नई दिल्ली : सावन के महीने में भगवान शंकर की पूजा का खास महत्व है. इस साल सावन का महीना 4 जुलाई से शुरू हो गया है और लगभग 2 माह तक चलेगा. सावन के शुरू होते ही शिवालयों व धार्मिक आस्था के केन्द्रों पर चहल-पहल बढ़ जाया करती है. सावन के महीने में भोले शंकर की पूजा के लिए सर्वाधिक उपयोगी आवश्यक सामग्री में बेलपत्र गिना जाता है. भोले बाबा की पूजा में बेलपत्र का खास महत्व होता है और इसके बिना शिव की पूजा अधूरी मानी जाती है.
![Belpatra and Jalabhishek importance in Sawan](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/07-07-2023/18930169_belpatra-and-jalabhishek1.jpg)
क्यों आवश्यक है बेलपत्र
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि बेल के पेड़ में साक्षात् भोलेनाथ विराजमान होते हैं. बेल के पेड़ के फल, फूल और पत्ते भोले बाबा को बेहद प्रिय होते हैं. इस बेलपत्र को चढ़ाने की परंपरा को लेकर एक कथा प्रचलित है, जिसके कारण शिव की पूजा में इसका महत्व बढ़ गया.
समुद्र मंथन का विष व बेलपत्र
ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन सावन के महीने में ही किया गया था. समुद्र मंथन के बाद जो विष निकला तो भगवान भोलेनाथ ने पूरी सृष्टि को बचाने की मंशा से हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर लिया. कहा जाता है की हलाहल विष के प्रभाव से उनका कंठ नीले रंग का हो गया. इसके साथ-साथ भोलेनाथ का पूरा शरीर इससे प्रभाव से गरम होने लगा. तभी बेलपत्र का उपयोग किया गया, क्योंकि बेलपत्र विष के प्रभाव को कम कर देता है.
![Belpatra and Jalabhishek importance in Sawan](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/07-07-2023/18930169_belpatra-and-jalabhishek.jpg)
इस बात की जानकारी होते ही मौके पर मौजूद सभी देवी देवताओं ने भोलेनाथ को बेलपत्र का सेवन कराना शुरू कर दिया. भगवान नीलकंठ के बेलपत्र खाने का असर दिखायी देने लगा और उनके शरीर से विष का असर कम होने लगा. बेलपत्र के अलावा भोले नाथ को शीतल रखने के लिए उन पर जलाभिषेक शुरू किया गया, जिससे बेलपत्र व जलाभिषेक की परंपरा शुरू हो गयी.