श्रीगंगानगर : देश ने भले ही विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी सफलताएं प्राप्त कर ली हों, लेकिन अब भी भारत की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को भूखे पेट सोना पड़ता है. क्योंकि भारी मात्रा में अनाज पैदा होने के बावजूद यह जरूरतमंद लोगों तक पहुंच नहीं पाता है.
एक आंकड़े के मुताबिक भारत में हर दिन 19 करोड़ 40 लाख लोग भूखे सोते हैं. यह आंकड़ा चीन में भुखमरी के शिकार लोगों से कहीं अधिक है. कुल उत्पादित खाद्य सामग्री का 40 प्रतिशत भाग भारत में हर साल खराब हो जाता है.
'सुप्रीम कोर्ट ने भी अन्न की बर्बादी को माना है अपराध'
'अन्न की बर्बादी एक अपराध है' अनाज की बर्बादी पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी गरीबों की पीड़ा को व्यक्त करने वाली है. सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र से कहा था कि गोदामों में गेहूं सड़ा देने से अच्छा है, उसे गरीबों में बांट दिया जाए.
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अनाज को सड़ाने के बजाय जरूरतमंदों में बांटने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद सरकारों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी और हर साल की तरह इस साल फिर राजस्थान में हजारों बोरी गेहूं बिना किसी रखरखाव से सड़ गया.
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राजस्थान के प्रमुख शहरों सहित कई अन्य जगहों पर मानसून ने दस्तक दे दी है. बारिश की वजह से खुले में रखी हजारों गेहूं की बोरियां पानी में भीग गई हैं. समुचित रखरखाव नहीं होने से खुले में पड़ा यह गेहूं भीगने के बाद अब सड़ांध मारने लगा है. लेकिन मंडी व्यापारी और खरीद एजेंसियों के अधिकारी अपनी कारस्तानी से इस गेहूं को सरकारी गोदामों में भेजने की तैयारी कर रहे हैं.
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कृषि जिंसों की बिक्री का सीजन चल रहा है. जिसके तहत भारी मात्रा में कृषि की जिंस मंडियों में लाई गई है. ऐसे में सड़क या जमीन पर रखी कृषि जिंसों के बारिश से खराब होने की सबसे ज्यादा आशंका रहती है. और हर साल बारिश में यही हो रहा है. बारिश के आते ही सारी फसल भीगकर खराब हो जाती है. लेकिन इससे बचने के लिए कोई रास्ता नहीं ढूंढा गया है.
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'हजारों टन की हो रही बर्बादी'
जिस देश में करोड़ों लोग भर पेट भोजन नहीं कर पाते हो. वहां हर साल अनाज मंडियों और सरकारी गोदामों में हजारों टन की बर्बादी शर्मसार करने वाली है. बारिश में भीगने के बाद अनाज के बर्बाद होने का यह कोई पहला मामला नहीं है. हर साल बारिश आती तो है खुले में रखा अनाज बर्बाद हो जाता है.
यही नहीं देश में एफसीआई के गोदामों में हर साल लाखों टन अनाज खराब होता है. केंद्रीय सरकार ने गरीबों का पेट भरने के लिए खाद्य सुरक्षा कानून तो बना दिया, लेकिन सड़ते हुए अन्न को बचाने के लिए अब तक कोई ठोस उपाय नहीं सोचा है. यदि भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं की जा सकी तो खाद्य सुरक्षा कानून के तहत गरीबों को यही सड़ा गला गेहूं वितरण कर दिया जाएगा.
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'फंगस लगे गेहूं को गोदामों में भेजनी की हो रही कवायद'
श्रीगंगानगर की अनाज मंडी में बारिश से गेहूं पूरी तरह से भीग चुका है. जिसे गोदामों के बाहर सुखाया जा रहा है. इस गेहूं से बदबू आने लगी है. यानी की अब ये खाने लायक नहीं है. लेकिन मंडी क व्यापारियों और FCI के अधिकारियों की कारस्तानी देखिए कि इस फंगस लगे गेहूं को भी सूखाकर एफसीआई के गोदामों में भेजने की तैयारी की जा रही है.
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गेहूं को धूप में सुखाने के बाद इसमें से निकलने वाला सही गेहूं सरकारी गोदामों में भेजने की तैयारी है. जबकि हकीकत यह है कि भीगा गेहूं अब इस कदर खराब हो चुका है कि जानवरों के खाने लायक भी नहीं रहा है.
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सड़ांध मार रहे गेहूं को सरकारी गोदामों में भेजने की बात को अधिकारी भले ही कैमरे पर स्वीकार नहीं कर रहे हैं. लेकिन मंडी में काम करने वाले मजदूर, व्यापारी दबी जुबान में यह स्वीकार कर रहे हैं कि बारिश से सड़ा गेहूं एफसीआई गोदामों में ही भेजा जाएगा और वहां से रसद डिपो भेजकर बीपीएल और एपीएल उपभोक्ताओं के खाने के लिए दिया जाएगा.
इलाके की धान मंडियों में करोड़ों का गेहूं खराब हो गया है इसका नुकसान कौन भरेगा? इस सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है. नियम तो कहता है कि माल बिकने के बाद जिम्मेदारी खरीदार की है.