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26/11 मुंबई आतंकी हमला : भारत-पाक संबंधों के बीच खिंच गई लाल लकीर, आज भी जख्म हरे - 26/11 मुंबई आतंकी हमला

26 नवंबर 2008 की शाम भारत के वाणिज्यिक महानगर मुंबई (India's commercial metropolis Mumbai attacked) में शुरू हुए आतंकी हमले 66 घंटे तक चले. इस दौरान आतंकवादियों ने जमकर तांडव मचाया. यह हमला भारत के लिए न केवल 9/11 सरीखी की घटना बन गई बल्कि भारत और पाकिस्तान (India and Pakistan) के बीच दशकों से चली आ रही प्रतिद्वंद्विता में किसी भी सकारात्मक बदलाव को लेकर लाल रेखा भी खींच गई. पढ़ें यह विशेष रिपोर्ट.

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Published : Nov 26, 2021, 6:07 AM IST

हैदराबाद : 26 नवंबर से 29 नवंबर के बीच के 66 घंटों को भारत के सबसे खराब आतंकी हमलों में से एक (One of the worst terror attacks) के रूप में देखा गया. जब कम से कम 10 आतंकवादी मुंबई के लैंडमार्क जगहों जैसे ओबेरॉय ट्राइडेंट, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, लेपर्ड कैफे, कामा हॉस्पिटल और ताज महल होटल में तबाही मचाने घुस गए थे.

इस दिन हुए नरसंहार में कम से कम 166 निर्दोष नागरिकों की मौत (166 innocent civilians killed) हो गई और 300 लोग घायल हो गए थे. जिस तरह 9/11 का आतंकी हमला संयुक्त राज्य के लिए एक सबसे बुरे सपने की तरह है और फिर उसके नतीजे में आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक तौर पर आक्रमण (Global Attack Against Terrorism) किया गया. भारत के लिए भी 26/11 उससे कम नहीं है.

भारत ने इस नरसंहार में मदद करने वाले आतंकवादी प्रतिबंधित संगठन लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) के सूत्रधारों की तत्काल गिरफ्तारी और सजा की मांग की थी, जिन्हें पाकिस्तान से भर्ती किया गया, प्रशिक्षित किया गया और फिर भारत भेजा गया था.

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इस दहला देने वाली घटना को एक दशक से ज्यादा का समय हो चुका है लेकिन अभी भी नई दिल्ली का कहना है कि पाकिस्तान ने इस मामले में वो कदम नहीं उठाए जो जरूरी थे. जबकि भारत ने इस घटना में जमात-उद-दावा (Jamaat-ud-Dawa) और लकर-ए-तैयबा के शामिल होने के दर्जनों सबूतों सबूत दिए.

हर साल 26/11 की वर्षगांठ उन लोगों के लिए डर, आघात, दुख की एक लहर लेकर आती है, जिन्होंने इस आतंकवादी हमले में अपनों को खोया या वे इस नरसंहार के गवाह बने थे. तब से ही भारत ने इस मामले में किसी भी तरह की रियायत देने से इनकार करते हुए पाकिस्तान से लश्कर और जेयूडी के गुर्गों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने की लगातार मांग करता है.

नई दिल्ली ने साफ तौर पर कहा है कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच भविष्य में कोई सकरात्मक बातचीत होती है तो उससे पहले इस्लामाबाद को दोषियों को सजा देनी होगी, जिसमें 26/11 के आतंकी हमलों के मास्टरमाइंड (Mastermind of terrorist attacks) लश्कर और जेयूडी के प्रमुख हाफिज मुहम्मद सईद (JuD chief Hafiz Muhammad Saeed) और अन्य लोग शामिल हैं.

26/11 मुंबई आतंकी हमले में शहीदों को श्रद्धांजलि
26/11 मुंबई आतंकी हमले में शहीदों को श्रद्धांजलि

यही वजह है कि जब इस्लामाबाद द्वारा बातचीत की पेशकश की गई थी तो भारत की पूर्व विदेश मंत्री स्व. सुषमा स्वराज (Former Foreign Minister Mr. Sushma Swaraj) ने साफ कह दिया था कि शांति वार्ता के प्रस्ताव आतंक के तेज शोर में नहीं सुने जा सकते हैं. पाकिस्तान में भी लोगों ने 26/11 के आतंकवादी हमलों की बड़े पैमाने पर निंदा की और दोषियों को सजा देने की बात कही थी. इस तबाही को पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारत का 9/11 बताया था.

26/11 का जिंदा बचा एकमात्र हमलावर अजमल कसाब (Attacker Ajmal Kasab), जिसे भारत की अदालत द्वारा मौत की सजा दिए जाने के बाद लश्कर ने उसे अपना हीरो बताते हुए कहा था कि यह कई हमलों की प्रेरणा देगा. अपने बयान में लश्कर ने कहा था कि अजमल कसाब को एक हीरो के रूप में याद किया जाएगा. वह और अधिक हमलों के लिए प्रेरणा देगा.

इतना ही नहीं कसाब की फांसी के बाद पाकिस्तानी मूल के एक अन्य खूंखार आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (Tehreek-e-Taliban Pakistan) ने भारतीयों को निशाना बनाकर कसाब की फांसी का बदला (Kasab's execution revenge) लेने की कसम खाई थी.

हालांकि तत्कालीन पाकिस्तानी सरकार ने भारत को आश्वासन दिया था कि वह अपनी जमीन पर इस घटना में शामिल लोगों की जांच करेगा लेकिन उसने भारत के एक दावे को साफ तौर पर अनसुना कर दिया कि जिसमें उसकी शक्तिशाली खुफिया एजेंसियों और सेना के आतंकी समूहों के साथ संबंध की बात कही गई थी.

26/11 मुंबई आतंकी हमले में शहीदों को श्रद्धांजलि
26/11 मुंबई आतंकी हमले में शहीदों को श्रद्धांजलि

भारत ने दावा किया था कि पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (Inter-Services Intelligence) ने लश्कर के आतंकवादियों को समुद्री मार्ग तक पहुंचाने, फंड देने, प्रशिक्षित करने का काम किया था. इस्लामाबाद ने इससे इनकार कर दिया और उलटे भारत पर ही आरोप लगाया कि वह उसके संस्थानों पर आतंकी हमले करने के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल होने दे रहा है.

विश्लेषकों का कहना है कि मुंबई आतंकी हमलों का मामला पाकिस्तानी अदालतों में चल रहा है लेकिन यह भी सुनिश्चित किया गया है कि डोजियर के रूप में नई दिल्ली द्वारा उपलब्ध कराए गए सबूत, अभियुक्तों को सजा देने के लिए पर्याप्त साबित न हों.

वरिष्ठ रणनीतिक विश्लेषक जावेद सिद्दीकी (Senior Strategic Analyst Javed Siddiqui) कहते हैं कि यदि केवल मुंबई हमलों को लेकर कथित दोषियों की जांच और सजा देने का काम होता तो पाकिस्तान तो अब तक ऐसा कर चुका होता. लेकिन भारत ने उसके रक्षा प्रतिष्ठानों पर आतंकी समूहों और लोगों को शरण देने के सीधे आरोप लगाए हैं. इसके बाद अब ऐसा कोई रास्ता नहीं जिससे पाकिस्तान कभी भी सहमत होगा. कोई भी देश ऐसा नहीं करेगा.

जबकि पाकिस्तान ने भारत को अपने दावों को लेकर और अधिक साक्ष्य देने के लिए कहा है. पाकिस्तानी अदालतों में मुंबई आतंकवादी हमलों के मामले को लेकर चल रही सुनवाई और स्थगन ऐसे हैं जो शायद कभी न खत्म होने वाली कार्यवाही की तरह लगते हैं. ऐसे में दोनों पक्षों के टेबल पर बैठकर बातचीत करने की बात भी अनिश्चित काल के लिए टलती नजर आ रही है.

आतंकियों को बचा रहे देशों का हो विरोध : जयशंकर

अफगानिस्तान की हाल की घटनाओं से अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ रही है. ऐसे में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि वैश्विक समुदाय को उन देशों के पाखंड का विरोध करना चाहिए जो निर्दोषों के खून से हाथ रंगने वाले आतंकवादियों की रक्षा करते हैं.

आतंकवाद से अंतरराष्ट्रीय खतरे पर सुरक्षा परिषद में बोलते हुए उन्होंने दोनों का नाम लिए बिना आतंकवादी समूहों को सहायता प्रदान करने में पाकिस्तान और चीन की भूमिकाओं की ओर ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से कुछ देश ऐसे भी हैं जो आतंकवाद से लड़ने के हमारे सामूहिक संकल्प को कमजोर या नष्ट करना चाहते हैं.

जयशंकर ने कहा कि जब हम देखते हैं कि निर्दोष लोगों के खून से हाथ रंगने वालों को राजकीय आतिथ्य दिया जा रहा है तो हमें उनकी दोहरी बात पर टोकने का साहस करने से नहीं चूकना चाहिए. उन्होंने कहा कि चाहे वह अफगानिस्तान में हो या भारत के खिलाफ, लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) जैसे समूह दंड से मुक्ति और प्रोत्साहन दोनों के साथ काम करना जारी रखते हैं.

उन्होंने कहा कि इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि यह परिषद हमारे सामने आने वाली समस्याओं के बारे में एक चुनिंदा, सामरिक या आत्मसंतुष्ट दृष्टिकोण नहीं लेती है. हमें कभी भी आतंकवादियों के लिए अभ्यारण्यों का सामना नहीं करना चाहिए या उनके संसाधनों को बढ़ाने की अनदेखी नहीं करनी चाहिए.

यह भी पढ़ें- लश्कर की योजना मुंबई हमले को हिंदू आतंकवाद के तौर पर पेश करने की थी

पाकिस्तान समर्थित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े व्यक्तियों और समूहों को बचाने के बीजिंग के प्रयासों के संदर्भ में उन्होंने कहा कि बिना किसी कारण के अनुरोधों को ब्लॉक और होल्ड न करें. आतंकवाद के खिलाफ अपनी कार्य योजना को दोहराते हुए उन्होंने कहा कि आतंकवादियों और आतंकवादी समूहों से निपटने के लिए परिषद को राजनीतिक या धार्मिक कारणों से नहीं, बल्कि निष्पक्ष रूप से सूचीबद्ध करना और हटाना चाहिए.

जयशंकर ने चेतावनी दी कि हमारे अपने पड़ोस में आईएसआईएल-खोरासन (आईएसआईएल-के) अधिक ऊजार्वान हो गया है और लगातार अपने पदचिह्न का विस्तार करने की कोशिश कर रहा है. अफगानिस्तान में होने वाली घटनाओं ने क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा दोनों के लिए उनके प्रभावों के बारे में वैश्विक चिंताओं को स्वाभाविक रूप से बढ़ा दिया है.

उन्होंने भारत द्वारा प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन को शीघ्र अपनाने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि इसे कुछ देशों द्वारा अवरुद्ध कर दिया गया है जो कुछ आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानियों के रूप में बचाने की कोशिश करते हैं.

जयशंकर ने कहा कि राजनीतिक इच्छाशक्ति का आह्वान करें. आतंकवाद को न्यायसंगत न ठहराएं, आतंकवादियों का महिमामंडन न करें. कोई दोहरा मापदंड नहीं. आतंकवादी आतंकवादी होते हैं, भेद केवल हमारे अपने जोखिम पर किए जाते हैं. उन्होंने कहा कि आतंकवादी संगठनों के वित्तपोषण के खिलाफ कानूनी उपायों को सख्त करने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के बावजूद, उन्हें अभी भी पैसा मिलता है.

यह भी पढ़ें- मनीष तिवारी ने नई किताब में 26/11 हमले को लेकर मनमोहन सरकार पर उठाए सवाल

उन्होंने कहा कि धन का प्रवाह जारी है और हत्याओं के लिए पुरस्कार अब बिटकॉइन में भी दिए जा रहे हैं. जयशंकर ने आतंकवाद के सभी पीड़ितों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करते हुए कहा कि 9/11 हमले की 20 वीं बरसी बीती है. वहीं 2008 का मुंबई आतंकी हमला हमारी यादों में अंकित है. 2016 का पठानकोट हवाईअड्डा हमला और 2019 का पुलवामा में हमारे पुलिसकर्मियों पर आत्मघाती हमले की याद अभी भी ताजा है.

हैदराबाद : 26 नवंबर से 29 नवंबर के बीच के 66 घंटों को भारत के सबसे खराब आतंकी हमलों में से एक (One of the worst terror attacks) के रूप में देखा गया. जब कम से कम 10 आतंकवादी मुंबई के लैंडमार्क जगहों जैसे ओबेरॉय ट्राइडेंट, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, लेपर्ड कैफे, कामा हॉस्पिटल और ताज महल होटल में तबाही मचाने घुस गए थे.

इस दिन हुए नरसंहार में कम से कम 166 निर्दोष नागरिकों की मौत (166 innocent civilians killed) हो गई और 300 लोग घायल हो गए थे. जिस तरह 9/11 का आतंकी हमला संयुक्त राज्य के लिए एक सबसे बुरे सपने की तरह है और फिर उसके नतीजे में आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक तौर पर आक्रमण (Global Attack Against Terrorism) किया गया. भारत के लिए भी 26/11 उससे कम नहीं है.

भारत ने इस नरसंहार में मदद करने वाले आतंकवादी प्रतिबंधित संगठन लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) के सूत्रधारों की तत्काल गिरफ्तारी और सजा की मांग की थी, जिन्हें पाकिस्तान से भर्ती किया गया, प्रशिक्षित किया गया और फिर भारत भेजा गया था.

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इस दहला देने वाली घटना को एक दशक से ज्यादा का समय हो चुका है लेकिन अभी भी नई दिल्ली का कहना है कि पाकिस्तान ने इस मामले में वो कदम नहीं उठाए जो जरूरी थे. जबकि भारत ने इस घटना में जमात-उद-दावा (Jamaat-ud-Dawa) और लकर-ए-तैयबा के शामिल होने के दर्जनों सबूतों सबूत दिए.

हर साल 26/11 की वर्षगांठ उन लोगों के लिए डर, आघात, दुख की एक लहर लेकर आती है, जिन्होंने इस आतंकवादी हमले में अपनों को खोया या वे इस नरसंहार के गवाह बने थे. तब से ही भारत ने इस मामले में किसी भी तरह की रियायत देने से इनकार करते हुए पाकिस्तान से लश्कर और जेयूडी के गुर्गों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने की लगातार मांग करता है.

नई दिल्ली ने साफ तौर पर कहा है कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच भविष्य में कोई सकरात्मक बातचीत होती है तो उससे पहले इस्लामाबाद को दोषियों को सजा देनी होगी, जिसमें 26/11 के आतंकी हमलों के मास्टरमाइंड (Mastermind of terrorist attacks) लश्कर और जेयूडी के प्रमुख हाफिज मुहम्मद सईद (JuD chief Hafiz Muhammad Saeed) और अन्य लोग शामिल हैं.

26/11 मुंबई आतंकी हमले में शहीदों को श्रद्धांजलि
26/11 मुंबई आतंकी हमले में शहीदों को श्रद्धांजलि

यही वजह है कि जब इस्लामाबाद द्वारा बातचीत की पेशकश की गई थी तो भारत की पूर्व विदेश मंत्री स्व. सुषमा स्वराज (Former Foreign Minister Mr. Sushma Swaraj) ने साफ कह दिया था कि शांति वार्ता के प्रस्ताव आतंक के तेज शोर में नहीं सुने जा सकते हैं. पाकिस्तान में भी लोगों ने 26/11 के आतंकवादी हमलों की बड़े पैमाने पर निंदा की और दोषियों को सजा देने की बात कही थी. इस तबाही को पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारत का 9/11 बताया था.

26/11 का जिंदा बचा एकमात्र हमलावर अजमल कसाब (Attacker Ajmal Kasab), जिसे भारत की अदालत द्वारा मौत की सजा दिए जाने के बाद लश्कर ने उसे अपना हीरो बताते हुए कहा था कि यह कई हमलों की प्रेरणा देगा. अपने बयान में लश्कर ने कहा था कि अजमल कसाब को एक हीरो के रूप में याद किया जाएगा. वह और अधिक हमलों के लिए प्रेरणा देगा.

इतना ही नहीं कसाब की फांसी के बाद पाकिस्तानी मूल के एक अन्य खूंखार आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (Tehreek-e-Taliban Pakistan) ने भारतीयों को निशाना बनाकर कसाब की फांसी का बदला (Kasab's execution revenge) लेने की कसम खाई थी.

हालांकि तत्कालीन पाकिस्तानी सरकार ने भारत को आश्वासन दिया था कि वह अपनी जमीन पर इस घटना में शामिल लोगों की जांच करेगा लेकिन उसने भारत के एक दावे को साफ तौर पर अनसुना कर दिया कि जिसमें उसकी शक्तिशाली खुफिया एजेंसियों और सेना के आतंकी समूहों के साथ संबंध की बात कही गई थी.

26/11 मुंबई आतंकी हमले में शहीदों को श्रद्धांजलि
26/11 मुंबई आतंकी हमले में शहीदों को श्रद्धांजलि

भारत ने दावा किया था कि पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (Inter-Services Intelligence) ने लश्कर के आतंकवादियों को समुद्री मार्ग तक पहुंचाने, फंड देने, प्रशिक्षित करने का काम किया था. इस्लामाबाद ने इससे इनकार कर दिया और उलटे भारत पर ही आरोप लगाया कि वह उसके संस्थानों पर आतंकी हमले करने के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल होने दे रहा है.

विश्लेषकों का कहना है कि मुंबई आतंकी हमलों का मामला पाकिस्तानी अदालतों में चल रहा है लेकिन यह भी सुनिश्चित किया गया है कि डोजियर के रूप में नई दिल्ली द्वारा उपलब्ध कराए गए सबूत, अभियुक्तों को सजा देने के लिए पर्याप्त साबित न हों.

वरिष्ठ रणनीतिक विश्लेषक जावेद सिद्दीकी (Senior Strategic Analyst Javed Siddiqui) कहते हैं कि यदि केवल मुंबई हमलों को लेकर कथित दोषियों की जांच और सजा देने का काम होता तो पाकिस्तान तो अब तक ऐसा कर चुका होता. लेकिन भारत ने उसके रक्षा प्रतिष्ठानों पर आतंकी समूहों और लोगों को शरण देने के सीधे आरोप लगाए हैं. इसके बाद अब ऐसा कोई रास्ता नहीं जिससे पाकिस्तान कभी भी सहमत होगा. कोई भी देश ऐसा नहीं करेगा.

जबकि पाकिस्तान ने भारत को अपने दावों को लेकर और अधिक साक्ष्य देने के लिए कहा है. पाकिस्तानी अदालतों में मुंबई आतंकवादी हमलों के मामले को लेकर चल रही सुनवाई और स्थगन ऐसे हैं जो शायद कभी न खत्म होने वाली कार्यवाही की तरह लगते हैं. ऐसे में दोनों पक्षों के टेबल पर बैठकर बातचीत करने की बात भी अनिश्चित काल के लिए टलती नजर आ रही है.

आतंकियों को बचा रहे देशों का हो विरोध : जयशंकर

अफगानिस्तान की हाल की घटनाओं से अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ रही है. ऐसे में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि वैश्विक समुदाय को उन देशों के पाखंड का विरोध करना चाहिए जो निर्दोषों के खून से हाथ रंगने वाले आतंकवादियों की रक्षा करते हैं.

आतंकवाद से अंतरराष्ट्रीय खतरे पर सुरक्षा परिषद में बोलते हुए उन्होंने दोनों का नाम लिए बिना आतंकवादी समूहों को सहायता प्रदान करने में पाकिस्तान और चीन की भूमिकाओं की ओर ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से कुछ देश ऐसे भी हैं जो आतंकवाद से लड़ने के हमारे सामूहिक संकल्प को कमजोर या नष्ट करना चाहते हैं.

जयशंकर ने कहा कि जब हम देखते हैं कि निर्दोष लोगों के खून से हाथ रंगने वालों को राजकीय आतिथ्य दिया जा रहा है तो हमें उनकी दोहरी बात पर टोकने का साहस करने से नहीं चूकना चाहिए. उन्होंने कहा कि चाहे वह अफगानिस्तान में हो या भारत के खिलाफ, लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) जैसे समूह दंड से मुक्ति और प्रोत्साहन दोनों के साथ काम करना जारी रखते हैं.

उन्होंने कहा कि इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि यह परिषद हमारे सामने आने वाली समस्याओं के बारे में एक चुनिंदा, सामरिक या आत्मसंतुष्ट दृष्टिकोण नहीं लेती है. हमें कभी भी आतंकवादियों के लिए अभ्यारण्यों का सामना नहीं करना चाहिए या उनके संसाधनों को बढ़ाने की अनदेखी नहीं करनी चाहिए.

यह भी पढ़ें- लश्कर की योजना मुंबई हमले को हिंदू आतंकवाद के तौर पर पेश करने की थी

पाकिस्तान समर्थित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े व्यक्तियों और समूहों को बचाने के बीजिंग के प्रयासों के संदर्भ में उन्होंने कहा कि बिना किसी कारण के अनुरोधों को ब्लॉक और होल्ड न करें. आतंकवाद के खिलाफ अपनी कार्य योजना को दोहराते हुए उन्होंने कहा कि आतंकवादियों और आतंकवादी समूहों से निपटने के लिए परिषद को राजनीतिक या धार्मिक कारणों से नहीं, बल्कि निष्पक्ष रूप से सूचीबद्ध करना और हटाना चाहिए.

जयशंकर ने चेतावनी दी कि हमारे अपने पड़ोस में आईएसआईएल-खोरासन (आईएसआईएल-के) अधिक ऊजार्वान हो गया है और लगातार अपने पदचिह्न का विस्तार करने की कोशिश कर रहा है. अफगानिस्तान में होने वाली घटनाओं ने क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा दोनों के लिए उनके प्रभावों के बारे में वैश्विक चिंताओं को स्वाभाविक रूप से बढ़ा दिया है.

उन्होंने भारत द्वारा प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन को शीघ्र अपनाने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि इसे कुछ देशों द्वारा अवरुद्ध कर दिया गया है जो कुछ आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानियों के रूप में बचाने की कोशिश करते हैं.

जयशंकर ने कहा कि राजनीतिक इच्छाशक्ति का आह्वान करें. आतंकवाद को न्यायसंगत न ठहराएं, आतंकवादियों का महिमामंडन न करें. कोई दोहरा मापदंड नहीं. आतंकवादी आतंकवादी होते हैं, भेद केवल हमारे अपने जोखिम पर किए जाते हैं. उन्होंने कहा कि आतंकवादी संगठनों के वित्तपोषण के खिलाफ कानूनी उपायों को सख्त करने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के बावजूद, उन्हें अभी भी पैसा मिलता है.

यह भी पढ़ें- मनीष तिवारी ने नई किताब में 26/11 हमले को लेकर मनमोहन सरकार पर उठाए सवाल

उन्होंने कहा कि धन का प्रवाह जारी है और हत्याओं के लिए पुरस्कार अब बिटकॉइन में भी दिए जा रहे हैं. जयशंकर ने आतंकवाद के सभी पीड़ितों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करते हुए कहा कि 9/11 हमले की 20 वीं बरसी बीती है. वहीं 2008 का मुंबई आतंकी हमला हमारी यादों में अंकित है. 2016 का पठानकोट हवाईअड्डा हमला और 2019 का पुलवामा में हमारे पुलिसकर्मियों पर आत्मघाती हमले की याद अभी भी ताजा है.

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