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International Co-operative Day : बढ़ेगा पैक्स का दायरा, खुलेगा सहकारिता विश्वविद्यालय

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Published : Jul 4, 2022, 10:12 PM IST

सरकार पैक्स का दायरा बढ़ाने पर विचार कर रही है. 100वें अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए अमित शाह ने कहा कि पैक्स के तहत अब पेट्रोलियम उत्पादों की डीलरशिप, पीडीएस की दुकानें, डेयरी, मत्स्य पालन, सिंचाई और हरित ऊर्जा संबंधित काम की अनुमति मिलेगी.

home minister amit shah
गृह मंत्री अमित शाह

नई दिल्ली : केंद्र ने प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस या पैक्स) को उनके नियमित कार्यों के अलावा पेट्रोलियम उत्पादों की डीलरशिप, पीडीएस की दुकानें चलाने तथा अस्पताल एवं शैक्षणिक संस्थान विकसित करने जैसी गतिविधियों की अनुमति देने का प्रस्ताव किया है. इस संबंध में सहकारिता मंत्रालय ने 'पैक्स के आदर्श उपनियमों' का मसौदा तैयार किया है, जिसपर उसने 19 जुलाई तक राज्य सरकारों और अन्य अंशधारकों से सुझाव मांगे गए हैं.

मौजूदा ढांचा, पैक्स को अपने मुख्य व्यवसाय के अलावा अन्य क्षेत्रों में विविधता लाने की अनुमति नहीं देता है. आदर्श उप-नियमों के मसौदे के तहत पैक्स को बैंक मित्र और सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी) के रूप में काम करने की अनुमति देने, शीत भंडारगृह और गोदाम की सुविधा प्रदान करने, पीडीएस की दुकानें स्थापित करने के अलावा डेयरी, मत्स्य पालन, सिंचाई और हरित ऊर्जा क्षेत्र में काम करने की अनुमति देने का प्रस्ताव किया गया है.

मसौदे में यह भी कहा गया है कि पैक्स को शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन और पर्यावरण और सतत विकास गतिविधियों के क्षेत्र में समुदाय आधारित सेवा प्रदान करने की अनुमति होगी. मसौदे के अनुसार, समिति का उद्देश्य, अपने सदस्यों को कृषि से संबंधित विकास गतिविधियों के लिए समय पर और पर्याप्त अल्पकालिक और मध्यम अवधि का ऋण प्रदान करना है.

सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सोमवार को 100वें अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस के उपलक्ष्य में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने पैक्स के लिए मॉडल उपनियमों का मसौदा तैयार किया है और राज्य सरकारों से सुझाव मांगे हैं. पैक्स राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है. उन्होंने कहा कि पैक्स के कंप्यूटरीकरण से उनके समग्र कामकाज में पारदर्शिता आएगी, जिसमें लेखांकन और बहीखाता पद्धति भी शामिल है.

केंद्र ने बुधवार को अपने संचालन में दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार के लिए 2,516 करोड़ रुपये के बजट परिव्यय के साथ अगले पांच वर्षों में सभी कार्यात्मक 63,000 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) को कंप्यूटरीकृत करने का निर्णय किया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) द्वारा अनुमोदित योजना, पैक्स को अपने व्यवसाय में विविधता लाने और कई गतिविधियों और सेवाओं को शुरू करने की सुविधा प्रदान करेगी. मौजूदा समय में, अधिकतर पैक्स ने अपने संचालन का कंप्यूटरीकरण नहीं किया है और वे मैन्युअल रूप से कार्य कर रहे हैं. पैक्स के लिए आदर्श उपनियमों के अलावा सरकार एक नई सहकारिता नीति पर काम कर रही है, एक विश्वविद्यालय स्थापित कर रही है और सहकारी समितियों का डाटाबेस विकसित कर रही है.

और क्या कुछ कहा अमित शाह ने - सहकारिता क्षेत्र भारत को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही देश के 70 करोड़ गरीबों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. उन्होंने 100वां अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित एक सम्मेलन में कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले आठ वर्षों में गरीबों की भलाई और उन्हें बिजली, रसोई गैस, आवास तथा स्वास्थ्य बीमा देने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं. शाह ने कहा कि ये 70 करोड़ लोग अब बेहतर जीवन की आकांक्षा कर रहे हैं, और इसे सिर्फ सहकारी क्षेत्र द्वारा ही पूरा किया जा सकता है. केंद्रीय मंत्री ने कांग्रेस पार्टी पर हमला करते हुए कहा कि उन्होंने सिर्फ 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया, लेकिन गरीबी को खत्म करने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए.

खुलेगा सहकारिता विश्वविद्यालय - सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि पूंजीवाद और साम्यवाद शासन के चरम रूप हैं, और विकास का सहकारी मॉडल ही देश के लिए सबसे उपयुक्त है. सहकारिता मंत्रालय सहकारी क्षेत्र को पेशेवर और बहुआयामी बनाकर विभिन्न पहलुओं पर काम कर रहा है. उन्होंने कहा कि कौशल प्रशिक्षण देने के लिए लेखांकन, विपणन और प्रबंधन जैसे विषयों पर आधारित एक सहकारी विश्वविद्यालय स्थापित किया जाएगा. शाह ने कहा कि प्रशिक्षित जनशक्ति को सहकारी समितियों में शामिल किया जा सकता है और इससे नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद भी समाप्त होगा. उन्होंने कहा कि कानूनों में भी बदलाव की जरूरत है, लेकिन साथ ही उन्होंने सहकारी समितियों के बीच स्व-नियमन पर जोर दिया. शाह ने कहा कि सरकार ने हाल ही में 2,516 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ सभी कार्यात्मक 63,000 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के कंप्यूटरीकरण का फैसला किया है. इस कदम से लेखांकन और बही-खाता पद्धति में पारदर्शिता आएगी. भारत में 8.5 लाख सहकारी समितियां हैं और लगभग 12 करोड़ लोग इस क्षेत्र से सीधे जुड़े हुए हैं.

नई दिल्ली : केंद्र ने प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस या पैक्स) को उनके नियमित कार्यों के अलावा पेट्रोलियम उत्पादों की डीलरशिप, पीडीएस की दुकानें चलाने तथा अस्पताल एवं शैक्षणिक संस्थान विकसित करने जैसी गतिविधियों की अनुमति देने का प्रस्ताव किया है. इस संबंध में सहकारिता मंत्रालय ने 'पैक्स के आदर्श उपनियमों' का मसौदा तैयार किया है, जिसपर उसने 19 जुलाई तक राज्य सरकारों और अन्य अंशधारकों से सुझाव मांगे गए हैं.

मौजूदा ढांचा, पैक्स को अपने मुख्य व्यवसाय के अलावा अन्य क्षेत्रों में विविधता लाने की अनुमति नहीं देता है. आदर्श उप-नियमों के मसौदे के तहत पैक्स को बैंक मित्र और सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी) के रूप में काम करने की अनुमति देने, शीत भंडारगृह और गोदाम की सुविधा प्रदान करने, पीडीएस की दुकानें स्थापित करने के अलावा डेयरी, मत्स्य पालन, सिंचाई और हरित ऊर्जा क्षेत्र में काम करने की अनुमति देने का प्रस्ताव किया गया है.

मसौदे में यह भी कहा गया है कि पैक्स को शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन और पर्यावरण और सतत विकास गतिविधियों के क्षेत्र में समुदाय आधारित सेवा प्रदान करने की अनुमति होगी. मसौदे के अनुसार, समिति का उद्देश्य, अपने सदस्यों को कृषि से संबंधित विकास गतिविधियों के लिए समय पर और पर्याप्त अल्पकालिक और मध्यम अवधि का ऋण प्रदान करना है.

सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सोमवार को 100वें अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस के उपलक्ष्य में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने पैक्स के लिए मॉडल उपनियमों का मसौदा तैयार किया है और राज्य सरकारों से सुझाव मांगे हैं. पैक्स राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है. उन्होंने कहा कि पैक्स के कंप्यूटरीकरण से उनके समग्र कामकाज में पारदर्शिता आएगी, जिसमें लेखांकन और बहीखाता पद्धति भी शामिल है.

केंद्र ने बुधवार को अपने संचालन में दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार के लिए 2,516 करोड़ रुपये के बजट परिव्यय के साथ अगले पांच वर्षों में सभी कार्यात्मक 63,000 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) को कंप्यूटरीकृत करने का निर्णय किया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) द्वारा अनुमोदित योजना, पैक्स को अपने व्यवसाय में विविधता लाने और कई गतिविधियों और सेवाओं को शुरू करने की सुविधा प्रदान करेगी. मौजूदा समय में, अधिकतर पैक्स ने अपने संचालन का कंप्यूटरीकरण नहीं किया है और वे मैन्युअल रूप से कार्य कर रहे हैं. पैक्स के लिए आदर्श उपनियमों के अलावा सरकार एक नई सहकारिता नीति पर काम कर रही है, एक विश्वविद्यालय स्थापित कर रही है और सहकारी समितियों का डाटाबेस विकसित कर रही है.

और क्या कुछ कहा अमित शाह ने - सहकारिता क्षेत्र भारत को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही देश के 70 करोड़ गरीबों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. उन्होंने 100वां अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित एक सम्मेलन में कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले आठ वर्षों में गरीबों की भलाई और उन्हें बिजली, रसोई गैस, आवास तथा स्वास्थ्य बीमा देने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं. शाह ने कहा कि ये 70 करोड़ लोग अब बेहतर जीवन की आकांक्षा कर रहे हैं, और इसे सिर्फ सहकारी क्षेत्र द्वारा ही पूरा किया जा सकता है. केंद्रीय मंत्री ने कांग्रेस पार्टी पर हमला करते हुए कहा कि उन्होंने सिर्फ 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया, लेकिन गरीबी को खत्म करने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए.

खुलेगा सहकारिता विश्वविद्यालय - सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि पूंजीवाद और साम्यवाद शासन के चरम रूप हैं, और विकास का सहकारी मॉडल ही देश के लिए सबसे उपयुक्त है. सहकारिता मंत्रालय सहकारी क्षेत्र को पेशेवर और बहुआयामी बनाकर विभिन्न पहलुओं पर काम कर रहा है. उन्होंने कहा कि कौशल प्रशिक्षण देने के लिए लेखांकन, विपणन और प्रबंधन जैसे विषयों पर आधारित एक सहकारी विश्वविद्यालय स्थापित किया जाएगा. शाह ने कहा कि प्रशिक्षित जनशक्ति को सहकारी समितियों में शामिल किया जा सकता है और इससे नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद भी समाप्त होगा. उन्होंने कहा कि कानूनों में भी बदलाव की जरूरत है, लेकिन साथ ही उन्होंने सहकारी समितियों के बीच स्व-नियमन पर जोर दिया. शाह ने कहा कि सरकार ने हाल ही में 2,516 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ सभी कार्यात्मक 63,000 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के कंप्यूटरीकरण का फैसला किया है. इस कदम से लेखांकन और बही-खाता पद्धति में पारदर्शिता आएगी. भारत में 8.5 लाख सहकारी समितियां हैं और लगभग 12 करोड़ लोग इस क्षेत्र से सीधे जुड़े हुए हैं.

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