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कोविड जनित आर्थिक मंदी उचित मजदूरी न देने का आधार नहीं : सुप्रीम कोर्ट - sc sets aside guj

गुजरात सरकार ने श्रमिकों को ओवरटाइम मजदूरी का भुगतान करने से छूट देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिक दायर की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. एस सी का कहना है कि आर्थिक मंदी का बोझ अकेले उन श्रमिकों पर नहीं डाला जा सकता है, जो आर्थिक गतिविधियों की रीढ़ हैं.

Supreme court
सुप्रीम कोर्ट
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Published : Oct 1, 2020, 2:36 PM IST

नई दिल्ली : गुजरात सरकार द्वारा कारखानों में श्रमिकों को ओवरटाइम मजदूरी का भुगतान करने से छूट देने वाली अधिसूचना को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि आर्थिक मंदी का बोझ अकेले उन श्रमिकों पर नहीं डाला जा सकता है, जो आर्थिक गतिविधियों की रीढ़ हैं. न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट फैक्ट्रियों में चल रही आर्थिक तंगी, कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के कारण होने वाली कठिनाइयों से अवगत है. हालांकि, इस आर्थिक मंदी का बोझ श्रमिकों पर नहीं डाल सकते हैं और महामारी ऐसा कारण नहीं बन सकता जो श्रमिकों को गरिमा प्रदान करने वाले वैधानिक प्रावधानों और उचित मजदूरी के अधिकार को खत्म कर सके.

सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया कि गुजरात सरकार द्वारा श्रमिकों के वैधानिक अधिकारों को दूर नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि महामारी देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाला आंतरिक आपातकाल नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट का आदेश गुजरात श्रम और रोजगार विभाग की एक अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर आया है. अधिसूचना में गुजरात के सभी कारखानों को फैक्ट्रीज एक्ट, 1948 के प्रावधानों से छूट दे दी गई है, जिसमें प्रतिदिन कामकाज के घंटे, साप्ताहिक कामकाजी घंटे, आराम के लिए अंतराल, वयस्क श्रमिकों का प्रसार और यहां तक कि अधिनियम की धारा 59 के तहत तय की गई दर से ओवरटाइम मजदूरी का भुगतान करने से भी छूट दी गई है.

याचिका में दलील दी गई कि 17 अप्रैल की जारी अधिसूचना विभिन्न मौलिक अधिकारों, वैधानिक अधिकारों और श्रम कानूनों के अनुसार अवैध, हिंसक और अस्वाभाविक रूप से अन्यायपूर्ण है.

अधिवक्ता अपर्णा भट के माध्यम से पंजीकृत व्यापार संघ गुजरात मजदूर सभा और अन्य द्वारा याचिका दायर की गई.

याचिका में दलील दी गई कि अधिसूचना में अधिनियम के प्रावधानों से 20 अप्रैल से 19 जुलाई, 2020 तक की छूट दी गई.

न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और के.एम. जोसेफ की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए याचिका पर सुनवाई के बाद नोटिस जारी किया.

याचिका में कहा गया कि अधिसूचना के मुताबिक, 20 अप्रैल से 19 जुलाई, 2020 तक की अवधि के लिए गुजरात में श्रमिकों को एक दिन में 12 घंटे, सप्ताह में 72 घंटों में छह घंटे के बाद 30 मिनट के ब्रेक के साथ काम करना होगा. वहीं फैक्ट्रीज एक्ट, 1948, श्रमिकों को सिर्फ एक दिन में नौ घंटे काम करने की सुविधा प्रदान करने, सप्ताह में 48 घंटे काम के साथ सप्ताह में एक दिन की छुट्टी और पांच घंटे के बाद 30 मिनट का ब्रेक ले सकते हैं. अधिसूचना में आगे कहा गया है कि किसी भी महिला श्रमिक को शाम 7 बजे से सुबह 6 बजे की अवधि में काम करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

पढ़ें - आंध्र सरकार के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा शिक्षाविदों का समूह

याचिका में कहा गया है, अधिसूचना में सबसे ज्यादा परेशान करने वाली वाली बात यह है कि प्रति दिन काम किए गए अतिरिक्त चार घंटे के लिए डबल रेट पर कोई ओवरटाइम का भुगतान नहीं किया जाएगा, बल्कि यह कि ओवरटाइम के काम की भरपाई सामान्य घंटे की दर से की जाएगी.

नई दिल्ली : गुजरात सरकार द्वारा कारखानों में श्रमिकों को ओवरटाइम मजदूरी का भुगतान करने से छूट देने वाली अधिसूचना को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि आर्थिक मंदी का बोझ अकेले उन श्रमिकों पर नहीं डाला जा सकता है, जो आर्थिक गतिविधियों की रीढ़ हैं. न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट फैक्ट्रियों में चल रही आर्थिक तंगी, कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के कारण होने वाली कठिनाइयों से अवगत है. हालांकि, इस आर्थिक मंदी का बोझ श्रमिकों पर नहीं डाल सकते हैं और महामारी ऐसा कारण नहीं बन सकता जो श्रमिकों को गरिमा प्रदान करने वाले वैधानिक प्रावधानों और उचित मजदूरी के अधिकार को खत्म कर सके.

सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया कि गुजरात सरकार द्वारा श्रमिकों के वैधानिक अधिकारों को दूर नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि महामारी देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाला आंतरिक आपातकाल नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट का आदेश गुजरात श्रम और रोजगार विभाग की एक अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर आया है. अधिसूचना में गुजरात के सभी कारखानों को फैक्ट्रीज एक्ट, 1948 के प्रावधानों से छूट दे दी गई है, जिसमें प्रतिदिन कामकाज के घंटे, साप्ताहिक कामकाजी घंटे, आराम के लिए अंतराल, वयस्क श्रमिकों का प्रसार और यहां तक कि अधिनियम की धारा 59 के तहत तय की गई दर से ओवरटाइम मजदूरी का भुगतान करने से भी छूट दी गई है.

याचिका में दलील दी गई कि 17 अप्रैल की जारी अधिसूचना विभिन्न मौलिक अधिकारों, वैधानिक अधिकारों और श्रम कानूनों के अनुसार अवैध, हिंसक और अस्वाभाविक रूप से अन्यायपूर्ण है.

अधिवक्ता अपर्णा भट के माध्यम से पंजीकृत व्यापार संघ गुजरात मजदूर सभा और अन्य द्वारा याचिका दायर की गई.

याचिका में दलील दी गई कि अधिसूचना में अधिनियम के प्रावधानों से 20 अप्रैल से 19 जुलाई, 2020 तक की छूट दी गई.

न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और के.एम. जोसेफ की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए याचिका पर सुनवाई के बाद नोटिस जारी किया.

याचिका में कहा गया कि अधिसूचना के मुताबिक, 20 अप्रैल से 19 जुलाई, 2020 तक की अवधि के लिए गुजरात में श्रमिकों को एक दिन में 12 घंटे, सप्ताह में 72 घंटों में छह घंटे के बाद 30 मिनट के ब्रेक के साथ काम करना होगा. वहीं फैक्ट्रीज एक्ट, 1948, श्रमिकों को सिर्फ एक दिन में नौ घंटे काम करने की सुविधा प्रदान करने, सप्ताह में 48 घंटे काम के साथ सप्ताह में एक दिन की छुट्टी और पांच घंटे के बाद 30 मिनट का ब्रेक ले सकते हैं. अधिसूचना में आगे कहा गया है कि किसी भी महिला श्रमिक को शाम 7 बजे से सुबह 6 बजे की अवधि में काम करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

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याचिका में कहा गया है, अधिसूचना में सबसे ज्यादा परेशान करने वाली वाली बात यह है कि प्रति दिन काम किए गए अतिरिक्त चार घंटे के लिए डबल रेट पर कोई ओवरटाइम का भुगतान नहीं किया जाएगा, बल्कि यह कि ओवरटाइम के काम की भरपाई सामान्य घंटे की दर से की जाएगी.

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