उदयपुर. हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे यानी मातृ दिवस के रूप में मनाया जाता है. राजस्थान में जब भी मातृत्व का जिक्र होता है तो सबसे पहले पन्नाधाय याद आती हैं, जिन्होंने स्वामीभक्ति के लिए स्वयं के पुत्र का बलिदान कर दिया था और महाराणा उदय सिंह के प्राणों की रक्षा की थी. पन्नाधाय को त्याग, बलिदान और स्वामीभक्ति की प्रतिमूर्ति कहा जाता है. आज मदर्स डे पर पन्नाधाय के जीवन प्रसंगों के जरिए उनके समर्पण को जानते हैं.
अपने पुत्र का दिया था बलिदान : इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि मां को अपने बच्चा सबसे ज्यादा प्रिय होता है. मध्यकालीन इतिहास में पन्नाधाय के स्वर्णिम इतिहास को देखें तो उनके जैसा त्याग का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिल सकता है. शर्मा ने बताया कि जब-जब मां का जिक्र होता है तो बड़े ही गर्व के साथ पन्नाधाय का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है. पन्नाधाय ने वचन पालन करते हुए अपनी ही संतान की कुर्बानी दे दी थी.
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पन्नाधाय का इतिहास सुनहरे अक्षरों में : इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि पन्नाधाय महाराणा संग्राम सिंह के शासन के समय धायमाता के रूप में रहती थीं. चित्तौड़गढ़ में हुए रानी कर्मावती के जौहर के समय वो महारानी की प्रमुख सेविका के रूप में कार्य करती थीं. रानी ने जौहर में प्रवेश करने से पूर्व अपने छोटे पुत्र उदय सिंह की सुरक्षा का दायित्व पन्नाधाय के हाथों में सौंप दिया था. उन्हें पन्नाधाय पर पूरा विश्वास था. वो जानती थीं कि पन्नाधाय वचन की खातिर कुछ भी कर सकती हैं और ऐसा ही इतिहास में देखने को मिला.
बनवीर के मन में उदय सिंह का भय : इतिहासकार शर्मा ने बताया कि जब चित्तौड़ किले पर दासी पुत्र बनवीर अपना अधिकार जमाना चाहता था, तब उसने महाराणा सांगा के सभी पुत्रों को खत्म करना शुरू कर दिया था. उसी श्रेणी में महाराणा सांगा के अंतिम पुत्र उदय सिंह बचे थे. बनवीर अधिकार जमा चुका था, लेकिन उसके मन में उदय सिंह को लेकर डर रहता था. ऐसे में बनवीर ने उदय सिंह को मारने का मन बना लिया.
पन्नाधाय ने निभाया धायमा का कर्तव्य : शर्मा ने बताया कि बनवीर के इस बदनियती का आभास पन्नाधाय को हो गया था. एक दिन मौका देखकर जब बनवीर ने बालक उदयसिंह की हत्या करने के लिए महल में प्रवेश किया तब पन्नाधाय ने अपने वचन को निभाते हुए उदय सिंह की जगह अपने पुत्र चंदन को सुला दिया. इसके बाद बालक उदय सिंह को फूलों की टोकरी के माध्यम से चित्तौड़ के किले के बाहर लेकर चली गई. इधर बनवीर ने चंदन को उदय सिंह समझकर उसकी निर्मम हत्या कर दी.
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कुंभलगढ़ में किया पालन-पोषण : पन्नाधाय उदय सिंह को कुंभलगढ़ ले कर चली गईं, जहां उनका पालन-पोषण किया. उदय सिंह थोड़े बड़े हुए तो युद्ध में बनवीर की सेना को पराजित कर फिर चित्तौड़ पर अपना अधिकार कायम किया. ये इतिहास की एक ऐसी घटना है जो अभूतपूर्व और अकल्पनीय है.
गोवर्धन सागर बना पैनोरमा : उदयपुर के गोवर्धन सागर विस्तृत पन्नाधाय पैनोरमा बना हुआ है. इस पैनोरमा में पन्नाधाय से जुड़ी हुई स्वामीभक्ति और उदय सिंह की जगह अपने पुत्र को सुलाने का पूरा दृश्य भी दिखाया गया है. इसमें बताया गया है कि बसंत पंचमी की रात्रि में बनवीर तलवार लेकर उदय सिंह को मारने के लिए महल में आया. इस दौरान बनवीर ने पन्ना से पूछा कि उदय सिंह कहां है तो उन्होंने अपने पुत्र की ओर इशारा कर दिया. ऐसे में बनवीर ने अपनी तलवार से चंदन की हत्या कर दी.
अपने कलेजे पर पत्थर रख एक मां ने यह सारा दृश्य देखा. अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को मेवाड़ के भविष्य की रक्षा के लिए बलिदान दिया. किस तरह कुंभलगढ़ में आशाशाह देवपुरा और उनकी मां ने उदय सिंह और पन्नाधाय का स्वागत किया. बाद में पालन-पोषण के बाद यही उदय सिंह आगे चलकर मेवाड़ के महाराणा बने. इसके साथ ही पैनोरमा में दिखाया गया है कि किस तरह से पन्नाधाय ने बेड़च नदी किनारे अपने पुत्र का दाह संस्कार किया और टोकरी में उदय सिंह को छिपाकर अपने सहयोगियों के साथ सुरक्षित स्थान की ओर चली गईं.