अयोध्या: सरयू नदी के किनारे बसी धर्म नगरी अयोध्या में इन दिनों सनातन धर्मियों की आस्था का केंद्र भगवान श्री राम का भव्य मंदिर निर्माण चल रहा है. 5 अगस्त 2020 को जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम जन्मभूमि परिसर में राम मंदिर का निर्माण कार्य भूमि पूजन कर शुरू कराया तब से लेकर अगले 2 वर्षों में मंदिर निर्माण का कार्य 40 फ़ीसदी पूरा हो चुका है. राम मंदिर निर्माण के दो वर्ष आज से पूरे हो चुके हैं.चलिए जानते हैं राम मंदिर से जुड़े कुछ अहम जानकारियों के बारे में.
सन् 1528 में तोड़ा गया था मंदिर
अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मस्जिद निर्माण के बारे में जो जानकारी सामने आई है उसमें इतिहासकारों के मुताबिक जहीर उद-दीन मोहम्मद बाबर पानीपत के पहले युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर भारत आया था.उसके कहने पर एक सूबेदार मीर बाकी ने 1528 में अयोध्या में मस्जिद बनाई. इसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया.मस्जिद निर्माण के लगभग 300 वर्षों बाद हिंदू संगठनों ने 1813 में पहली बार बाबरी मस्जिद पर दावा किया था. उनका दावा था कि अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी.इसके 72 साल बाद यह मामला पहली बार किसी अदालत में पहुंचा.महंत रघुबर दास ने 1885 में राम चबूतरे को लेकर याचिका लगाई थी, जिसे फैजाबाद की जिला अदालत ने ठुकरा दिया था. 134 साल से तीन अदालतों में इस विवाद से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.
इस घटना के 1 साल बाद हिंदू महासभा के वकील गोपाल विचारक ने फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी दाखिल कर रामलला की प्रतिमाओं की पूजा का अधिकार मांगा. अगली कड़ी में सन 1959 में निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर एक और मुकदमा दाखिल किया. सन 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित परिसर में प्रतिमा स्थापित किए जाने के खिलाफ कोर्ट में अर्जी लगाई और मस्जिद के साथ-साथ आसपास की जमीनों पर भी अपना हक जताया.
सन् 1986 का एक दौर ऐसा भी आया जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रयास से फैजाबाद कोर्ट ने बाबरी मस्जिद का ताला खोलने का आदेश जारी कर दिया. सन् 1987 को यह पूरा मामला फैजाबाद जिला अदालत से इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया. कानूनी लड़ाई के बीच 6 दिसंबर सन 1992 का वह दिन भी आया जब पूरा देश दंगे की आग में जल उठा. अयोध्या में हिंदूवादी संगठनों ने गोली और लाठी की परवाह किए बिना विवादित ढांचे को जमींदोज कर दिया और ढांचे का मलबा तक उठा ले गए.
सन् 1949 से सक्रिय रुप से राम मंदिर पर अपना अधिकार जताने की जो कानूनी लड़ाई शुरू हुई वह साल दर साल जारी रही. इस दौरान इस मुकदमे में कई और हिंदू और मुस्लिम पक्षकार जुड़े जिन्होंने विवादित स्थल पर अपना दावा पेश किया. सन् 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद यह पूरा मामला और ज्यादा हाई प्रोफाइल हो गया. साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश जारी किया लेकिन इस फैसले से मुस्लिम पक्ष संतुष्ट नहीं हुआ और उसने सुप्रीम कोर्ट जाने का ऐलान कर दिया.साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी और एक बार फिर से पूरे मामले की सुनवाई का दौर चल पड़ा. इस बीच साल 2017 का एक ऐसा वक्त भी आया जब सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया लेकिन बात नहीं बनी. 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की मध्यस्थता के लिए एक पैनल भेजा और 8 सप्ताह के अंदर पूरी कार्रवाई खत्म करने के निर्देश दिए. 1 अगस्त 2019 को मध्यस्थता पैनल ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट के सामने पेश कर दी. 2 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले का समाधान निकालने में विफल रहा है जिसके बाद 6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हो गयी.सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ रोजाना इस मामले की सुनवाई कर रही थी.
16 अक्टूबर 2019 को अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी हो गई और फैसला सुरक्षित कर लिया गया जिसके बाद 9 नवंबर 2019 का वह ऐतिहासिक दिन भी आया जब लगभग 400 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद राम भक्तों को इंसाफ मिला और चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए पूरी भूमि पर रामलला विराजमान का अधिकार मानते हुए पूरी जमीन रामलला विराजमान को सौंप दी जबकि मस्जिद के लिए अयोध्या से कुछ दूरी पर जमीन देने के निर्देश दिए.
राम मंदिर मामले पर सुप्रीम कोर्ट का सुप्रीम फैसला आने के बाद कोर्ट के निर्देशानुसार मंदिर के निर्माण के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया गया जिसमें देश के प्रमुख संतों व धर्माचार्यों को स्थान दिया गया. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के नाम से मंदिर निर्माण के लिए इस ट्रस्ट का गठन किया गया.ट्रस्ट के आह्वान पर सुप्रीम कोर्ट के सुप्रीम फैसले के आने के करीब 9 महीने बाद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धूमधाम के साथ अयोध्या पहुंचकर राम जन्मभूमि परिसर में भूमि पूजन कर राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखी जिसके बाद मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ.
5 अगस्त 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा मंदिर निर्माण की नींव रखे जाने के बाद अब तक लगभग 40 प्रतिशत निर्माण कार्य पूरा हो चुका है. मंदिर की फाउंडेशन तो तैयार किए जाने के बाद 21 फुट ऊंचे फर्श को भी तैयार कर लिया गया है. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय की माने तो गर्भगृह स्थल पर नक्काशी किये गए राजस्थान की पिंक सैंड स्टोन को जोड़ने की प्रक्रिया को भी तेजी के साथ शुरू कर दिया गया है. इसके साथ ही मंदिर की सुरक्षा के लिए तैयार किए जा रहे रिटेनिंग वॉल का कार्य 3 दिशाओं में लगभग पूरा हो चुका है.
आसान शब्दों में कहें तो मंदिर निर्माण के लिए जमीन के नीचे किए जाने वाला कार्य पूरा किया जा चुका है और अब जमीन तल पर मंदिर का निर्माण और शिखर का निर्माण कार्य किया जाएगा. मंदिर निर्माण में प्लिंथ निर्माण का काम 3 चौथाई पूरा हो गया है. वास्तु शास्त्र के अनुसार 1 जून को गर्भगृह के पश्चिम में अर्धचंद्राकार तराशे गए बंसी पहाड़पुर के पत्थर गुलाबी रंग के बलुआ पत्थरों इंस्टॉल करना प्रारंभ कर दिया गया था. 2 महीने में 250 से ज्यादा नक्काशीदार पत्थरों के लेयर गर्भगृह के पश्चिम में परिक्रमा मार्ग पर पूर्ण रूप से स्थापित कर दिया गया है.
दिसंबर 2023 तक रामलला को गर्भगृह में स्थापित करने की तैयारी है और वर्ष 2025 तक पूरे राम जन्मभूमि परिसर का निर्माण कार्य पूरा करने की योजना श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की है जिसके लिए दिन-रात कार्य किया जा रहा है.
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