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Special: ऑर्गेनिक खेती के लिए रामबाण है 'जीवामृत', पैदावार में होती है कई गुना बढ़ोतरी

भारत में कृषि का स्वरूप अभी भी पुराने ढर्रे पर चल रहा है. नए नवाचारों को उस गति से नहीं अपनाया जा रहा है. वहीं केमिकलों के अंधाधुंध प्रयोग से खेतों की उर्वरक क्षमता खत्म हो रही है. ऐसे में राजसमंद का एक किसान ऑर्गेनिक खेती के जरिये बेहतर पैदावार और क्वालिटी के लिए जीवामृत खाद का उपयोग कर रहा है. यह जीवामृत खाद खेतों और फसलों के लिए अमृत के समान है. कैसे बनती और इस्तेमाल होती है जीवामृत और क्या हैं इसके लाभ, पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

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Published : Apr 3, 2021, 10:27 PM IST

organic farming,  jeevamrit
जीवामृत

राजसमंद. भारत की नींव कृषि है. आधी से ज्यादा आबादी खेतीबाड़ी पर निर्भर है. पिछले कई सालों से देखने में आ रहा है कि किसान ज्यादा पैदावार के लिए रासायनिक पदार्थों का जमकर प्रयोग कर रहे हैं. जिससे जमीन में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया खत्म हो गए हैं और केमिकल वाली खेती का असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. जिससे कई बीमारियां भी हो रही हैं. लेकिन राजसमंद के एक किसान ने ऑर्गेनिक रूप से खेती करने और उत्पादन को बढ़ाने के लिए जीवामृत नाम की खाद तैयार की है जो पूरी तरह से नेचुरल है और खेत में अच्छे बैक्टीरिया के निर्माण में अहम योगदान निभाती है. इससे उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है और फसलें भी केमिकल फ्री होती हैं.

ऑर्गेनिक खेती के लिए रामबाण जीवामृत

क्या है जीवामृत

किसानों अपनी फसल के उत्पादन को बढ़ावा देने और जल्दी पकाने के लिए रासायनिक खाद का इस्तेमाल करता है. लेकिन इस खाद के उपयोग से धीरे-धीरे खेती की ऊर्वरकता खत्म होने लगती है, और जमीन में मौजूद उपजाऊ बैक्टीरिया भी खत्म होते जाते हैं. ऐसे में अब कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट और ऑर्गेनिक खेती का चलन बढ़ रहा है. ऑर्गेनिक खेती में बिना किसी रासायनिक पदार्थ के इस्तेमाल के खेती की जाती है. राजसमंद के कुछ किसानों ने ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए देशी तरीके से बना खाद तैयार किया है. जिसका नाम जीवामृत रखा है. जो कृषि के लिए काफी फायदेमंद है.

पढ़ें: SPECIAL : राजस्थान की संस्कृति का हिस्सा तेरहताली, आज भी 5वीं पीढ़ी बढ़ा रही परम्परा को आगे

जीवामृत को जीवों का अमृत कहा जाता है. यह ऑर्गेनिक खेती का नया कॉन्सेप्ट है. इसमें बैक्टीरिया से खेती की जाती है जो पूरी तरह से सुरक्षित है. खेतों में जीवामृत का इस्तेमाल करने से जमीन उपजाऊ बनती है और बैक्टीरिया में वृद्धि होती है. जिससे फसलों के उत्पादन और क्वालिटी में बढ़ोतरी होती है.

जीवामृत किन चीजों से और कैसे बनता है

जीवामृत को बनाने का तरीका बहुत आसान है. इसमें एक बड़े से ड्रम में गाय का गोबर, गोमूत्र, छाछ, चावल का मांड और कद्दू की चटनी और घर में जो कचरा होता है वो डाला जाता है. उसके बाद इस पेस्ट को सड़ाया जाता है. 50 दिन बाद यह पेस्ट बायोफर्टिलाइजर के रूप में बनकर तैयार हो जाता है. इस बायोफर्टिलाइजर में करीब 2500 प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं. इस पेस्ट को फ्लड इरिगेशन के जरिए खेतों में छिड़का जाता है.

इस प्लांट को बनाने में करीब 30 से 35 हजार रुपए का खर्चा आता है. प्लांट को असेंबल करने के लिए एक ड्रम, प्लास्टिक के पाइप और एक बड़ी सी ट्यूब की जरूरत होती है. इसमें ड्रम में पेस्ट डाला जाता है और वह सड़-गल कर प्लास्टिक की ट्यूब में आ जाता है. जिसके बाद बायोफर्टिलाइजर तैयार होता है. ट्यूब के आखिर में एक टोंटी लगी रहती है. जिससे यह सारा बायोफर्टिलाइजर बाहर निकाला जाता है.

जीवामृत बनाने के पूरे प्रोसेस में बायोगैस भी बनाई जा सकती है. जिससे रोजाना तीन लोगों का खाना बन सकता है. बस इसके लिए पेस्ट में गोबर की मात्रा बढ़ानी पड़ती है. नाकली गांव के उदयलाल कीर इस पूरे कॉन्सेप्ट से रोजाना 100 लीटर जीवामृत बना रहे हैं और अपने खेतों में इस्तेमाल कर रहे हैं. उदयलाल बताते हैं कि इस जीवामृत का इस्तेमाल करने से पहले साल से ही पैदावार बढ़ जाती है. वह दूसरे किसानों को भी प्रेरित करने के लिए जीवामृत फ्री में बांट रहे हैं.

कृषि वैज्ञानिक मणिराम ने बताया कि जीवामृत ऑर्गेनिक खेती का नया कॉन्सेप्ट है. इससे जमीन की उर्वरक क्षमता कई गुना बढ़ जाती है. इस जीवामृत को खेतों में पानी की तरह भी दिया जा सकता है या छिड़काव भी किया जा सकता है. इससे जो फसल पैदा होती है वो बिल्कुल नेचुरल होती है. उसमें किसी प्रकार के केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है.

राजसमंद. भारत की नींव कृषि है. आधी से ज्यादा आबादी खेतीबाड़ी पर निर्भर है. पिछले कई सालों से देखने में आ रहा है कि किसान ज्यादा पैदावार के लिए रासायनिक पदार्थों का जमकर प्रयोग कर रहे हैं. जिससे जमीन में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया खत्म हो गए हैं और केमिकल वाली खेती का असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. जिससे कई बीमारियां भी हो रही हैं. लेकिन राजसमंद के एक किसान ने ऑर्गेनिक रूप से खेती करने और उत्पादन को बढ़ाने के लिए जीवामृत नाम की खाद तैयार की है जो पूरी तरह से नेचुरल है और खेत में अच्छे बैक्टीरिया के निर्माण में अहम योगदान निभाती है. इससे उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है और फसलें भी केमिकल फ्री होती हैं.

ऑर्गेनिक खेती के लिए रामबाण जीवामृत

क्या है जीवामृत

किसानों अपनी फसल के उत्पादन को बढ़ावा देने और जल्दी पकाने के लिए रासायनिक खाद का इस्तेमाल करता है. लेकिन इस खाद के उपयोग से धीरे-धीरे खेती की ऊर्वरकता खत्म होने लगती है, और जमीन में मौजूद उपजाऊ बैक्टीरिया भी खत्म होते जाते हैं. ऐसे में अब कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट और ऑर्गेनिक खेती का चलन बढ़ रहा है. ऑर्गेनिक खेती में बिना किसी रासायनिक पदार्थ के इस्तेमाल के खेती की जाती है. राजसमंद के कुछ किसानों ने ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए देशी तरीके से बना खाद तैयार किया है. जिसका नाम जीवामृत रखा है. जो कृषि के लिए काफी फायदेमंद है.

पढ़ें: SPECIAL : राजस्थान की संस्कृति का हिस्सा तेरहताली, आज भी 5वीं पीढ़ी बढ़ा रही परम्परा को आगे

जीवामृत को जीवों का अमृत कहा जाता है. यह ऑर्गेनिक खेती का नया कॉन्सेप्ट है. इसमें बैक्टीरिया से खेती की जाती है जो पूरी तरह से सुरक्षित है. खेतों में जीवामृत का इस्तेमाल करने से जमीन उपजाऊ बनती है और बैक्टीरिया में वृद्धि होती है. जिससे फसलों के उत्पादन और क्वालिटी में बढ़ोतरी होती है.

जीवामृत किन चीजों से और कैसे बनता है

जीवामृत को बनाने का तरीका बहुत आसान है. इसमें एक बड़े से ड्रम में गाय का गोबर, गोमूत्र, छाछ, चावल का मांड और कद्दू की चटनी और घर में जो कचरा होता है वो डाला जाता है. उसके बाद इस पेस्ट को सड़ाया जाता है. 50 दिन बाद यह पेस्ट बायोफर्टिलाइजर के रूप में बनकर तैयार हो जाता है. इस बायोफर्टिलाइजर में करीब 2500 प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं. इस पेस्ट को फ्लड इरिगेशन के जरिए खेतों में छिड़का जाता है.

इस प्लांट को बनाने में करीब 30 से 35 हजार रुपए का खर्चा आता है. प्लांट को असेंबल करने के लिए एक ड्रम, प्लास्टिक के पाइप और एक बड़ी सी ट्यूब की जरूरत होती है. इसमें ड्रम में पेस्ट डाला जाता है और वह सड़-गल कर प्लास्टिक की ट्यूब में आ जाता है. जिसके बाद बायोफर्टिलाइजर तैयार होता है. ट्यूब के आखिर में एक टोंटी लगी रहती है. जिससे यह सारा बायोफर्टिलाइजर बाहर निकाला जाता है.

जीवामृत बनाने के पूरे प्रोसेस में बायोगैस भी बनाई जा सकती है. जिससे रोजाना तीन लोगों का खाना बन सकता है. बस इसके लिए पेस्ट में गोबर की मात्रा बढ़ानी पड़ती है. नाकली गांव के उदयलाल कीर इस पूरे कॉन्सेप्ट से रोजाना 100 लीटर जीवामृत बना रहे हैं और अपने खेतों में इस्तेमाल कर रहे हैं. उदयलाल बताते हैं कि इस जीवामृत का इस्तेमाल करने से पहले साल से ही पैदावार बढ़ जाती है. वह दूसरे किसानों को भी प्रेरित करने के लिए जीवामृत फ्री में बांट रहे हैं.

कृषि वैज्ञानिक मणिराम ने बताया कि जीवामृत ऑर्गेनिक खेती का नया कॉन्सेप्ट है. इससे जमीन की उर्वरक क्षमता कई गुना बढ़ जाती है. इस जीवामृत को खेतों में पानी की तरह भी दिया जा सकता है या छिड़काव भी किया जा सकता है. इससे जो फसल पैदा होती है वो बिल्कुल नेचुरल होती है. उसमें किसी प्रकार के केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है.

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