जरिए इन्हें भेजा गया है. ऐसा लगता है कि अमेरिकी याट बिजनेस की मांग कभी खत्म नहीं होने वाली है. 2019 में पर्यावरण जांच एजेंसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका के अरबपति याट बिजनेस मैन म्यांमार टीक के प्रति हद से अधिक मोह रखते हैं.
पिछले साल एक फरवरी को सैन्य तख्तापलट के बाद से अमेरिकी विभाग ट्रेजरी ऑफिस ऑफ फॉरेन असेट कंट्रोल ने राज्य के स्वामित्व वाली म्यांमार टिम्बर एंटरप्राइजेज (एमटीई) पर प्रतिबंध लगाए थे. एमटीई यहां की एकल कंपनी है, जो निर्यात के लिए निजी कंपनियों को लॉग नीलाम करके म्यांमार में लकड़ी की बिक्री का प्रबंधन करता है. तमाडॉ एमटीई के लकड़ी निर्यात राजस्व का एक बड़ा हिस्सा अपने पास रखता है. लेकिन अमेरिकी आयात के रिकॉर्ड में अमेरिकी कंपनियां एमटीई से लिंक को नहीं दर्शाते हैं. वे इसे अप्रत्यक्ष रखते हुए बिचौलियों के माध्यम से व्यापार करके प्रतिबंधों को टालती हैं और संभावित अवैध आयातों को अमेरिकी अधिकारियों के रडार से गुजरने देती हैं.
एक फरवरी 2021 से म्यांमार में सैन्य शासन है. उन्होंने एक दशक से चले आ रहे प्रजातांत्रिक शासन को खत्म कर दिया. तब से अब तक 1400 से अधिक लोग मारे गए हैं. 10 हजार से अधिक लोग जेल में बंद हैं. देश में गृह युद्ध जैसी स्थिति है. कई स्थानीय और जनजातीय संस्थाओं ने युद्ध छेड़ रखी है.
आपको बता दें कि बर्मा टीक सैगांग, काचिन और शान इलाके में प्राकृतिक रूप में विकसित होता है. पूरी दुनिया में जहां भी टीक होता है, यहां की क्वालिटी सबसे अच्छी होती है. अत्यधिक दोहन की वजह से अब यह खत्म होने की कगार पर आ गया है.
1990 के दशक में, बर्मा ने 43 लाख हेक्टेयर जंगल खो दिया था. 2010-15 के बीच 546,000 हेक्टेयर वन हानि की सूचना दी गई. यह दुनिया भर में हानि होने की तीसरी सबसे बड़ी दर है. संयुक्त रूप से, 1990 के बाद से म्यांमार ने अपने वनों का लगभग 20 प्रतिशत खो दिया है, जिससे वन आवरण लगभग 290,000 वर्ग किमी, या 45 प्रतिशत तक कम हो गया है.
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