राजसमंद. योग योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव जन्माष्टमी के 18 दिन बाद आने वाले दिन को जलझूलनी ग्यारस के रूप में मनाया जाता है. मेवाड़ के आराध्य कहे जाने वाले प्रभु चारभुजा नाथ मंदिर में सोमवार को बड़ी ही हर्षोल्लास के साथ लाखों श्रद्धालुओं के बीच जलझूलनी ग्यारस का पर्व मनाया जाएगा. मेवाड़ और मारवाड़ के आराध्य चारभुजा नाथ गढ़बोर मंदिर की अनूठी परंपराएं हैं.
5 हजार 285 साल पुराना है मंदिर
गोमती नदी किनारे बसा यह मंदिर करीब 5285 साल पुराना माना जाता है. पांडवों के हाथों स्थापित इस मंदिर में कृष्ण का चतुर्भुज स्वरूप विराजित है. यह मंदिर राजसमंद जिला मुख्यालय से करीब 37 किलोमीटर दूरी पर गोमती नदी के तट पर बसा है.
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पांडवों से जुड़ी है दंतकथा
मंदिर के बारे में मान्यता है कि द्वापर युग में पांडवों ने अपने वनवास के दौरान गोमती नदी के तट पर चारभुजा वाली प्रतिमा की पूजा किया करते थे. इसके बाद इस प्रतिमा को पांडवों ने जलमग्न कर दिया और यहां से चले गए. इसके बाद यह प्रतिमा गंगदेव क्षत्रिय को मिली तो उसने भी इस प्रतिमा की पूजा की और कुछ वर्षों बाद इसे पुन जलमग्न कर दिया.
इसके उपरान्त सूरागुर्जर को स्वप्न में मूर्ति के पानी में होने की बात कही, जिसपर सूरा गुर्जर ने मंदिर को पुनः स्थापित कर इसकी पूजा-अर्चना शुरू की, तभी से मंदिर की पूजा-सेवा गुर्जर समुदाय के पास है.
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गुर्जर समुदाय करता है मंदिर की सेवा
बता दें कि मंदिर के पुजारी गुर्जर समाज के 1 हजार परिवार हैं, जिनमें सेवा-पूजा ओसरे के अनुसार बंटी हुई है. ओसरे की परंपरा कुछ ऐसी है कि कुछ परिवारों का ओसरा जीवन में सिर्फ एक बार आता है तो किसी का 48 से 50 साल में तो, किसी का 4 साल के अंतराल में भी आ जाता है. हर अमावस्या को ओसरा बदलता है और अगला परिवार का मुखिया पुजारी बनता है. बताया जाता है कि ओसरे का निर्धारण बरसों पहले गोत्र और परिवारों की संख्या के अनुसार हुआ था जो अभी चला आ रहा है.
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देश-विदेश में विख्यात है मंदिर, जलझूलनी एकादशी है सबसे बड़ा पर्व
हजारों वर्ष पुराना चारभुजा नाथ का यह मंदिर देश-विदेश में विख्यात है. जलझूलनी एकादशी इस मंदिर के सबसे बड़े महोत्सव के रूप में मनाई जाती है. इस दिन गुलाल-अबीर उड़ाते हुए श्रद्धालु कंधों पर सोने और चांदी के पालकियों में प्रभु की बाल प्रतिमा को विराजमान कर दूध तलाई तक ले जाते हैं. सोमवार के पहले सेवादारों द्वारा इन पालकियों की सफाई की गई है.
दिखने लगा मेले का रंग
सोमवार को लगने वाले जलझूलनी मेले का रंग अभी से दिखने लगा है. ढोल-नगाडों के साथ भक्तों की भीड़ बढ़ने लगी है. मेवाड़ और मारवाड़ का यह तीन दिवसीय लक्की मेला 10 सितंबर तक चलेगा. मेले को देखते हुए प्रशासन ने पूरी तैयारियां कर ली है. सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सभी प्रकार की व्यवस्थाएं की गई है.