भुवनेश्वर : खइरी ओ.. प्यारी खइरी जल्द आओ.. यह शब्द हैं एक मां के.. लेकिन उसकी बेटी के लिए नहीं, बल्कि उस बाघिन के लिए, जिसे उसने अपनी बेटी जैसा ही पाला.
बात 1974 की है, जब निहार नलिनी के पति सरोज रॉय चौधरी सिमिलिपाल टाइगर प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे. नलिनी अपने पति के साथ खइरा नदी के तट पर यूं ही टहल रही थीं कि अचानक बाघ का नन्हा शावक वहां आ पहुंचा. नलिनी को यह मादा शावक इतनी पसंद आई कि उसने उसे अपने पास रख लिया. बाघिन खइरा नदी के पास मिली थी, जिस वजह से उसे खइरी नाम दे दिया.
बाघ का नाम सुनते ही जहां लोगों में डर भर जाता है, वहीं जंगली जानवर के क्रूर स्वभाव ने मां के प्यार और स्नेह के आगे हार मान ली थी.
जब भी नलिनी उसे खइरी.. ओ खइरी कहकर पुकारती, तो बाघिन दौड़ते हुए उसके पास चली आती.
कहते हैं समय किसी का इंतजार नहीं करता. यह 1981 था, जब खइरी ने हमेशा के लिए अपनी आंखें बंद कर लीं. निहार नलिनी उसकी मौत से बुरी तरह टूट गईं. नलिनी की कोई औलाद नहीं थी, लेकिन उसने खइरी को अपने बच्चे से कम प्यार भी नहीं दिया. ऐसे में खइरी का जाना उसे ऐसा लगा, मानो उसकी जिंदगी पूरी तरह से बर्बाद हो गई हो.
आज निहार नलिनी 92 वर्ष की हो चुकी हैं और ओल्ड एज होम में रह रही हैं. इस उम्र में नलिनी सब भूल चुकी हैं, सिवाय खइरी के, जिसके बिना उनका एक पल न गुजरता था.
आज भी वह हकलाते स्वर में खइरी के बारे में बातें करती हैं और अविस्मरणीय यादों के बारे में सोचते हुए लड़खड़ाती जुबान में खइरी के बारे में कहती हैं. खइरी के बारे में बात करते हुए नलिनी की आंखों में आंसू आ जाते हैं.
इस उम्र में खइरी से जुड़ी हर एक याद का ताजा होना एक मां और उसके प्यार को दिखाता है.