पाली. जिले में कोरोना की स्थिति पिछले एक माह से भयावह हो गई है. इस कोरोना ने कई परिवारों की खुशियां छीनी हैं. अभी भी हालात जिले भर में बेकाबू हैं. गंभीर रूप से संक्रमित मरीज अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं. सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमण का खतरा पाली के ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है. ईटीवी भारत ने इस दूसरी लहर में अचानक से बढ़े मौत के आंकड़ों को लेकर जब विशेषज्ञों से बात की तो पता चला कि जितनी भी मौतें हुईं हैं उनमें वे ही शामिल हैं जो बेहद गंभीर हालात में अस्पताल में भर्ती होने आए थे. जिनमें कोरोना का संक्रमण काफी बढ़ चुका था.
इन मामलों में सबसे ज्यादा मामले ग्रामीण क्षेत्रों से हैं. विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि इन ग्रामीणों को कोरोना का पहला लक्षण बुखार और जुखाम हुआ था. इन मरीजों ने अपने आसपास के क्षेत्र में उपचार भी करवाया था, लेकिन कोरोना के लक्षणों को नहीं पहचान सके. जब मरीज को सांस लेने में काफी दिक्कत होने लगी और उसकी ऑक्सीजन लेवल पूरी तरह से घट गया, तब बांगड़ अस्पताल लाया गया. यही कारण रहा कि कई मरीज अस्पताल के गेट तक आते-आते ही अपना दम तोड़ दे रहे थे और कई अस्पताल में पहुंचने के बाद काल के गाल में समा जा रहे थे.
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पाली में ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों में अब भी स्वास्थ्य को लेकर काफी लापरवाही है. कोरोना संक्रमण से पहले भी कई बार अलग-अलग रोगों ने अपना प्रभाव दिखाया था और उस समय भी ग्रामीण क्षेत्रों में यही लापरवाही देखने को मिली थे. इस बार कोरोना संक्रमण ने ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लोगों को चपेट में लिया है. इस बार भी ग्रामीणों ने कोरोना संक्रमण को काफी हल्के में लिया और जब उन्हें बुखार-जुकाम जैसी परेशानी हुई तो आसपास ही छोटे-मोटे झोलाछाप व अन्य कथित चिकित्सकों के पास से दवा ले ली.
लेकिन झोलाछाप चिकित्सक इस कोरोना संक्रमण के लक्षणों को नहीं पहचान सके. ऐसे में हल्की-फुल्की दवाइयों से मरीज को कुछ पल के लिए राहत तो मिली, लेकिन अंदर ही अंदर संक्रमण फेफड़ों तक फैलता गया. अंत में यह संक्रमण इतना घातक हो गया कि मरीज सांस लेने के लिए भी तड़पने लगा, तब उन्हें बांगड़ अस्पताल लाया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी रहती थी.
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कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर को 50 दिन पूरे हो चुके हैं. 1 अप्रैल से कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का प्रभाव देश में मान लिया गया था. पाली में अब तक इन 50 दिनों में कोरोना संक्रमण से 205 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. इनमें ज्यादातर मौत का आंकड़ा ग्रामीण क्षेत्र का है. यह आंकड़ा सरकारी आंकड़ों का है. हकीकत में मौत का आंकड़े इससे कहीं ज्यादा हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में लापरवाही का एक उदाहरण ईटीवी भारत पहले भी सामने ला चुका है. इसमें आदिवासी क्षेत्र में अभी तक लोग कोरोना वैक्सीन लगाने से कतरा रहे हैं. ऐसी लापरवाही इस ग्रामीण क्षेत्र में अभी भी जारी है. प्रशासन के हजारों जतन के बाद भी संक्रमण रुकने का नाम नहीं ले रहा है.
कई बार झोलाछाप डॉक्टरों के कारण जा चुकी मौतें
पाली के ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टरों के उपचार से पहले भी कई बार मरीजों की जान जा चुकी है. इस बार भी इन झोलाछाप डॉक्टरों के कारण लोगों की जान खतरे में पड़ रही है. कोई घटना होने के बाद प्रशासन की ओर से झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ कई बार अभियान चला दिया जाता है, लेकिन फिर मामला शांत हो जाता है. उसके बाद फिर से 'झोलाछाप' सक्रिय हो जाते थे. आज भी पाली के बाली, मारवाड़ जंक्शन व रायपुर क्षेत्र में कई झोलाछाप डॉक्टर खुलेआम मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं.
विशेषज्ञ बोले, रहना होगा जागरूक
बांगड़ अस्पताल के रोग चिकित्सक विशेषज्ञों ने कहा कि कोरोना वायरस काफी घातक बीमारी है. जिसका परिणाम हम प्रतिदिन अस्पताल से निकल रहे शव को देख कर कह सकते हैं. लोगों को इस बीमारी को समझना होगा. इन के लक्षणों के बारे में जानना होगा. छोटी सी परेशानी में डॉक्टरों की सलाह लें. ताकि इस रोग के शुरुआत से ही उपचार मिल सके और मरीज की जान बच सकें.