सिरोही. जिले को यूं तो देव नगरी के नाम से जाना जाता है. जिलेभर में कई धार्मिक और प्राचीन स्थल है. जिनकी अपने आप में खास मान्यता है, पर सिरोही जिले के जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर अजारी गांव है. जहां पर मारकंडेश्वर धाम में मां सरस्वती का मंदिर है. जहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और माता के दर्शन करते हैं.
इस मंदिर की सबसे बड़ी खास बात यह है कि यहां कई विद्वानों ने तपस्या की है. गुप्त काल में निर्मित यह मंदिर कई सदियों से बुद्धि और ज्ञान का बल चाहने वालों के लिए प्रमुख स्थान रहा है. बसंत पंचमी के दिन यहां पर विशेष आयोजन होते हैं. देशभर से श्रद्धालु विद्यादायिनी मां सरस्वती के दर्शने के लिए आजारी पहुंचते हैं.
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यहां मां को चढ़ता है पेन, कॉपी और पुस्तक का चढ़ावा...
जिले के अजारी गांव के मार्कंडेश्वर धाम का सरस्वती मंदिर देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां पर बच्चों की वाणी, शिक्षा और बुद्धि के लिए मन्नतें मांगी जाती है. मान्यता है कि यहां मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है. मान्यतानुसार वहां कॉपी किताब और पेंसिल का प्रसाद चढ़ाया जाता है. विकार भी सही होने पर चांदी की जीभ चढ़ाते हैं.
कालिदास की है तपोभूमि...
इस धाम को लेकर यह मान्यता है कि यहां कालिदास जैसे साधक तपस्या कर चुके हैं. यह वही स्थान है, जहां बाल ऋषि मार्कंडेय ने यम से बचने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर मृत्यु पर विजय पाई थी.
गूंगे-बहरे हो जाते हैं भले-चंगे...
मंदिर के पुजारी भरत रावल ने बताया कि यह मंदिर अपने आप में बहुत ही पौराणिक मंदिर है. जिन बच्चों को वाणी विकार हो या फिर वह बोलने पर हकलाते हैं या तुतलाते हैं, या ऐसे बच्चे जो पढ़ाई में कमजोर है. साथ ही वह बच्चे भी जो मंदबुद्धि हो, उनकी कमियों को दूर करने के लिए श्रद्धालु मां सरस्वती से मन्नत मांगते हैं. पुजारी के अनुसार मन्नत पूरी होने पर मां को चांदी की जीभ अर्पित की जाती है.
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सरस्वती माता की इस पावन स्थल पर यूं तो साल भर श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है, लेकिन बसंत पंचमी के अवसर पर इस धाम पर एक खास रौनक रहती है. यहां बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती का मेला लगता है. साथ ही मंदिर में हवन यज्ञ के कार्यक्रम भी आयोजित की जाते हैं.