नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात सांप्रदायिक दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के लिए उम्रकैद की सजा पाए 11 दोषियों को सजा में छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले को सोमवार को रद्द कर दिया. ताजा जानकारी के मुताबिक सभी दोषियों को 2 सप्ताह के भीतर सरेंडर करना होगा.
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Bilkis Bano case | Supreme Court holds that the State, where an offender is tried and sentenced, is competent to decide the remission plea of convicts. Supreme Court holds that the State of Gujarat was not competent to pass the remission orders of the convicts but the Maharashtra… pic.twitter.com/290cpclC5y
— ANI (@ANI) January 8, 2024 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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न्यायमूर्ति बी वी नवरत्न और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने 2002 में गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार और परिवार के सदस्यों की हत्या के 11 दोषियों को दी गई समयपूर्व रिहाई की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया. पिछले साल अक्टूबर में शीर्ष अदालत ने विभिन्न याचिकाकर्ताओं की ओर पे पेश दलीलों को सुनने के बाद मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि गुजरात सरकार छूट आदेश पारित करने में सक्षम नहीं है. शीर्ष अदालत ने केवल इसी आधार पर कहा कि गुजरात सरकार में क्षमता की कमी है, इसलिए रिट याचिकाएं स्वीकार की जानी चाहिए और आदेशों को अमान्य घोषित किया जाना चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि गुजरात नहीं बल्कि महाराष्ट्र सरकार आदेश पारित करने में सक्षम है.
गुजरात सरकार ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि उसने मई 2022 में शीर्ष अदालत की एक अन्य पीठ द्वारा पारित फैसले के आधार पर और 15 साल जेल में बिताने के बाद छूट दी थी. गुजरात सरकार द्वारा दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देने वाली बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका के अलावा, सीपीआई (एम) नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य जनहित याचिकाओं को चुनौती दी गई है. टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी दोषियों को सजा में छूट के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है.
बता दें कि इससे पहले सुनवाई के दौरान दोषियों ने दलील दी थी कि उन्हें शीघ्र रिहाई देने वाले माफी आदेशों में न्यायिक आदेश का सार होता है और इसे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर करके चुनौती नहीं दी जा सकती है. दूसरी ओर एक जनहित याचिका वादी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने दलील दी थी कि छूट के आदेश 'कानून की दृष्टि से खराब' है और 2002 के दंगों के दौरान बानो के खिलाफ किया गया अपराध धर्म के आधार पर किया गया 'मानवता के खिलाफ अपराध' था.
जयसिंह ने कहा था कि शीर्ष अदालत के फैसले में देश की अंतरात्मा की आवाज झलकेगी. साथ ही, याचिकाकर्ता पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बताया था कि दोषियों ने उन पर लगाए गए जुर्माने का भुगतान नहीं किया है और जुर्माना न चुकाने से छूट का आदेश अवैध हो जाता है. जब मामले में अंतिम सुनवाई चल रही थी, तो दोषियों ने मुंबई में ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और विवाद को कम करने के लिए उन पर लगाया गया जुर्माना जमा कर दिया. शीर्ष अदालत ने इसपर सवाल उठाया था. इसने दोषियों से पूछा था,'आप अनुमति मांगते हैं और फिर अनुमति प्राप्त किए बिना जमा कर देते हैं?'