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उदयपुर लोकसभा सीट : क्या फिर कोई बागी मैदान में उतरकर पलट देगा सियासी समीकरण

लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है ऐसे में राजस्थान भी इससे अछूता नहीं है और राजस्थान में भी दोनों ही राजनीतिक दलों के प्रत्याशी चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं, लेकिन इस चुनाव में क्या उदयपुर लोकसभा सीट पर बागी फिर से प्रमुख राजनीतिक दलों का सियासी गणित बिगाड़ पाएंगे. पेश है एक रिपोर्ट-

रवींद्र श्रीमाली, पूर्व युआईटी चेयरमैन
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Published : Mar 27, 2019, 8:44 PM IST

Updated : Mar 27, 2019, 11:26 PM IST


उदयपुर. देश में चुनावी रणभेरी बज चुकी है. चुनावी दंगल में जब कोई बागी अपने पैर रखता है तो सारे राजनीतिक समीकरण झटके में बदल जाते है. लगभग जीत के द्वार पर पहुंचे प्रत्याशी हार के कगार पर आ जाते है. सियासी हलकों में चर्चाएं तेज है कि क्या इस बार भी उदयपुर लोकसभा सीट से कोई बागी अपने कदम रखकर राजनीतिक दलों की सियासी गणित बिगाड़ सकते हैं.

यह कहा जा सकता है कि चुनावों में कभी-कभी बागी पासा पलट देते है. सारे राजनीतिक समीकरण हवा हो जाते है. क्योंकि बागी उस क्षेत्र में ' ब्रांड' के रूप में उतरता है. लेकिन उदयपुर लोकसभी सीट से भाजपा की ओर से अभी कोई बागी सामने नहीं आया. इंतजार है कांग्रेस की लिस्ट का जिसके बाद देखना होगा कि क्या कोई बागी इस सीट पर उतरता है या नहीं.

रवींद्र श्रीमाली, पूर्व युआईटी चेयरमैन

राजस्थान में लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है जहां भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी तो वहीं बहुत जल्द कांग्रेस की भी प्रत्याशियों की घोषणा होने वाली है. ऐसे में अब देखना होगा क्या इस बार भी विधानसभा चुनाव की तरह राजस्थान में बागी दोनों पार्टियों की गणित बिगाड़ते हैं. जी हां जिस तरह 2018 विधानसभा चुनाव में दोनों राजनीतिक पार्टियों की बागी प्रत्याशियों ने सभी समीकरणों को बिगाड़ दिया था. ऐसे में अब देखना होगा उदयपुर लोकसभा सीट पर क्या बागी खेल बिगाड़ पाता है.

आइए आपको समझाता है उदयपुर लोकसभा सीट के जातिगत आंकड़े. अगर बीते चुनाव के ट्रेन पर नजर डाले तो राजपूत ब्राह्मण वैश्य समुदाय का झुकाव बीजेपी के पक्ष में रहता है और जाट गुर्जर मीणा और दलित समुदाय का झुकाव कांग्रेस के पक्ष में रहा है. बता दें कि अनुसूचित जनजाति और पिछड़ी जातियों का मत स्थानीय समीकरण के हिसाब से दोनों दलों में विभाजित होता रहा है. उदयपुर लोकसभा की कुल जनसंख्या 2952477 है जिसका 81% हिस्सा ग्रामीण और 18% हिस्सा शहरी है. जबकि कुल आबादी का 5.5 फीसदी अनुसूचित जाति और 59.8 फीसदी अनुसूचित जनजाति है, जिस में मीणा शामिल है.

ऐसे में सीट पर मीणा समुदाय का वोट काफी महत्वपूर्ण है, जिसके चलते इस सीट पर जहां भाजपा ने अर्जुन लाल मीणा को फिर से टिकट दिया है तो वहीं कांग्रेस भी रघुवीर मीणा को टिकट देने के मूड में नजर आ रही है. लेकिन इन दोनों ही प्रत्याशियों के लिए इस बार का चुनाव आसान नहीं है क्योंकि उदयपुर लोकसभा सीट पर इस बार भारतीय ट्राइबल पार्टी ने भी मैदान में उतरने का निर्णय कर लिया है. जी हां हम बात कर रहे हैं बीटीपी की जिसने विधानसभा चुनाव में मेवाड़ संभाग की 3 सीटों पर जीत हासिल कर सभी को चकित कर दिया था.

बता दें कि उदयपुर लोकसभा सीट पर जहां भारतीय जनता पार्टी की ओर से अर्जुन लाल मीणा को टिकट देने के बाद अब तक कोई भी बागी चुनाव लड़ने के मूड में नहीं दिखाई दे रहा तो वहीं कांग्रेस पार्टी में इस सीट पर रघुवीर मीणा का नाम लगभग फाइनल है. ऐसे में भारतीय ट्राईबल पार्टी अगर इस सीट पर मीणा प्रत्याशी को मौका देती है तो ऐसे में उदयपुर लोकसभा सीट में मुकाबला काफी दिलचस्प हो जाएगा. क्योंकि बीते विधानसभा चुनाव में बीटीपी ने मेवाड़ संभाग में शानदार प्रदर्शन किया था.

आपको बता दें चर्चा यह भी है कि सीडब्ल्यूसी सदस्य और पूर्व सांसद रघुवीर मीणा को 2018 विधानसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़ाने वाली रेशमा मीणा एक बार फिर लोकसभा में बीटीपी की उम्मीदवार हो सकती है.


कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि उदयपुर लोकसभा सीट पर बागी प्रत्याशी के तौर पर अभी दोनों ही राजनीतिक दलों का कोई नेता खुलकर सामने नहीं आया, लेकिन इन दोनों ही पार्टियों के रूठे नेता भारतीय ट्राइबल पार्टी से लगातार संपर्क में है. ऐसे में अब देखना होगा की इन लोकसभा चुनाव में भी क्या बीटीपी फिर कोई कमाल दिखाती है. हालांकि इस पूरे मसले पर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस चुनाव में स्थानीय मुद्दे नहीं बल्कि राष्ट्रीय मुद्दे काम करेंगे जिसके चलते बागी नेताओं का भविष्य इस बार चुनाव में नहीं नजर आता. आम जनता बागियों को वोट देकर अपना वोट खराब नहीं करेगी और सिर्फ राष्ट्रीय पार्टी के नेता ही इस चुनाव में सीधी टक्कर में रहेंगे.


उदयपुर. देश में चुनावी रणभेरी बज चुकी है. चुनावी दंगल में जब कोई बागी अपने पैर रखता है तो सारे राजनीतिक समीकरण झटके में बदल जाते है. लगभग जीत के द्वार पर पहुंचे प्रत्याशी हार के कगार पर आ जाते है. सियासी हलकों में चर्चाएं तेज है कि क्या इस बार भी उदयपुर लोकसभा सीट से कोई बागी अपने कदम रखकर राजनीतिक दलों की सियासी गणित बिगाड़ सकते हैं.

यह कहा जा सकता है कि चुनावों में कभी-कभी बागी पासा पलट देते है. सारे राजनीतिक समीकरण हवा हो जाते है. क्योंकि बागी उस क्षेत्र में ' ब्रांड' के रूप में उतरता है. लेकिन उदयपुर लोकसभी सीट से भाजपा की ओर से अभी कोई बागी सामने नहीं आया. इंतजार है कांग्रेस की लिस्ट का जिसके बाद देखना होगा कि क्या कोई बागी इस सीट पर उतरता है या नहीं.

रवींद्र श्रीमाली, पूर्व युआईटी चेयरमैन

राजस्थान में लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है जहां भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी तो वहीं बहुत जल्द कांग्रेस की भी प्रत्याशियों की घोषणा होने वाली है. ऐसे में अब देखना होगा क्या इस बार भी विधानसभा चुनाव की तरह राजस्थान में बागी दोनों पार्टियों की गणित बिगाड़ते हैं. जी हां जिस तरह 2018 विधानसभा चुनाव में दोनों राजनीतिक पार्टियों की बागी प्रत्याशियों ने सभी समीकरणों को बिगाड़ दिया था. ऐसे में अब देखना होगा उदयपुर लोकसभा सीट पर क्या बागी खेल बिगाड़ पाता है.

आइए आपको समझाता है उदयपुर लोकसभा सीट के जातिगत आंकड़े. अगर बीते चुनाव के ट्रेन पर नजर डाले तो राजपूत ब्राह्मण वैश्य समुदाय का झुकाव बीजेपी के पक्ष में रहता है और जाट गुर्जर मीणा और दलित समुदाय का झुकाव कांग्रेस के पक्ष में रहा है. बता दें कि अनुसूचित जनजाति और पिछड़ी जातियों का मत स्थानीय समीकरण के हिसाब से दोनों दलों में विभाजित होता रहा है. उदयपुर लोकसभा की कुल जनसंख्या 2952477 है जिसका 81% हिस्सा ग्रामीण और 18% हिस्सा शहरी है. जबकि कुल आबादी का 5.5 फीसदी अनुसूचित जाति और 59.8 फीसदी अनुसूचित जनजाति है, जिस में मीणा शामिल है.

ऐसे में सीट पर मीणा समुदाय का वोट काफी महत्वपूर्ण है, जिसके चलते इस सीट पर जहां भाजपा ने अर्जुन लाल मीणा को फिर से टिकट दिया है तो वहीं कांग्रेस भी रघुवीर मीणा को टिकट देने के मूड में नजर आ रही है. लेकिन इन दोनों ही प्रत्याशियों के लिए इस बार का चुनाव आसान नहीं है क्योंकि उदयपुर लोकसभा सीट पर इस बार भारतीय ट्राइबल पार्टी ने भी मैदान में उतरने का निर्णय कर लिया है. जी हां हम बात कर रहे हैं बीटीपी की जिसने विधानसभा चुनाव में मेवाड़ संभाग की 3 सीटों पर जीत हासिल कर सभी को चकित कर दिया था.

बता दें कि उदयपुर लोकसभा सीट पर जहां भारतीय जनता पार्टी की ओर से अर्जुन लाल मीणा को टिकट देने के बाद अब तक कोई भी बागी चुनाव लड़ने के मूड में नहीं दिखाई दे रहा तो वहीं कांग्रेस पार्टी में इस सीट पर रघुवीर मीणा का नाम लगभग फाइनल है. ऐसे में भारतीय ट्राईबल पार्टी अगर इस सीट पर मीणा प्रत्याशी को मौका देती है तो ऐसे में उदयपुर लोकसभा सीट में मुकाबला काफी दिलचस्प हो जाएगा. क्योंकि बीते विधानसभा चुनाव में बीटीपी ने मेवाड़ संभाग में शानदार प्रदर्शन किया था.

आपको बता दें चर्चा यह भी है कि सीडब्ल्यूसी सदस्य और पूर्व सांसद रघुवीर मीणा को 2018 विधानसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़ाने वाली रेशमा मीणा एक बार फिर लोकसभा में बीटीपी की उम्मीदवार हो सकती है.


कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि उदयपुर लोकसभा सीट पर बागी प्रत्याशी के तौर पर अभी दोनों ही राजनीतिक दलों का कोई नेता खुलकर सामने नहीं आया, लेकिन इन दोनों ही पार्टियों के रूठे नेता भारतीय ट्राइबल पार्टी से लगातार संपर्क में है. ऐसे में अब देखना होगा की इन लोकसभा चुनाव में भी क्या बीटीपी फिर कोई कमाल दिखाती है. हालांकि इस पूरे मसले पर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस चुनाव में स्थानीय मुद्दे नहीं बल्कि राष्ट्रीय मुद्दे काम करेंगे जिसके चलते बागी नेताओं का भविष्य इस बार चुनाव में नहीं नजर आता. आम जनता बागियों को वोट देकर अपना वोट खराब नहीं करेगी और सिर्फ राष्ट्रीय पार्टी के नेता ही इस चुनाव में सीधी टक्कर में रहेंगे.

Intro:पूरे देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है ऐसे में राजस्थान भी इससे अछूता नहीं है और राजस्थान में भी दोनों ही राजनीतिक दलों के प्रत्याशी चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं लेकिन इस चुनाव में क्या उदयपुर लोकसभा सीट पर बागी फिर से प्रमुख राजनीतिक दलों की सियासी गणित बिगाड़ लेंगे पेश है एक रिपोर्ट


Body:राजस्थान में लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है जहां भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी तो वहीं बहुत जल्द कांग्रेस की भी प्रत्याशियों की घोषणा होने वाली है ऐसे में अब देखना होगा क्या इस बार भी विधानसभा चुनाव की तरह राजस्थान में बागी दोनों पार्टियों की गणित बिगड़ते हैं जी हां जिस तरह 2018 विधानसभा चुनाव में दोनों राजनीतिक पार्टियों की बागी प्रत्याशियों ने सभी समीकरणों को बिगाड़ दिया था ऐसे में अब देखना होगा उदयपुर लोकसभा सीट पर क्या बागी खेल बिगाड़ पाता है

आइए आपको समझाता है उदयपुर लोकसभा सीट के जातिगत आंकड़े अगर बीते चुनाव के ट्रेन पर नजर डाले तो राजपूत ब्राह्मण वैश्य समुदाय का झुकाव बीजेपी के पक्ष में रहता है और जाट गुर्जर मीणा और दलित समुदाय का झुकाव कांग्रेस के पक्ष में रहा है बता दें कि अनुसूचित जनजाति और पिछड़ी जातियों का मत स्थानीय समीकरण के हिसाब से दोनों दलों में विभाजित होता रहा है उदयपुर लोकसभा की कुल जनसंख्या 2952477 है जिसका 81% हिस्सा ग्रामीण और 18% हिस्सा शहरी है जबकि कुल आबादी का 5.5 फीत जी अनुसूचित जाति और 59.8 फीस दी अनुसूचित जनजाति है जिस में मीणा शामिल है ऐसे में सीट पर मीणा समुदाय का वोट काफी महत्वपूर्ण है जिसके चलते इस सीट पर जहां भाजपा ने अर्जुन लाल मीणा को फिर से टिकट दिया है तो वहीं कांग्रेस भी रघुवीर मीणा को टिकट देने के मूड में नजर आ रही है लेकिन इन दोनों ही प्रत्याशियों के लिए इस बार का चुनाव आसान नहीं है क्योंकि उदयपुर लोकसभा सीट पर इस बार भारतीय ट्राइबल पार्टी ने भी मैदान में उतरने का निर्णय कर लिया है जी हां हम बात कर रहे हैं बीटीपी की जिसने विधानसभा चुनाव में मेवाड़ संभाग की 3 सीटों पर जीत हासिल कर सभी को चकित कर दिया था

बता दें कि उदयपुर लोकसभा सीट पर जहां भारतीय जनता पार्टी द्वारा अर्जुन लाल मीणा को टिकट देने के बाद अब तक कोई भी बागी चुनाव लड़ने के मूड में नहीं दिखाई दे रहा तो वहीं कांग्रेस पार्टी में इस सीट पर रघुवीर मीणा का नाम लगभग फाइनल है ऐसे में भारतीय ट्राईबल पार्टी अगर इस सीट पर मीणा प्रत्याशी को मौका देती है तो ऐसे में उदयपुर लोकसभा सीट में मुकाबला काफी दिलचस्प हो जाएगा क्योंकि बीते विधानसभा चुनाव में बीटीपी ने मेवाड़ संभाग में शानदार प्रदर्शन किया था आपको बता दें चर्चा यह भी है कि सीडब्ल्यूसी सदस्य और पूर्व सांसद रघुवीर मीणा को 2018 विधानसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़ाने वाली रेशमा मीणा एक बार फिर लोकसभा में बीटीपी की उम्मीदवार हो सकती है



Conclusion:कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि उदयपुर लोकसभा सीट पर बागी प्रत्याशी के तौर पर अभी दोनों ही राजनीतिक दलों का कोई नेता खुलकर सामने नहीं आया लेकिन इन दोनों ही पार्टियों के रूठे नेता भारतीय ट्राइबल पार्टी से लगातार संपर्क में है ऐसे में अब देखना होगा की इन लोकसभा चुनाव में भी क्या बीटीपी फिर कोई कमाल दिखाती है हालांकि इस पूरे मसले पर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस चुनाव में स्थानीय मुद्दे नहीं बल्कि राष्ट्रीय मुद्दे काम करेंगे जिसके चलते बागी नेताओं का भविष्य इस बार चुनाव में नहीं नजर आता आम जनता बागियों को वोट देकर अपना वोट खराब नहीं करेगी और सिर्फ राष्ट्रीय पार्टी के नेता ही इस चुनाव में सीधी टक्कर में रहेंगे
Last Updated : Mar 27, 2019, 11:26 PM IST
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