टोंक. महिला शासिका रजिया सुल्तान और उसके प्रेमी याकूत की मजार टोंक में अल्तमश की मस्जिद के नीचे दरियाशाह की बावड़ी के पास स्थित है. लगभग 20×20 चबूतरे पर शाही निशान आज भी मौजूद है. पास ही रजिया की मजार के साथ याकूत की मजार है. ऐसे में क्या यह मान लिया जाए कि वो प्रेम का दूसरा नाम मरने के बाद अमर होना ही है.?
टोंक के इतिहासकार का दावा है कि यह मजार रजिया और याकूत के ही हैं और इतिहास में इसके कई प्रमाण भी हैं कि रजिया और उनके पिता ने टोंक की सरजमी पर अपने लाव-लश्कर के साथ डेरा डाला था. दिल्ली सल्तनत और गुलाम वंश की पहली महिला शासक रही रजिया और याकूत की माने जाने वाली मजार को फिल्मकार कमाल अमरोही ने टोंक आकर 'रजिया सुल्तान' नामक फिल्म मे फिल्माया था.
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इतिहासकारों ने रजिया के अपने गुलाम सैनिक याकूत के रिश्तों को बड़ा नजदीकी और प्रेम संबंध वाला बताया है. तो क्या यह सच है कि मरने के बाद दोनों को एक दूसरे के पास दफन किया गया और पास-पास मजारें बनाई गई. इन मजारों पर मौजूद शाही निशान और केलोग्राफी में लिखावट इतिहासकार सादिक अली के दावों को पुख्ता करती है, पर आज वही मजार उपेक्षा का शिकार नजर आती है. न ही इस पर पुरातत्व विभाग गम्भीर नजर आता है और न ही जिला प्रशासन को इसकी उपेक्षा की चिंता हैं.
इस मजार पर बनी है फिल्म...
टोंक के पुरानी टोंक क्षेत्र में रसिया की छतरी के नीचे स्थित रजिया सुल्तान और याकूत की मजारों को भले ही फिल्मकार कमाल अमरोही ने अपनी फिल्म में रजिया सुल्तान फिल्माया. पास ही पहाड़ पर रजिया के पिता अल्तमश की बनाई गई मस्जिद मौजूद हो, मजार पर गुलाम वंश की शाही चिन्ह मौजूद होने के साथ सांकेतिक भाषा मे केलोग्राफी में रजिया सुल्तान और याकूत के नाम पत्थरों को जोड़कर लिखे हों, कैथल के युद्ध में अपने ही भाईयों से पराजय के बाद रजिया ने भागकर राजस्थान की ओर रूख किया हो, इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर टोंक के इतिहास कार डा. सादिक अली ने अपने रिसर्च में इस बात को साबित करने की कोशिश की है. कुछ सालों से इतिहासकार ने टोंक में स्थित इस मजार को भारत की पहली महिला शासिका सुल्तान रजिया का मजार बताकर कुछ तर्क दिये हैं. वहीं टोंक की जनता सैकड़ों साल से इस बात को स्वीकार करती है कि रजिया सुल्तान की असली मजार यही हैं पर पुरातत्व विभाग और जिला प्रशासन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.
क्या कहना है इतिहासकार का...
राजस्थान की एकमात्र नवाबी रियासत रही टोंक का इतिहास गौरवशाली रहा है. वहीं इस शहर को मजारों और मकबरों का शहर इसलिये कहा जाता है कि यहां से होकर न सिर्फ दिल्ली से लाव-लश्कर यहां से गुजरे और टोंक की बनास नदी पर कारवां ठहरा, बल्कि राजपुताना और रणथंभौर का रास्ता भी टोंक से गुजरता था. टोंक में मौजूद निशान इस बात की गवाही देते रहे हैं कि टोंक की भौगोलिक स्थिति और विश्व के प्रमुख म्यूजियमों में से एक लंदन के म्यूजियम में मौजूद साक्ष्य भी गवाही देते हैं कि दिल्ली सल्तनत और गुलाम वंश की पहली महिला शासक रजिया सुल्तान की असली मजार टोंक में ही है, पर इसकी उपेक्षा इतिहासकार लोगों की पीड़ा को और बढ़ा देती है.
कुछ ये बताया राजकीय महाविद्यालय की प्राचार्य ने...
महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. एस. आशा ने कहा कि राजस्थान में जहां पर्यटन की अपार संभावनाएं नजर आती हैं. वहीं महत्व के स्थलों के प्रति सरकार और पुरातत्व व प्रर्यटन विभाग की लापरवाही और उपेक्षा को देखकर कहा जा सकता है कि हमारे देश को यूं ही सोने की चिड़िया नहीं कहा जाता था. पूरी दुनिया का पर्यटक जब भी भरत आता है तो उसमें से हर दूसरा विदेशी पर्यटक राजस्थान उसके गौरवशाही इतिहास से रूबरू होने आता है, पर टोंक में मौजूद दिल्ली सल्तनत और गुलाम वंश की पहली महिला शासक रजिया सुल्ताना व याकूत की मजारों को उपेक्षा का शिकार देखकर लापरवाही भी उजागर होती है.