नई दिल्ली : सचिन पायलट का मसला भी भाजपा के लिए महाराष्ट्र की तरह अजीत पवार पार्ट-2 ही साबित हुआ. जिस तरह से महाराष्ट्र में एक चुनी हुई सरकार को गिराने का कलंक बीजेपी के सर पर लगा, ठीक उसी तरह सचिन पायलट के कांग्रेस से नजदीकी बढ़ते ही कांग्रेस और बाकी विरोधी पार्टियों ने भाजपा पर सरकार गिराने वाली पार्टी का आरोप लगाना शुरू कर दिया.
इन सबके बीच राजस्थान में भाजपा सरकार नहीं बन पाने की बड़ी वजह मात्र कांग्रेस के अंदर खत्म हुआ का घमासान ही नहीं है. इसके अलावा सूत्रों की मानें तो बीजेपी भी अंदरूनी कलह से संघर्ष कर रही है. वसुंधरा फैक्टर भी काम करता नजर आया, लेकिन इन तीन राज्यों- मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और अब राजस्थान में बीजेपी की तरफ से किए गए प्रयासों से कहीं ना कहीं जनता के मन में एक खटास सी जरूर उत्पन्न हुई है. खुद बीजेपी के शीर्ष नेता खासा चिंतित नज़र आ रहे हैं. हालांकि, देखा जाए तो महाराष्ट्र की तरह राजस्थान में बीजेपी के लिए सत्ता का सपना देखना इतना आसान नहीं था. ऐसा इसलिए क्योंकि वहां कांग्रेस और बीजेपी के विधायकों के बीच सीटों की संख्या में काफी नजदीकी अंतर है.
भाजपा के नाकाम कोशिशों पर पूछे जाने पर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुदेश वर्मा का कहना है कि यह कांग्रेस का अंदरूनी मामला है और भाजपा को इससे कोई लेना-देना नहीं. उन्होंने कहा कि राजस्थान में जो भी कुछ हो रहा है इसमें बीजेपी को खींचना न्याय संगत नहीं है.
वर्मा ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने राजस्थान की खींचतान को लेकर एक कमेटी बनाई है. इससे पता चलता है कि कांग्रेस पार्टी में अंदरूनी समस्याएं हैं. उन्होंने कहा, बीजेपी का काम दूसरों की पार्टी में चल रही समस्याओं के बारे में बताना नहीं है. जब हमारा समय आएगा तो हम अपना काम करेंगे.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस में अंदरूनी कलह का अगर समाधान होता है तो ठीक है, लेकिन अग आगे भी ऐसा ही चलता रहा तो समय आने पर बीजेपी देखेगी कि उसे क्या करना है. सुदेश वर्मा ने कहा, 'आपने विधायकों को क्वारंटाइन किए जाने का तमाशा खड़ा किया. यह सब करने की जरूरत क्या थी ? क्या आपको अपने पार्टी पर भरोसा नहीं था ? उन्होंने कहा कि तमाम ऐसे प्रयोग किए गए जो किसी अच्छी पार्टी के लक्षण नहीं हैं.
बीजेपी सचिन पायलट के माध्यम से जितने विधायकों की उम्मीद लगाए बैठी थी उतने लोगों का समर्थन जुटाना खुद सचिन पायलट के लिए भी आसान नहीं था. कांग्रेस और बाकी पार्टियों ने बीजेपी पर पैसे के बल पर राजस्थान की गहलोत सरकार को गिराने के आरोप लगाए. लोगों ने राजस्थान में पैसे भेजे जाने का खुलकर आरोप लगाया है. आरोप लगाने वालों का कहना है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश की तरह भाजपा ने राजस्थान में 500 करोड रुपए दिए हैं.
शुरुआती दौर में बीजेपी ने उम्मीद जताई कि शायद राजस्थान की सत्ता भी कर्नाटक और मध्य प्रदेश के बाद उनके हाथ में आ जाएगी. हालांकि, तुरुप के पत्ते की तरह वसुंधरा राजे सिंधिया और वसुंधरा वर्सेस केंद्रीय भाजपा के बीच की राजनीति के बीच तालमेल नहीं बैठा पाना बीजेपी की असफलता के मुख्य वजह बने.
नाम ना लेने की शर्त पर बीजेपी की राजस्थान इकाई के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि इस पूरे मामले में वसुंधरा राजे सिंधिया ने भाजपा के लिए एक विरोधी पार्टी की तरह भूमिका निभाई है. वसुंधरा को लेकर बीजेपी नेता का कहना है कि कहीं ना कहीं आगे उन्होंने बढ़-चढ़कर कांग्रेस को अपने एमएलए जुटाने में मदद की.
इस भाजपा नेता का दावा है कि उन्होंने वसुंधरा से जुड़े सबूत भाजपा के शीर्ष नेताओं को दिए हैं और पिछले 3 दिनों से वसुंधरा राजे सिंधिया दिल्ली में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से मिलकर इसी मसले पर अपनी सफाई पेश कर रही थीं. हालांकि, देखा जाए तो राजस्थान का मसला शुरू होने के बाद से ही वसुंधरा राजे सिंधिया ने पूरी तरह से चुप्पी साध ली थी, लेकिन मीडिया में इस चुप्पी को लेकर अटकलों का दौर जारी रहा.
बाद में वसुंधरा ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए अपने ऊपर लगे तमाम आरोपों को निराधार करार दिया था. हालांकि, तब तक शीर्ष नेताओं तक बीजेपी के स्थानीय नेता कई बातें पहुंचा चुके थे. भाजपा नेता- ओम माथुर, पीपी चौधरी और गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे दिग्गज राजस्थान के मामले में वसुंधरा की वजह से राजस्थान में हमेशा हाशिए पर रहे. कहा जा रहा है कि वरिष्ठ नेताओं ने इस बात के लिए पूरा जोर लगा दिया था कि सचिन पायलट भाजपा में वसुंधरा के विकल्प के रूप में शामिल हो जाएं, लेकिन उनकी तमाम कोशिशें सचिन की वापसी के साथ ही नाकाम हो गईं.
अंदरखाने से मिली सूचनाओं के मुताबिक भाजपा के शीर्ष नेताओं ने राजस्थान के मसले को ठीक तरह से नहीं संभाल पाने को लेकर इन नेताओं की क्लास भी ली है. हालांकि, फिलहाल भाजपा के लिए अपने इमेज बिल्डिंग के अलावा राजस्थान में फिलहाल कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा.