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SPECIAL : परमात्मा की संदेशवाहक दादी हृदयमोहिनी का देवलोकगमन...140 देशों में ब्रह्मकुमारी केंद्रों में शोक की लहर - Gulzar Dadi passed away

सिरोही के माउंट आबू स्थित प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की प्रमुख प्रशासिका राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी का गुरुवार सुबह 10.30 बजे देवलोकगमन हो गया. 93 वर्ष की आयु में उन्होंने मुम्बई के सैफी अस्पताल में अंतिम सांस ली. उन्हें दिव्य दृष्टि का वरदान प्राप्त था.

dadi Hriday Mohini passed away, Prajapita Brahmakumari Ishwari University, Rajyogini Dadi Hridaymohini
दादी हृदयमोहिनी का देवलोकगमन
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Published : Mar 11, 2021, 8:33 PM IST

सिरोही. ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुखिया राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी के पार्थिव शरीर को एयर एंबुलेंस से शांतिवन लाया गया. अंतिम संस्कार संस्थान के शांतिवन में 13 मार्च को किया जाएगा. दादी के निधन पर राष्ट्पति से लेकर प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने शोक व्यक्त करते हुए भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी है.

परमात्मा की संदेशवाहक दादी हृदयमोहिनी का निधन

ब्रह्माकुमारीज के सूचना निदेशक बीके करुणा ने बताया कि राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनीजी का स्वास्थ्य कुछ समय से ठीक नहीं चल रहा था. मुम्बई के सैफी हॉस्पिटल में उनका इलाज चल रहा था. दीदीजी की निधन की सूचना पर संस्थान के भारत सहित विश्व के 140 देशों में स्थित सेवा केन्द्रों पर शोक की लहर दौड़ गई. साथ ही ब्रह्माकुमारीज के आगामी कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया गया है.

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चार्टर से लाया गया पार्थिव शरीर

वर्ष 1928 में कराची में हुआ था जन्म

दादी हृदयमोहिनी के बचपन का नाम शोभा था. उनका जन्म वर्ष 1928 में कराची में हुआ था. वे जब 8 वर्ष की थीं तब संस्था के साकार संस्थापक ब्रह्मा बाबा के ओम निवास बोर्डिंग स्कूल में उन्होंने दाखिला लिया.

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ब्रह्माकुमारीज के आगामी कार्यक्रम स्थगित

यहां उन्होंने चौथी कक्षा तक पढ़ाई की. स्कूल में बाबा और संस्थान की प्रथम मुख्य प्रशासिका के स्नेह, प्यार और दुलार ने इतना प्रभावित किया कि छोटी सी उम्र में ही अपना जीवन उनके समान बनाने की निश्चय किया.

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माउंट आबू स्थिति प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय

चौथी कक्षा तक की थी पढ़ाई

दादी हृदयमोहिनी ने मात्र चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई की थी. लेकिन तीक्ष्ण बुद्धि होने से वे जब भी ध्यान में बैठतीं तो शुरुआत के समय से ही दिव्य अनुभूतियां होने लगीं. यहां तक कि उन्हें कई बार ध्यान के दौरान दिव्य आत्माओं के साक्षात्कार हुए. जिनका जिक्र उन्होंने ध्यान के बाद ब्रह्मा बाबा और अपनी साथी बहनों से भी किया.

dadi Hriday Mohini passed away, Prajapita Brahmakumari Ishwari University, Rajyogini Dadi Hridaymohini
आरंभ से दी दादी की विलक्षणता को मानने वालों की लंबी तादाद थी

शांत, गंभीर और गहन व्यक्तित्व की प्रतिमूर्ति

दादी हृदयमोहिनी की सबसे बड़ी विशेषता थी उनका गंभीर व्यक्तित्व. बचपन में जहां अन्य बच्चे स्कूल में शरारतें करते और खेल-कूद में दिलचस्पी के साथ भाग लेते थे. वहीं वे गहन चिंतन की मुद्रा में हमेशा रहतीं.

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परमात्मा की संदेशवाहक दादी

धीरे-धीरे उम्र के साथ जब वे मात्र 8-9 वर्ष की थीं तब से उन्हें दिव्य लोक की अनुभूति होने लगी. जब वे खुद को आत्मा समझकर परमात्मा का ध्यान करतीं तो उन्हें यह आभास ही नहीं रहता था कि वह इस जमीन पर हैं.

सादगी, सरलता और सौम्यता की थीं मिसाल

दादी का पूरा जीवन सादगी, सरलता और सौम्यता की मिसाल रहा. बचपन से ही विशेष योग-साधना के चलते दादी का व्यक्तित्व इतना दिव्य हो गया था कि उनके संपर्क में आने वाले लोगों को उनकी तपस्या और साधना की अनुभूति होती थी. उनके चेहरे पर तेज का आभामंडल उनकी तपस्या की कहानी साफ बयां करता था.

dadi Hriday Mohini passed away, Prajapita Brahmakumari Ishwari University, Rajyogini Dadi Hridaymohini
दादी की सादगी का हर कोई कायल था

पढ़ें- ब्रह्माकुमारी संस्थान प्रमुख दादी हृदयमोहिनी का 93 वर्ष की उम्र में निधन, माउंट आबू में होगा अंतिम संस्कार

1969 में ब्रह्मा बाबा के निधन के बाद बनीं परमात्म दूत

18 जनवरी 1969 में संस्था के संस्थापक ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने के बाद परमात्म आदेशानुसार दादी हृदयमोहिनी ने परमात्मा संदेशवाहक और दूत बनकर लोगों के लिए आध्यात्मिक ज्ञान और दिव्य प्रेरणा देने की भूमिका निभाई.

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140 देशों में ब्रह्मकुमारी केंद्रों में शोक की लहर

दादीजी ने 2016 तक संस्थान के मुख्यालय माउंट आबू में हर वर्ष आने वाले लाखों भाई-बहनें के लिए परमात्मा का दिव्य संदेश देकर योग-तपस्या बढ़ाने के लिए प्रेरित किया. एक बार चर्चा के दौरान दादीजी ने बताया था कि जब में मन की शक्ति से वतन में जाती हूं तो आत्मा तो शरीर में रहती है, लेकिन मुझे इस शरीर का भान नहीं रहता. उस दौरान उच्चारित वचन मुझे भी याद नहीं रहते.

dadi Hriday Mohini passed away, Prajapita Brahmakumari Ishwari University, Rajyogini Dadi Hridaymohini
दक्षिण भारत में भी दादी के प्रति लोगों में सम्मान था

बाबा से दादीजी को हुए थे साक्षात्कार

एक साक्षात्कार के दौरान दादी ने बताया था कि जब वह 9 वर्ष की थीं और अपने मामा के यहां गईं थीं. तभी उनके घर ब्रह्मा बाबा का आना हुआ. यहां बाबा से उन्हें दिव्य साक्षात्कार हुआ था. बाबा हम बच्चों का इतना ख्याल रखते थे कि खुद अपने हाथ से दूध में काजू-बादाम डालकर खिलाते थे. बाबा का प्यार, स्नेह इतना मिला कि कभी भी लौकिक मां-बाप की याद नहीं आई.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर दुख जताया है

14 साल तक हैदराबाद में रहकर की कठिन साधना

दादी हृदयमोहिनी ने 14 वर्ष तक बाबा के सानिध्य में रहकर कठिन योग-साधना की. इन वर्षों में खाने-पीने को छोडक़र दिन-रात योग साधना में वह लगी रहती थीं. इसके साथ ही बाबा एक-एक सप्ताह का मौन कराते थे. तभी से दादी का स्वभाव बन गया था कि जितना काम हो उतना ही बात करती थीं. अंत समय तक वह मौन में रहीं.

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प्रणब दा के साथ दादी की स्मृतियां

नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय ने प्रदान की डिग्री

राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनीजी को नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय, बारीपाड़ा ने डी लिट की उपाधि से विभूषित किया. दादी को यह उपाधि उड़ीसा में प्रभु के संदेशवाहक के रूप में लोगों में आध्यात्मिकता का प्रचार-प्रसार करने और समाजसेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान पर प्रदान की गई.

dadi Hriday Mohini passed away, Prajapita Brahmakumari Ishwari University, Rajyogini Dadi Hridaymohini
परमात्मा की संदेशवाहक गुलजार दादी

संस्था की 80वीं वर्षगांठ पर मुख्यालय माउण्ट आबू, आबू रोड के शांतिवन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय महासम्मेलन एवं सांस्कृतिक महोत्सव में 28 मार्च 2017 को नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो प्रफुल्ल कुमार मिश्रा ने उपाधि प्रदान की. उन्होंने दादी के कार्यों की सराहना करते हुए इसे गौरव का विषय बताया था.

दादी जानकी के निधन के बाद बनीं थीं मुख्य प्रशासिका

पिछले साल 27 मार्च 2020 में संस्थान की पूर्व मुख्य प्रशासिका 104 वर्षीय राजयोगिनी दादी जानकी के निधन के बाद आपको संस्थान की मुख्य प्रशासिका नियुक्त किया गया था. अस्वस्थ होने के बाद भी उन्हें दिन-रात लोगों का कल्याण करने की भावना लगी रहती थी. दादी मुंबई से ही संस्थान की गतिविधियों का सारा समाचार लेतीं और समय प्रति समय निर्देशन देतीं.

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लालकृष्ण आडवाणी के साथ स्नेहिल क्षण

दादी को कभी विचलित या उदास नहीं देखा

दादी हृदयमोहिनीजी की निजी सचिव ब्रह्माकुमारी नीलू बहन ने बताया कि मैं खुद को भाग्यशाली समझती हूं कि मुझे बचपन से ही दादीजी के अंग-संग रहने का सौभाग्य मिला. दादीजी हॉस्पिटल में भर्ती होने के बाद भी कभी उन्हें मन से विचलित या परेशान होते नहीं देखा. बीमारी की स्थिति में भी उनका चेहरा और मन सदा परमात्मा के ध्यान में लगा रहता था.

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पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को आशीर्वाद देतीं दादी हृदयमोहिनी

प्रात:काल से शुरू होता था ध्यान साधना का दौर

ब्रह्माकुमारी नीलू बहन ने बताया कि दादीजी हमेशा तीन बजे ब्रह्ममुहूर्त में उठ जाती थीं. इसके साथ ही उनकी दिनचर्या की शुरुआत साधना के साथ होती थी. यहां तक कि चलते-फिरते, खाते-पीते ईश्वर के ध्यान में मग्न रहतीं.

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93 वर्ष की आयु में मुंबई के अस्पताल में हुआ निधन

विश्वभर के सेवा केंद्रों पर साधना का दौर जारी

दादी के निधन की सूचना के बाद संस्थान के विश्वभर में स्थित सेवाकेन्द्रों पर साधना का दौर शुरू हो गया है. संस्थान से जुड़े बीके भाई- बहनें दादी के निमित्त विशेष योग साधना में जुट गए हैं.

सिरोही. ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुखिया राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी के पार्थिव शरीर को एयर एंबुलेंस से शांतिवन लाया गया. अंतिम संस्कार संस्थान के शांतिवन में 13 मार्च को किया जाएगा. दादी के निधन पर राष्ट्पति से लेकर प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने शोक व्यक्त करते हुए भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी है.

परमात्मा की संदेशवाहक दादी हृदयमोहिनी का निधन

ब्रह्माकुमारीज के सूचना निदेशक बीके करुणा ने बताया कि राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनीजी का स्वास्थ्य कुछ समय से ठीक नहीं चल रहा था. मुम्बई के सैफी हॉस्पिटल में उनका इलाज चल रहा था. दीदीजी की निधन की सूचना पर संस्थान के भारत सहित विश्व के 140 देशों में स्थित सेवा केन्द्रों पर शोक की लहर दौड़ गई. साथ ही ब्रह्माकुमारीज के आगामी कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया गया है.

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चार्टर से लाया गया पार्थिव शरीर

वर्ष 1928 में कराची में हुआ था जन्म

दादी हृदयमोहिनी के बचपन का नाम शोभा था. उनका जन्म वर्ष 1928 में कराची में हुआ था. वे जब 8 वर्ष की थीं तब संस्था के साकार संस्थापक ब्रह्मा बाबा के ओम निवास बोर्डिंग स्कूल में उन्होंने दाखिला लिया.

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ब्रह्माकुमारीज के आगामी कार्यक्रम स्थगित

यहां उन्होंने चौथी कक्षा तक पढ़ाई की. स्कूल में बाबा और संस्थान की प्रथम मुख्य प्रशासिका के स्नेह, प्यार और दुलार ने इतना प्रभावित किया कि छोटी सी उम्र में ही अपना जीवन उनके समान बनाने की निश्चय किया.

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माउंट आबू स्थिति प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय

चौथी कक्षा तक की थी पढ़ाई

दादी हृदयमोहिनी ने मात्र चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई की थी. लेकिन तीक्ष्ण बुद्धि होने से वे जब भी ध्यान में बैठतीं तो शुरुआत के समय से ही दिव्य अनुभूतियां होने लगीं. यहां तक कि उन्हें कई बार ध्यान के दौरान दिव्य आत्माओं के साक्षात्कार हुए. जिनका जिक्र उन्होंने ध्यान के बाद ब्रह्मा बाबा और अपनी साथी बहनों से भी किया.

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आरंभ से दी दादी की विलक्षणता को मानने वालों की लंबी तादाद थी

शांत, गंभीर और गहन व्यक्तित्व की प्रतिमूर्ति

दादी हृदयमोहिनी की सबसे बड़ी विशेषता थी उनका गंभीर व्यक्तित्व. बचपन में जहां अन्य बच्चे स्कूल में शरारतें करते और खेल-कूद में दिलचस्पी के साथ भाग लेते थे. वहीं वे गहन चिंतन की मुद्रा में हमेशा रहतीं.

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परमात्मा की संदेशवाहक दादी

धीरे-धीरे उम्र के साथ जब वे मात्र 8-9 वर्ष की थीं तब से उन्हें दिव्य लोक की अनुभूति होने लगी. जब वे खुद को आत्मा समझकर परमात्मा का ध्यान करतीं तो उन्हें यह आभास ही नहीं रहता था कि वह इस जमीन पर हैं.

सादगी, सरलता और सौम्यता की थीं मिसाल

दादी का पूरा जीवन सादगी, सरलता और सौम्यता की मिसाल रहा. बचपन से ही विशेष योग-साधना के चलते दादी का व्यक्तित्व इतना दिव्य हो गया था कि उनके संपर्क में आने वाले लोगों को उनकी तपस्या और साधना की अनुभूति होती थी. उनके चेहरे पर तेज का आभामंडल उनकी तपस्या की कहानी साफ बयां करता था.

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दादी की सादगी का हर कोई कायल था

पढ़ें- ब्रह्माकुमारी संस्थान प्रमुख दादी हृदयमोहिनी का 93 वर्ष की उम्र में निधन, माउंट आबू में होगा अंतिम संस्कार

1969 में ब्रह्मा बाबा के निधन के बाद बनीं परमात्म दूत

18 जनवरी 1969 में संस्था के संस्थापक ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने के बाद परमात्म आदेशानुसार दादी हृदयमोहिनी ने परमात्मा संदेशवाहक और दूत बनकर लोगों के लिए आध्यात्मिक ज्ञान और दिव्य प्रेरणा देने की भूमिका निभाई.

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140 देशों में ब्रह्मकुमारी केंद्रों में शोक की लहर

दादीजी ने 2016 तक संस्थान के मुख्यालय माउंट आबू में हर वर्ष आने वाले लाखों भाई-बहनें के लिए परमात्मा का दिव्य संदेश देकर योग-तपस्या बढ़ाने के लिए प्रेरित किया. एक बार चर्चा के दौरान दादीजी ने बताया था कि जब में मन की शक्ति से वतन में जाती हूं तो आत्मा तो शरीर में रहती है, लेकिन मुझे इस शरीर का भान नहीं रहता. उस दौरान उच्चारित वचन मुझे भी याद नहीं रहते.

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दक्षिण भारत में भी दादी के प्रति लोगों में सम्मान था

बाबा से दादीजी को हुए थे साक्षात्कार

एक साक्षात्कार के दौरान दादी ने बताया था कि जब वह 9 वर्ष की थीं और अपने मामा के यहां गईं थीं. तभी उनके घर ब्रह्मा बाबा का आना हुआ. यहां बाबा से उन्हें दिव्य साक्षात्कार हुआ था. बाबा हम बच्चों का इतना ख्याल रखते थे कि खुद अपने हाथ से दूध में काजू-बादाम डालकर खिलाते थे. बाबा का प्यार, स्नेह इतना मिला कि कभी भी लौकिक मां-बाप की याद नहीं आई.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर दुख जताया है

14 साल तक हैदराबाद में रहकर की कठिन साधना

दादी हृदयमोहिनी ने 14 वर्ष तक बाबा के सानिध्य में रहकर कठिन योग-साधना की. इन वर्षों में खाने-पीने को छोडक़र दिन-रात योग साधना में वह लगी रहती थीं. इसके साथ ही बाबा एक-एक सप्ताह का मौन कराते थे. तभी से दादी का स्वभाव बन गया था कि जितना काम हो उतना ही बात करती थीं. अंत समय तक वह मौन में रहीं.

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प्रणब दा के साथ दादी की स्मृतियां

नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय ने प्रदान की डिग्री

राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनीजी को नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय, बारीपाड़ा ने डी लिट की उपाधि से विभूषित किया. दादी को यह उपाधि उड़ीसा में प्रभु के संदेशवाहक के रूप में लोगों में आध्यात्मिकता का प्रचार-प्रसार करने और समाजसेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान पर प्रदान की गई.

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परमात्मा की संदेशवाहक गुलजार दादी

संस्था की 80वीं वर्षगांठ पर मुख्यालय माउण्ट आबू, आबू रोड के शांतिवन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय महासम्मेलन एवं सांस्कृतिक महोत्सव में 28 मार्च 2017 को नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो प्रफुल्ल कुमार मिश्रा ने उपाधि प्रदान की. उन्होंने दादी के कार्यों की सराहना करते हुए इसे गौरव का विषय बताया था.

दादी जानकी के निधन के बाद बनीं थीं मुख्य प्रशासिका

पिछले साल 27 मार्च 2020 में संस्थान की पूर्व मुख्य प्रशासिका 104 वर्षीय राजयोगिनी दादी जानकी के निधन के बाद आपको संस्थान की मुख्य प्रशासिका नियुक्त किया गया था. अस्वस्थ होने के बाद भी उन्हें दिन-रात लोगों का कल्याण करने की भावना लगी रहती थी. दादी मुंबई से ही संस्थान की गतिविधियों का सारा समाचार लेतीं और समय प्रति समय निर्देशन देतीं.

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लालकृष्ण आडवाणी के साथ स्नेहिल क्षण

दादी को कभी विचलित या उदास नहीं देखा

दादी हृदयमोहिनीजी की निजी सचिव ब्रह्माकुमारी नीलू बहन ने बताया कि मैं खुद को भाग्यशाली समझती हूं कि मुझे बचपन से ही दादीजी के अंग-संग रहने का सौभाग्य मिला. दादीजी हॉस्पिटल में भर्ती होने के बाद भी कभी उन्हें मन से विचलित या परेशान होते नहीं देखा. बीमारी की स्थिति में भी उनका चेहरा और मन सदा परमात्मा के ध्यान में लगा रहता था.

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पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को आशीर्वाद देतीं दादी हृदयमोहिनी

प्रात:काल से शुरू होता था ध्यान साधना का दौर

ब्रह्माकुमारी नीलू बहन ने बताया कि दादीजी हमेशा तीन बजे ब्रह्ममुहूर्त में उठ जाती थीं. इसके साथ ही उनकी दिनचर्या की शुरुआत साधना के साथ होती थी. यहां तक कि चलते-फिरते, खाते-पीते ईश्वर के ध्यान में मग्न रहतीं.

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93 वर्ष की आयु में मुंबई के अस्पताल में हुआ निधन

विश्वभर के सेवा केंद्रों पर साधना का दौर जारी

दादी के निधन की सूचना के बाद संस्थान के विश्वभर में स्थित सेवाकेन्द्रों पर साधना का दौर शुरू हो गया है. संस्थान से जुड़े बीके भाई- बहनें दादी के निमित्त विशेष योग साधना में जुट गए हैं.

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