प्रतापगढ़. जिले में इन दिनों आदिवासियों के नृत्य, गीत और संगीत की धूम मची हुई है. शायद ही कोई ऐसा गांव होगा, जहां आदिवासियों का नृत्य देखने को नहीं मिल रहा होगा. प्रतापगढ़ के आदिवासी मीणा एक नृत्य और गीतमय जाति है. कोई भी खुशी का अवसर हो, मीणा का मन झूम उठता है. वह थिरकने लगता है, नाचने-कूदने और गाने लगता है. प्रत्येक स्त्री-पुरुष, युवक-युवती, बच्चे-बूढ़े, सभी नृत्य के शौकीन होते हैं.
गर्मी के दिन आते ही इनके जंगलों में स्थित कच्चे झोंपड़ों के आस-पास का वातावरण बड़ा खुशनुमा हो जाता है. चारों ओर केवड़े की खूशबू महक उठती है. खेती के काम से भी फुर्सत मिल जाती है. ऐसे सुहावने मौसम में मीणा युवक-युवती का अंग-प्रत्यंग नाच उठते हैं.
इन आदिवासियों का यह नृत्य 'गेर नृत्य' कहलाता है. इसमें पुरुष गोल घेरा बना कर हाथों में लाठियां लेकर ढोल की थाप पर गोल घूमते हुए नृत्य करते हैं. वैसे परम्परागत रूप से यह पुरुषों का नृत्य है, लेकिन अब महिलाएं भी इसे करने लगी है. नाचते-गाते कभी ये एक पंक्ति में खड़े हो जाते हैं, तो कभी गोल घेरा बना लेते हैं. इस समुदाय का ‘गेर’ सबसे लोकप्रिय नृत्य है.
यह भी पढ़ें- प्रतापगढ़ः वांछित अपराधियों को पकड़ने गई पुलिस पर फायरिंग, कांस्टेबल को लगी गोली
ढोल के साथ इसमें कई बार ढोल-मजीरा और झालर का भी उपयोग होता है. जिले के लोग अपनी इस संस्कृति पर गर्व महसूस करते हैं. आज भी आदिवासी मीणा समाज इस पुरानी कला को सहेजे हुए है, जिसकी झलक होली के बाद गर्मी की शुरुआत में गांव-गांव देखने को मिलती है. गैर नृत्य का यह सिलसिला पूरे मार्च महीने चलता रहेगा.