मुंबई : कोरोना महामारी से त्रस्त आर्थिक गतिविधियों के बीच एक और चिंताजनक आंकड़ा सामने आया है. एक अनुमान के मुताबिक भारत एशिया महाद्वीप में चीन के बाद सबसे अधिक कर्ज वाला देश बन जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि राजकोषीय घाटा बढ़ने की आशंका हैं. इसी के साथ सरकार का सकल कर्ज, जो कि काफी लंबे समय तक जीडीपी के 70 प्रतिशत तक रहा है इस साल 80 प्रतिशत से ऊपर निकल कर 75.6 लाख करोड़ रुपए यानी 1,010 अरब डालर तक पहुंच सकता है.
टूटेगा पिछले 5 साल का रिकॉर्ड !
सिंगापुर के बैंक डीबीएस की अर्थशास्त्री राधिका राव ने शुक्रवार को जारी एक नोट में यह अनुमान व्यक्त किए हैं. इसमें कहा गया है कि वित्त वर्ष 2019-20 में केंद्र और राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा 7 प्रतिशत से ऊपर रहा है. इससे पहले पिछले पांच साल के दौरान यह औसतन 6.6 प्रतिशत पर रहा. केंद्र सरकार ने 2015-16 से लेकर 2018-19 तक लगातार चार साल राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4 प्रतिशत से नीचे रखने में सफलता पाई, लेकिन इसके बाद 2019-20 में राजस्व प्राप्ति कम रहने और अधिक व्यय के चलते 4.6 प्रतिशत तक पहुंच गया.
चालू वित्त वर्ष में और बढ़ जाएगा यह घाटा
राधिका राव ने कहा कि महामारी के कारण अर्थव्यवस्था पर बने दबाव से चालू वित्त वर्ष के दौरान केंद्र और राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा बढ़कर 13 प्रतिशत पर पहुंच सकता है. उन्होंने कहा कि सरकार का कर्ज पिछले तीन साल के दौरान उससे पहले के ऊंचे स्तर से गिरता हुआ औसतन 70 प्रतिशत के आसपास रह गया था, लेकिन उसके बाद महामारी की वजह से आर्थिक गतिविधियों को लगे झटके और जरूरतों को पूरा करने के लिए बढ़ी उधारी से कर्ज का स्तर इस साल 80 प्रतिशत से आगे निकल जाने का अनुमान है.
पढ़ें: 15वें वित्त आयोग ने रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया, 9 नवंबर को राष्ट्रपति को सौंपेगा रिपोर्ट
5 राज्यों ने सभी राज्यों द्वारा प्रतिभूतियों के मुकाबले जारी की बकाया राशि
रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 2020 के अंत में (बॉण्ड और टी-बिलों सहित) सहित केन्द्र सरकार की प्रतिभूतियों की राशि 75.6 लाख करोड़ रुपए यानी 1,010 अरब डालर थी. वहीं, इस दौरान राज्यों का बकाया जिसे राज्य विकास कर्ज कहा जाता है, 34 लाख करोड़ रुपए यानी 459 अरब डालर पर था. यह राशि सरकारी प्रतिभूतियों के बकाया का करीब आधी है. राज्यों में वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान सबसे ज्यादा प्रतिभूतियां जारी करने वाले राज्यों में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश शामिल हैं. इन 5 राज्यों ने सभी राज्यों द्वारा जारी प्रतिभूतियों के मुकाबले आधे से अधिक जारी की हैं. वहीं शीर्ष 10 राज्यों ने कुल राशि का 75 प्रतिशत तक बाजार से जुटाया है.