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अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करता शेखावाटी का महरिया परिवार

आजादी से पहले कूदन गांव के बक्सा राम महरिया यहां कि चौधराहट करते थे. इसके बाद रामदेव सिंह महरिया राजनीति में सक्रिय हुए और 1957 में सीकर जिले की सिंगरावत विधानसभा सीट से विधायक बने.

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Published : Apr 4, 2019, 6:35 PM IST

डिजाइन फोटो

सीकर. जिले के कूदन गांव का महरिया परिवार. आजादी से पहले और उसके बाद इस परिवार का राजनीति बडा दबदबा रहा है. यह पहला मौका है जब महरिया परिवार का कोई भी सदस्य चुना हुआ जनप्रतिनिधि नहीं है. इस परिवार के सुभाष महरिया सीकर से लोकसभा का कांग्रेस का टिकट लेने में तो कामयाब हो गए लेकिन इस बार उन पर पूरे मेरिया परिवार का दारोमदार है और यह परिवार अपना राजनीतिक वजूद बचाने के लिए संघर्षरत हैं.

आजादी से पहले की बात करें तो गांव के बक्सा राम महरिया यहां कि चौधराहट करते थे. इसके बाद रामदेव सिंह महरिया राजनीति में सक्रिय हुए और 1957 में सीकर जिले की सिंगरावत विधानसभा सीट से विधायक बने. 1993 तक रामदेव सिंह महरिया अलग-अलग जगह से विधायक का चुनाव लड़ते रहे. बीच में जिला प्रमुख भी रहे और दो जगह से विधायक रहे. राजस्थान सरकार में विभिन्न विभागों के मंत्री पद पर भी रामदेव सिंह महरिया काबिज रहे.

वीडियोः आजादी के बाद पहली बार महरिया परिवार के सामने वजूद बचाने की चुनौती

सीकर के बाद उन्होंने धोद विधानसभा सीट को चुना और 1993 तक लगातार चार बार यहां से विधायक बने. 1993 में माकपा के अमराराम ने चुनाव जीतकर धोद विधानसभा क्षेत्र में महरिया परिवार के राजनीतिक वर्चस्व को कगार पर लाकर खड़ा कर दिया.1998 में रामदेव सिंह महरिया को कांग्रेस ने टिकट ही नहीं दिया. यही वो मौका था जब खुद के परिवार के कांग्रेस में कम होते वजूद को देख रामदेव सिंह महरिया के भतीजे सुभाष महरिया ने भाजपा का दामन थाम लिया.

सुभाष महरिया का राजनीतिक झंडा बुलंद हो गया. जिस तरह से कांग्रेस में महरिया परिवार की तूती बोलती थी उसी तरह 15 साल तक सीकर जिले की भाजपा पर भी महरिया परिवार का एकछत्र राज रहा. सुभाष महरिया लगातार तीन बार सीकर से सांसद बने और अटल बिहारी वाजपयी सरकार में मंत्री रहे. इस दौरान उन्होंने अपने छोटे भाई नंदकिशोर महरिया को भी दो बार फतेहपुर से भाजपा का टिकट दिलाया लेकिन वो जीत नहीं पाए. उनके ही परिवार से रामेश्वर महरिया 17 साल लगातार प्रधान रहे. गांव में सरपंच हो या पंच कोई भी बिना महरिया परिवार की सहमति से नहीं बनता था.

राजनीतिक ढ़लान पर महरिया परिवार
कभी कांग्रेस में एकछत्र राज करने वाले महरिया परिवार में वो वक्त भी आया जब उसने पार्टी से धीरे-धीरे यू किनारा कर लिया. यहीं से महरिया परिवार राजनीतिक ढ़लान पर भी चला गया. दिग्गज नेता रामदेव सिंह महरिया जिला परिषद का चुनाव तक नहीं जीत पाए. इसके बाद जब इस परिवार के नेताओं ने पार्टी बदली तो फिर से कामयाब एकछत्र राजनीति की. लेकिन भाजपा महरिया परिवार को ज्यादा रास नहीं आई. धीरे-धीरे बढ़ती गुटबाजी ने महरिया परिवार की जड़ें कमजोकर कर दी.

2009 में सुभाष महरिया कांग्रेस के महादेव सिंह खंडेला से लोकसभा चुनाव हार गए. 2013 में उन्होंने लक्ष्मणगढ़ से विधायक का चुनाव लड़ा लेकिन यहां से भी हार गए. सुभाष तो चुनाव हार गए लेकिन 2013 में उनके छोटे भाई नंदकिशोर महरिया फतेहपुर से निर्दलीय विधायक जीतने में कामयाब रहे. 2014 में भाजपा ने महरिया को लोकसभा का टिकट नहीं दिया तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन हार का सामना करना पड़ा.

इसके बाद महरीया परिवार की राजनीति धीरे-धीरे नीचे चली गई और पिछले चुनाव में गांव में सरपंच और पंच का चुनाव भी यह परिवार हार गया. 2018 में नंदकिशोर महरिया को भी टिकट नहीं मिला और उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा. भाजपा से किनारा कर चुके सुभाष महरिया कांग्रेस में है और उन्हें लोकसभा का टिकट भी मिला है. महरिया परिवार एक बार फिर राजनीति चमकाने के लिए जीत के मौके की तलाश में है. देखना ये होगा कि क्या वे सीट निकाल पाते हैं या नहीं.

सीकर. जिले के कूदन गांव का महरिया परिवार. आजादी से पहले और उसके बाद इस परिवार का राजनीति बडा दबदबा रहा है. यह पहला मौका है जब महरिया परिवार का कोई भी सदस्य चुना हुआ जनप्रतिनिधि नहीं है. इस परिवार के सुभाष महरिया सीकर से लोकसभा का कांग्रेस का टिकट लेने में तो कामयाब हो गए लेकिन इस बार उन पर पूरे मेरिया परिवार का दारोमदार है और यह परिवार अपना राजनीतिक वजूद बचाने के लिए संघर्षरत हैं.

आजादी से पहले की बात करें तो गांव के बक्सा राम महरिया यहां कि चौधराहट करते थे. इसके बाद रामदेव सिंह महरिया राजनीति में सक्रिय हुए और 1957 में सीकर जिले की सिंगरावत विधानसभा सीट से विधायक बने. 1993 तक रामदेव सिंह महरिया अलग-अलग जगह से विधायक का चुनाव लड़ते रहे. बीच में जिला प्रमुख भी रहे और दो जगह से विधायक रहे. राजस्थान सरकार में विभिन्न विभागों के मंत्री पद पर भी रामदेव सिंह महरिया काबिज रहे.

वीडियोः आजादी के बाद पहली बार महरिया परिवार के सामने वजूद बचाने की चुनौती

सीकर के बाद उन्होंने धोद विधानसभा सीट को चुना और 1993 तक लगातार चार बार यहां से विधायक बने. 1993 में माकपा के अमराराम ने चुनाव जीतकर धोद विधानसभा क्षेत्र में महरिया परिवार के राजनीतिक वर्चस्व को कगार पर लाकर खड़ा कर दिया.1998 में रामदेव सिंह महरिया को कांग्रेस ने टिकट ही नहीं दिया. यही वो मौका था जब खुद के परिवार के कांग्रेस में कम होते वजूद को देख रामदेव सिंह महरिया के भतीजे सुभाष महरिया ने भाजपा का दामन थाम लिया.

सुभाष महरिया का राजनीतिक झंडा बुलंद हो गया. जिस तरह से कांग्रेस में महरिया परिवार की तूती बोलती थी उसी तरह 15 साल तक सीकर जिले की भाजपा पर भी महरिया परिवार का एकछत्र राज रहा. सुभाष महरिया लगातार तीन बार सीकर से सांसद बने और अटल बिहारी वाजपयी सरकार में मंत्री रहे. इस दौरान उन्होंने अपने छोटे भाई नंदकिशोर महरिया को भी दो बार फतेहपुर से भाजपा का टिकट दिलाया लेकिन वो जीत नहीं पाए. उनके ही परिवार से रामेश्वर महरिया 17 साल लगातार प्रधान रहे. गांव में सरपंच हो या पंच कोई भी बिना महरिया परिवार की सहमति से नहीं बनता था.

राजनीतिक ढ़लान पर महरिया परिवार
कभी कांग्रेस में एकछत्र राज करने वाले महरिया परिवार में वो वक्त भी आया जब उसने पार्टी से धीरे-धीरे यू किनारा कर लिया. यहीं से महरिया परिवार राजनीतिक ढ़लान पर भी चला गया. दिग्गज नेता रामदेव सिंह महरिया जिला परिषद का चुनाव तक नहीं जीत पाए. इसके बाद जब इस परिवार के नेताओं ने पार्टी बदली तो फिर से कामयाब एकछत्र राजनीति की. लेकिन भाजपा महरिया परिवार को ज्यादा रास नहीं आई. धीरे-धीरे बढ़ती गुटबाजी ने महरिया परिवार की जड़ें कमजोकर कर दी.

2009 में सुभाष महरिया कांग्रेस के महादेव सिंह खंडेला से लोकसभा चुनाव हार गए. 2013 में उन्होंने लक्ष्मणगढ़ से विधायक का चुनाव लड़ा लेकिन यहां से भी हार गए. सुभाष तो चुनाव हार गए लेकिन 2013 में उनके छोटे भाई नंदकिशोर महरिया फतेहपुर से निर्दलीय विधायक जीतने में कामयाब रहे. 2014 में भाजपा ने महरिया को लोकसभा का टिकट नहीं दिया तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन हार का सामना करना पड़ा.

इसके बाद महरीया परिवार की राजनीति धीरे-धीरे नीचे चली गई और पिछले चुनाव में गांव में सरपंच और पंच का चुनाव भी यह परिवार हार गया. 2018 में नंदकिशोर महरिया को भी टिकट नहीं मिला और उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा. भाजपा से किनारा कर चुके सुभाष महरिया कांग्रेस में है और उन्हें लोकसभा का टिकट भी मिला है. महरिया परिवार एक बार फिर राजनीति चमकाने के लिए जीत के मौके की तलाश में है. देखना ये होगा कि क्या वे सीट निकाल पाते हैं या नहीं.

Intro:सीकर जिले के कूदन गांव का महरिया परिवार। आजादी से पहले और उसके बाद इस परिवार का राजनीति बडा दबदबा रहा है। यह पहला मौका है जब महरिया परिवार का कोई भी सदस्य चुना हुआ जनप्रतिनिधि नहीं है। इस परिवार के सुभाष महरिया सीकर से लोकसभा का कांग्रेस का टिकट लेने में तो कामयाब हो गए लेकिन इस बार उन पर पूरे मेरिया परिवार का दारोमदार है और यह परिवार अपना राजनीतिक वजूद बचाने के लिए संघर्षरत हैं।


Body:आजादी से पहले की बात करें तो गांव के बक्सा राम महरिया यहां कि चौधराहट करते थे। इसके बाद रामदेव सिंह महरिया राजनीति में सक्रिय हुए और 1957 में सीकर जिले की सिंगरावत विधानसभा सीट से विधायक बने। 1993 तक रामदेव सिंह महरिया अलग-अलग जगह से विधायक का चुनाव लड़ते रहे। बीच में जिला प्रमुख भी रहे और दो जगह से विधायक रहे। राजस्थान सरकार में विभिन्न विभागों के मंत्री पद पर भी रामदेव सिंह महरिया काबीज रहे। सीकर के बाद उन्होंने धोद विधानसभा सीट चुनें और 1993 तक लगातार चार बार यहां से विधायक बने। 1993 में माकपा के अमराराम ने चुनाव जीतकर धोद विधानसभा क्षेत्र में महरिया परिवार की राजनीति पर विराम लगा दिया। 1998 में रामदेव सिंह महरिया को कांग्रेस ने टिकट ही नहीं दिया। इससे पहले ही कांग्रेस में मेरिया परिवार का वजूद कम होते देखकर उनके भतीजे सुभाष महरिया भाजपा में चले गए। जिस तरह से कांग्रेस में महरिया परिवार की तूती बोलती थी उसी तरह 15 साल तक सीकर जिले की भाजपा पर भी महरिया परिवार का एकछत्र राज रहा। सुभाष महरिया लगातार तीन बार सीकर से सांसद बने और अटल बिहारी वाजपेई सरकार में मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने अपने छोटे भाई नंदकिशोर महरिया को भी दो बार फतेहपुर से भाजपा का टिकट दिला दिया लेकिन वे दोनों चुनाव हार गए। उनके परिवार से ही रामेश्वर महरिया 17 साल लगातार प्रधान रहे। गांव में सरपंच हो या पंच कोई भी बिना महरिया परिवार की सहमति से नहीं बनता था।

एक ही तरीके से कमजोर होते गए
कभी कांग्रेस में एकछत्र राज करने वाले महरिया परिवार का पार्टी से धीरे धीरे यू किनारा होते चले गए की आखिर में दिग्गज नेता रामदेव सिंह महरिया जिला परिषद का चुनाव नहीं जीत पाए। उसके बाद जब इस परिवार के नेता भाजपा में आए तो वहां भी एक छत्र राज किया। लेकिन भाजपा में धीरे धीरे बढ़ी गुटबाजी ने महरिया परिवार को यहां से भी किनारे कर दिया। 2009 में सुभाष महरिया कांग्रेस के महादेव सिंह खंडेला से लोकसभा चुनाव हार गए। 2013 में उन्होंने लक्ष्मणगढ़ से विधायक का चुनाव लड़ा लेकिन यहां से भी हार गए। सुभाष तो चुनाव हार गए लेकिन 2013 में उनके छोटे भाई नंदकिशोर महरिया फतेहपुर से निर्दलीय विधायक बन गए। 2014 में भाजपा ने मेहरिया को लोकसभा का टिकट नहीं दिया तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद महरीया परिवार की राजनीति धीरे धीरे नीचे चली गई और पिछले चुनाव में गांव में सरपंच और पंच का चुनाव भी यह परिवार हार गया। 2018 में नंदकिशोर महरिया को भी टिकट नहीं मिला और उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा। भाजपा से किनारा कर चुके सुभाष महरिया कांग्रेसमें है और उन्हें लोकसभा का टिकट भी मिला है लेकिन अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या वे सीट निकाल पाते हैं या नहीं।


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