ETV Bharat / state

स्पेशल स्टोरीः सिलिकोसिस के कहर से वीरान होते जा रहे पाली के नाना बेड़ा रायपुर और जैतारण क्षेत्र

पाली में पिछले 5 सालों के आंकड़ों की बात करें तो सिलिकोसिस से यहां 37 से ज्यादा मौत हो चुकी है. वहीं 400 के करीब सिलिकोसिस के मरीज अब तक सामने आ चुके हैं. हालांकि यह सरकारी आंकड़ा है. लेकिन सिलिकोसिस मरीजों का आंकड़ा इससे काफी ज्यादा है. पढ़ें विस्तृत खबर....

Silicosis disease, Rajasthan news, सिलिकोसिस बीमारी, राजस्थान न्यूज
सिलिकोसिस बीमारी का कहर
author img

By

Published : Feb 21, 2020, 8:06 PM IST

Updated : Feb 22, 2020, 11:11 AM IST

पाली. पाली के नाना बेड़ा रायपुर और जैतारण क्षेत्र में सबसे ज्यादा कच्चे पत्थरों की खदानें हैं. यहां आसपास रहने वाले लोग अपनी आजीविका चलाने के लिए इन्हीं खदानों में काम करने को मजबूर हैं. अशिक्षा और जागरूकता के अभाव में कम उम्र से ही पत्थर कटाई जैसे कामों में जुट जाते हैं.

इस कारण से यहां बड़ी संख्या में लोग इन कच्चे पत्थर की खदानों में काम करने के कारण सिलिकोसिस बीमारी के शिकार हो चुके हैं. धीरे-धीरे सिलिकोसिस ने इनके शरीर को ऐसा जकड़ लिया कि अब इनका शरीर किसी काम का नहीं रह गया है. अब ये लोग सिर्फ अपनों पर बोझ बनकर रह गए हैं.

सिलिकोसिस बीमारी का कहर

क्या है सिलिकोसिस....

सिलिकोसिस के ज्यादातर मरीज खदानों में काम करने वाले होते हैं. सिलिका युक्त धूल में लगातार सांस लेने से फेफड़ों में होने वाली बीमारी को सिलिकोसिस कहा जाता है. इस बीमारी के कारण मरीज के फेफड़े खराब हो जाते हैं. रह-रहकर पीड़ित व्यक्ति का सांस फूलने लगता है, और इलाज मिलने के अभाव में व्यक्ति की मौत हो जाती है.

डराने वाले हैं आंकड़े.....

पाली में पिछले 5 सालों के आंकड़ों की बात करें तो सिलिकोसिस से यहां 37 से ज्यादा मौत हो चुकी है. वहीं 400 के करीब सिलिकोसिस के मरीज अब तक सामने आ चुके हैं. हालांकि यह सरकारी आंकड़ा है. लेकिन सिलिकोसिस मरीजों का आंकड़ा इससे काफी ज्यादा है.

सबसे बड़ी विकट स्थिति यह है कि सिलिकोसिस मरीज की मौत के बाद उनके परिवार में कोई नहीं होने के चलते कई मासूम ऐसे हैं जिनके ऊपर से अपनों का साया पूरी तरह से उठ चुका है. नाना बेड़ा क्षेत्र में ऐसे कई मामले देखने को मिल रहे हैं जिनमें पिता की मृत्यु के बाद बच्चों का लालन-पालन उनके दादा-दादी को करना पड़ रहा है. वहीं कई बच्चे तो ऐसे भी हैं पूरी तरह से अनाथ हो चुके हैं और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.

ऐसे में भयानक रूप लेती जा रही सिलिकोसिस बीमारी ने यहां के लोगों की अब आत्मा को अब झकझोरना शुरू कर दिया है. इस गांव में बेसहारा बच्चों और विलाप करते वृद्धजनों को देखकर बीमारी से सावधान रहने के लिए आगे की पीढ़ी को सीख मिल रही है.

पाली. पाली के नाना बेड़ा रायपुर और जैतारण क्षेत्र में सबसे ज्यादा कच्चे पत्थरों की खदानें हैं. यहां आसपास रहने वाले लोग अपनी आजीविका चलाने के लिए इन्हीं खदानों में काम करने को मजबूर हैं. अशिक्षा और जागरूकता के अभाव में कम उम्र से ही पत्थर कटाई जैसे कामों में जुट जाते हैं.

इस कारण से यहां बड़ी संख्या में लोग इन कच्चे पत्थर की खदानों में काम करने के कारण सिलिकोसिस बीमारी के शिकार हो चुके हैं. धीरे-धीरे सिलिकोसिस ने इनके शरीर को ऐसा जकड़ लिया कि अब इनका शरीर किसी काम का नहीं रह गया है. अब ये लोग सिर्फ अपनों पर बोझ बनकर रह गए हैं.

सिलिकोसिस बीमारी का कहर

क्या है सिलिकोसिस....

सिलिकोसिस के ज्यादातर मरीज खदानों में काम करने वाले होते हैं. सिलिका युक्त धूल में लगातार सांस लेने से फेफड़ों में होने वाली बीमारी को सिलिकोसिस कहा जाता है. इस बीमारी के कारण मरीज के फेफड़े खराब हो जाते हैं. रह-रहकर पीड़ित व्यक्ति का सांस फूलने लगता है, और इलाज मिलने के अभाव में व्यक्ति की मौत हो जाती है.

डराने वाले हैं आंकड़े.....

पाली में पिछले 5 सालों के आंकड़ों की बात करें तो सिलिकोसिस से यहां 37 से ज्यादा मौत हो चुकी है. वहीं 400 के करीब सिलिकोसिस के मरीज अब तक सामने आ चुके हैं. हालांकि यह सरकारी आंकड़ा है. लेकिन सिलिकोसिस मरीजों का आंकड़ा इससे काफी ज्यादा है.

सबसे बड़ी विकट स्थिति यह है कि सिलिकोसिस मरीज की मौत के बाद उनके परिवार में कोई नहीं होने के चलते कई मासूम ऐसे हैं जिनके ऊपर से अपनों का साया पूरी तरह से उठ चुका है. नाना बेड़ा क्षेत्र में ऐसे कई मामले देखने को मिल रहे हैं जिनमें पिता की मृत्यु के बाद बच्चों का लालन-पालन उनके दादा-दादी को करना पड़ रहा है. वहीं कई बच्चे तो ऐसे भी हैं पूरी तरह से अनाथ हो चुके हैं और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.

ऐसे में भयानक रूप लेती जा रही सिलिकोसिस बीमारी ने यहां के लोगों की अब आत्मा को अब झकझोरना शुरू कर दिया है. इस गांव में बेसहारा बच्चों और विलाप करते वृद्धजनों को देखकर बीमारी से सावधान रहने के लिए आगे की पीढ़ी को सीख मिल रही है.

Last Updated : Feb 22, 2020, 11:11 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.