उदयपुर. राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियां अब सियासी समीकरण बनाने में जुट गई है. दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य इलाके में अब राजनीतिक पार्टियों नेताओं के प्रवास का दौरा बढ़ने लगा है. वहीं, राजनीतिक पार्टियों के नेता एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप भी लगा रहे हैं. कांग्रेस के सह प्रभारी वीरेंद्र सिंह का एक बयान अब चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि जिस बीटीपी पार्टी के ने राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को समर्थन दिया था. अब कांग्रेस के नेताओं ने बीटीपी का भाजपा की बी टीम बताने लगे हैं.
बीटीपी को बताया भाजपा की B टीम : कांग्रेस के सह प्रभारी ने दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी इलाकों में बढ़ते बीटीपी (भारतीय ट्राइबल पार्टी) के प्रभाव को लेकर एक बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा कि बीटीपी भाजपा की बी टीम है. बीटीपी से जो नुकसान कांग्रेस को होता है, उसका सीधा फायदा भाजपा को मिलता है. राठौड़ ने कहा कि मेवाड़ के आदिवासी भाइयों से यही अपील है कि वो भाजपा की नीतियों को समझें और कांग्रेस के विकास पर विश्वास करें. इतना ही नहीं आगे उन्होंने बीटीपी को प्रोपेगेंडा पार्टी करार दिया. वहीं, 2023 विधानसभा चुनाव में बीटीपी बड़ी संख्या में अपने उम्मीदवार उतारने को लेकर तैयारी कर रही है. ऐसे में कांग्रेस और भाजपा भी इसके बढ़ते प्रभाव को देखते अब अलग-अलग रणनीति बना रहे हैं.
बीटीपी ने कांग्रेस और भाजपा के वोट में सेंधमारी : दरअसल, 2018 के विधानसभा चुनाव में दक्षिणी राजस्थान के कई विधानसभा सीटों पर बीटीपी पार्टी ने चुनाव लड़ा था, जिसमें उसे दो सीटों पर जीत में मिली थी. यहां दोनों ही सीटों पर भाजपा और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था. डूंगरपुर जिले में 4 विधानसभा सीट है. साल 2018 के चुनाव में बीटीपी सभी 4 सीटों पर चुनाव लड़ी. जिसमें से सागवाड़ा और चौरासी विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की है. वहीं, आसपुर विधानसभा सीट पर बीटीपी दूसरे नंबर पर रही. जबकि डूंगरपुर विधानसभा सीट पर तीसरे नंबर पर रही.
- चौरासी विधानसभा सीट पर बीटीपी के राजकुमार रोत विधायक है. बीजेपी के पूर्व मंत्री सुशील कटारा को हार का सामना करना पड़ा था.
- सागवाड़ा विधानसभा सीट पर बीटीपी के रामप्रसाद डिंडोर विधायक है. भाजपा के शंकर डेचा दूसरे नंबर पर रहे. जबकि कांग्रेस के सुरेंद्र बामणिया तीसरे नंबर पर रहे. भाजपा से बागी होकर चुनाव में उतरी अनिता कटारा की वजह से भाजपा को हार झेलनी पड़ी. अनिता कटारा डूंगरपुर - बांसवाड़ा सांसद कनकमल कटारा की पुत्रवधु है. वह पूर्व विधायक भी रह चुकी है.
- डूंगरपुर से कांग्रेस के गणेश घोघरा विधायक हैं. भाजपा से पूर्व जिला प्रमुख माधवलाल वरहात हार गए थे. बीटीपी से प्रदेशाध्यक्ष डॉ. वेलाराम घोघरा तीसरे और बीजेपी से ही बागी पूर्व विधायक देवेंद्र कटारा हार गए थे.
- आसपुर विधानसभा से भाजपा के गोपीचंद मीणा विधायक है. बीटीपी के उमेश डामोर हार कर दूसरे स्थान पर रहे थे. जबकि कांग्रेस से पूर्व विधायक राईया मीणा भी हार गए थे.
इस बार बीजेपी, कांग्रेस के साथ ही बीटीपी चुनाव मैदान में उतरेगी. इसके अलावा बीटीपी से अलग होकर आदिवासी परिवार भी अपने अलग उम्मीदवार उतारेगी. बीटीपी से जीतकर आए चौरासी और सागवाड़ा विधायक भी इस बार आदिवासी परिवार से ही चुनाव के लिए दावेदारी करेंगे. ऐसे में बीजेपी, कांग्रेस के साथ ही बीटीपी की मुश्किल भी बढ़ेगी.
2018 की विधानसभा चुनाव में बीटीपी आए : साल 2018 के चुनाव के बीटीपी ने डूंगरपुर समेत बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिले की सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन डूंगरपुर के चोरासी और सागवाड़ा को छोड़कर सभी जगह बीटीपी को हार का सामना करना पड़ा था. बीटीपी से डूंगरपुर के दोनों ही विधायको ने कांग्रेस को समर्थन किया. इसके बाद वर्ष 2020 में नेशनल हाइवे 48 पर काकरी डूंगरी उपद्रव हुआ. जिसमें बीटीपी के कई लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई. इन केस को फर्जी बताकर बीटीपी केस वापस लेने के लिए आंदोलन किया.
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इसी बीच राज्यसभा चुनावों में बीटीपी ने केस वापस लेने की शर्त पर समर्थन देने का फैसला लिया. लेकिन बीटीपी के दोनों विधायक पहले ही कांग्रेस के समर्थन में चले गए. वहीं, पायलट की बगावती समय भी दोनों विधायक गहलोत खेमे में चले गए. इसे लेकर बीटीपी ने दोनों विधायकों को नोटिस दिया. इसके बाद दोनों विधायक और उनके समर्थकों ने बीटीपी से किनारा कर भारतीय आदिवासी परिवार (बीएपी) नई पार्टी बना ली. इसके बाद बीटीपी कमजोर हो गई. लेकिन आदिवासी परिवार का संगठन मजबूत हो गया. इतना ही नहीं कॉलेज छात्रसंघ चुनावों की बात करे तो आदिवासी परिवार के समर्थन में टीएसपी एरिया के 27 कॉलेज में उम्मीदवार उतारे. जिसमें डूंगरपुर जिले के सभी कॉलेज समेत 21 कॉलेज में इसी संगठन के उम्मीदवार जीते.