उदयपुर. मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय का 31वां दीक्षांत समारोह गुरुवार को विवेकानंद ऑडिटोरियम में आयोजित हुआ. कुलाधिपति एवं राज्यपाल कलराज मिश्र ने 115 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक और 186 को पीएचडी की डिग्रियां प्रदान की. 115 में से 82 गोल्ड मेडल बेटियों के नाम रहे. दीक्षांत उद्बोधन गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय गांधीनगर के कुलपति प्रो रमाशंकर दुबे ने दिया.
कुलाधिपति एवं राज्यपाल कलराज मिश्र ने 'विकसित भारत 2047' की संकल्पना व्यक्त करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय इसके संवाहक बने. राज्यपाल ने कन्वोकेशन को अंग्रेजी का एक शब्द बताते हुए कहा कि पश्चिमी सभ्यता में यह डिग्री प्रदान करने के सीमित अर्थ में ही प्रयुक्त किया जाता है, लेकिन भारतीय शिक्षा पद्धति संस्कार निर्माण से जुड़ी है. दीक्षांत समारोह डिग्री प्रदान करने की औपचारिकता भर नहीं है क्योंकि दीक्षांत का अर्थ है-नव जीवन की शुरुआत, यानी समावर्तन संस्कार है. 'समावर्तन' का अर्थ-संस्कारित होकर जीवन में फिर से लौटना है. दीक्षांत शब्द ब्रह्म रूप में जीवन-पथ के आलोक का संवाहक है.
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तैत्तिरीय उपनिषद् और शिक्षावल्ली खंड के ग्यारहवें सूत्र का उदाहरण देते हुए राज्यपाल ने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि जो शिक्षा विश्वविद्यालय में प्राप्त की है, उसको जीवन व्यवहार में अपनाएं. जो ज्ञान अर्जित किया है, उसका कैसे राष्ट्र और समाज के विकास में अधिकाधिक उपयोग हो सकता है, इसको सर्वोपरि रखते हुए कार्य करें. उन्होंने युवाओं से कहा कि देश के स्वप्नदृष्टा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विकसित भारत की जो कल्पना संजोई है, उसे साकार करने में युवाओं की महती भूमिका निर्धारित की गई है. इसी भूमिका को स्मरण करते हुए भारत समृद्ध और सुख-संपन्न तभी होगा, जब अपने प्राचीन और अर्वाचीन इतिहास को याद रखते हुए हम आगे बढ़ेंगे.