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श्रीगंगानगर: LOCKDOWN का असर बेरों पर भी, पेड़ों पर ही सड़ रहे फल

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Published : Apr 29, 2020, 7:58 PM IST

पेड़ों पर लगे मीठे बेर अपने टूटने का इंतजार करते रहे. लेकिन लॉकडाउन की वजह से उन्हें तोड़ने कोई नहीं पहुंच सका और बेर पेड़ पर ही सड़कर खराब होना शुरू हो गए. जो टूटे भी वो बिक नहीं पाए. जिससे बेर के व्यापार से जुड़े लोगों को खासा नुकसान झेलना पड़ रहा है.

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LOCKDOWN का असर बेरों पर भी

श्रीगंगानगर. कोरोना संक्रमण के चलते लागू हुए लॉकडाउन से हर वर्ग परेशान है. लॉकडाउन से उद्योग धंधों से जुडे कारोबार जहां पूरी तरह से ठप हो गए हैं. वही खेती से जुड़े धंधों पर भी असर पड़ा है.

पेड़ों पर ही सड़ रहे फल

लॉकडाउन के दौरान बाजार बंद होने और लोग अपने ही घरों में ही कैद हैं. जिसके चलते खेती से जुडे प्रोडक्ट नहीं बिक पा रहे हैं. इससे किसानों और ठेकेदारों को काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है. इन ठेकेदारों ने कर्ज लेकर बेर लगाए. लेकिन अब बेर नहीं बिकने से किसान कर्ज तले डूबते हुए नजर आ रहे हैं.

पहले नेचर फिर लॉकडाउन ने किया बर्बाद

पिछले 20 सालों से बेर के कारोबार से जुड़े सफी अली जैदी बताते है कि इस बार ना केवल अकेले लॉकडाउन से बर्बादी हुई है, बल्कि प्रकृति ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है. बेरी के बाग को ठेके पर लेकर काम करने वाले जैदी बताते हैं कि 12 बीघा के बेरी बाग में उनका 7 लाख 90 हजार रुपए का खर्चा हो गया है. लेकिन लॉकडाउन के चलते पूरी रकम डूब गई है.

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LOCKDOWN का असर बेरों पर भी

यह भी पढे़ं- SPECIAL: कोरोना से लगातार लोहा ले रहा है जोधपुर, 30 फीसदी रिकवरी रेट के साथ चौंकाया

50 प्रतिशत हुआ नुकसान

जैदी ने बताया कि 12 बीघा की बेरी के बाग में उसके 7 लाख 90 हजार रुपए खर्च हो चुके हैं. जिसमें से एक रुपया भी वापस नहीं हुआ है. ऐसे में पहली बार लॉकडाउन के चलते सारी पूंजी खत्म हो गई है. सबसे पहले कोहरे की वजह से बेरी के बाग में 50% नुकसान हुआ है. उसके बाद टिड्डी आने से बाग को बचाया गया और अब कोरोना के कारण लगाए गए लॉकडाउन ने कसर पूरी कर दी.

जैदी ने कहा कि लॉकडाउन लगने से पहले दस दिनों तक घर से नहीं निकले और बाद में अनुमति नहीं मिलने के कारण वे बेर को पंजाब और हरियाणा में नहीं ले जा पाए. जैदी के मुताबिक बेर तुड़ाई के 60 हजार लेबर पर खर्चा हुआ है. जबकि बेर की बिक्री 50 हजार रुपए की हुई है. ऐसे में यहां भी नुकसान हुआ है. जैदी की मानें तो 10 लाख रुपए का बेर बिकता. तब जाकर कुछ मुनाफा होता लेकिन कोरोना ने पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है.

श्रीगंगानगर. कोरोना संक्रमण के चलते लागू हुए लॉकडाउन से हर वर्ग परेशान है. लॉकडाउन से उद्योग धंधों से जुडे कारोबार जहां पूरी तरह से ठप हो गए हैं. वही खेती से जुड़े धंधों पर भी असर पड़ा है.

पेड़ों पर ही सड़ रहे फल

लॉकडाउन के दौरान बाजार बंद होने और लोग अपने ही घरों में ही कैद हैं. जिसके चलते खेती से जुडे प्रोडक्ट नहीं बिक पा रहे हैं. इससे किसानों और ठेकेदारों को काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है. इन ठेकेदारों ने कर्ज लेकर बेर लगाए. लेकिन अब बेर नहीं बिकने से किसान कर्ज तले डूबते हुए नजर आ रहे हैं.

पहले नेचर फिर लॉकडाउन ने किया बर्बाद

पिछले 20 सालों से बेर के कारोबार से जुड़े सफी अली जैदी बताते है कि इस बार ना केवल अकेले लॉकडाउन से बर्बादी हुई है, बल्कि प्रकृति ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है. बेरी के बाग को ठेके पर लेकर काम करने वाले जैदी बताते हैं कि 12 बीघा के बेरी बाग में उनका 7 लाख 90 हजार रुपए का खर्चा हो गया है. लेकिन लॉकडाउन के चलते पूरी रकम डूब गई है.

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50 प्रतिशत हुआ नुकसान

जैदी ने बताया कि 12 बीघा की बेरी के बाग में उसके 7 लाख 90 हजार रुपए खर्च हो चुके हैं. जिसमें से एक रुपया भी वापस नहीं हुआ है. ऐसे में पहली बार लॉकडाउन के चलते सारी पूंजी खत्म हो गई है. सबसे पहले कोहरे की वजह से बेरी के बाग में 50% नुकसान हुआ है. उसके बाद टिड्डी आने से बाग को बचाया गया और अब कोरोना के कारण लगाए गए लॉकडाउन ने कसर पूरी कर दी.

जैदी ने कहा कि लॉकडाउन लगने से पहले दस दिनों तक घर से नहीं निकले और बाद में अनुमति नहीं मिलने के कारण वे बेर को पंजाब और हरियाणा में नहीं ले जा पाए. जैदी के मुताबिक बेर तुड़ाई के 60 हजार लेबर पर खर्चा हुआ है. जबकि बेर की बिक्री 50 हजार रुपए की हुई है. ऐसे में यहां भी नुकसान हुआ है. जैदी की मानें तो 10 लाख रुपए का बेर बिकता. तब जाकर कुछ मुनाफा होता लेकिन कोरोना ने पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है.

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