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कपड़ा उद्योग के बाद पाली बना रहा चूड़ी उद्योग में पहचान

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Published : May 9, 2021, 7:25 AM IST

औद्योगिक नगरी के नाम से पहचाने जाने वाले पाली से अब कपड़े उद्योग के साथ चूड़ी व्यवसाय में भी अपनी पहचान बना रहा है. जिले के प्रमुख व्यावसाय कपड़ा उद्योग प्रदूषण की समस्या के चलते बंद होने की कगार पर पहुंच गया. क्योंकि पिछले लंबे समय से प्रदूषण की समस्या के चलते औद्योगिक इकाई बंद हो गई. ऐसे में चूड़ी उद्योग ने इन मजदूरों को एक नया सहारा दिया है.

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कपड़ा उद्योग के बाद पाली बना रहा चूड़ी उद्योग में पहचान

पाली. औद्योगिक नगरी के नाम से पहचाने जाने वाले पाली से अब कपड़े उद्योग के साथ चूड़ी व्यवसाय में भी अपनी पहचान बना रहा है. जिले के प्रमुख व्यावसाय कपड़ा उद्योग प्रदूषण की समस्या के चलते बंद होने की कगार पर पहुंच गया. क्योंकि पिछले लंबे समय से प्रदूषण की समस्या के चलते औद्योगिक इकाई बंद हो गई.

कपड़ा उद्योग के बाद पाली बना रहा चूड़ी उद्योग में पहचान

जिले में एक समय 15 सौ से अधिक कपड़े की फैक्ट्रियां संचालित हो रही थी, लेकिन प्रदूषण की समस्या के चलते वर्तमान में महज 500 से कम इकाइयां संचालित हो रही हैं. जिससे मजदूर बेरोजगार हो रहे हैं और रोजगार की तलाश में इधर उधर भटक रहे हैं. लेकिन चूड़ी उद्योग ने इन मजदूरों को एक नया सहारा दिया है.

पाली शहर में चूड़ी उद्योग खूब पनप रहा है और पिछले दो से 3 साल की बात करें तो पाली में 2000 से भी ज्यादा चूड़ी कटिंग की मशीन व फैक्ट्रियां लग गई हैं. जिससे कई लोगों को रोजगार मिल रहा है और पाली की बनी चूड़ी देश भर में लोगों की पहली पसंद बनती जा रही है. अब यहां के लोगों को जरूरत है तो सिर्फ इतनी की सरकार चूड़ी के लघु उद्योग को बढ़ावा दें.

पढ़ें- लॉकडाउन अवधि में जरूरतमंदों को इंदिरा रसोई से मिलेगा निशुल्क भोजन

महिलाओं के सुहाग की निशानी माने जाने वाली चूड़ी ने कपड़ा उद्योग में गिरावट के बावजूद पाली के औद्योगिक नगरी की पहचान को बरकरार रखते हुए लोगों को बेरोजगार होने के बताने के साथ नया रोजगार दिया. जिले में वर्तमान में चूड़ियों की 2,000 से अधिक संख्या फैक्ट्रियां लगी हुई हैं. जहां चूड़ी पाइप बनाने के साथ कटाई का काम होता है, तो सैकड़ों घरों में इस उद्योग की वजह से महिलाओं को घर बैठे नगीना लगाने सहित विभिन्न काम मिल रहे हैं.

चूड़ी उद्योग पहले कानपुर में ही होता था, लेकिन जिस तरह से यहां के लोगों ने इस उद्योग को अपनाया तो इससे पाली की पहचान बना दिया. पाली में बनी चूड़ियां दिल्ली, मद्रास, महाराष्ट्र, सूरत व मुंबई सही देश के विभिन्न क्षेत्रों में लोगों की पसंद बनती जा रही है. चूड़ी व्यवसाय से जुड़े लोगों की मांग है कि सरकार के अन्य उद्योगों की तरह इस लघु उद्योग को भी सहयोग मिले तो यह आने वाले समय में प्रदेश की पहचान बन सकता है.

पाली. औद्योगिक नगरी के नाम से पहचाने जाने वाले पाली से अब कपड़े उद्योग के साथ चूड़ी व्यवसाय में भी अपनी पहचान बना रहा है. जिले के प्रमुख व्यावसाय कपड़ा उद्योग प्रदूषण की समस्या के चलते बंद होने की कगार पर पहुंच गया. क्योंकि पिछले लंबे समय से प्रदूषण की समस्या के चलते औद्योगिक इकाई बंद हो गई.

कपड़ा उद्योग के बाद पाली बना रहा चूड़ी उद्योग में पहचान

जिले में एक समय 15 सौ से अधिक कपड़े की फैक्ट्रियां संचालित हो रही थी, लेकिन प्रदूषण की समस्या के चलते वर्तमान में महज 500 से कम इकाइयां संचालित हो रही हैं. जिससे मजदूर बेरोजगार हो रहे हैं और रोजगार की तलाश में इधर उधर भटक रहे हैं. लेकिन चूड़ी उद्योग ने इन मजदूरों को एक नया सहारा दिया है.

पाली शहर में चूड़ी उद्योग खूब पनप रहा है और पिछले दो से 3 साल की बात करें तो पाली में 2000 से भी ज्यादा चूड़ी कटिंग की मशीन व फैक्ट्रियां लग गई हैं. जिससे कई लोगों को रोजगार मिल रहा है और पाली की बनी चूड़ी देश भर में लोगों की पहली पसंद बनती जा रही है. अब यहां के लोगों को जरूरत है तो सिर्फ इतनी की सरकार चूड़ी के लघु उद्योग को बढ़ावा दें.

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महिलाओं के सुहाग की निशानी माने जाने वाली चूड़ी ने कपड़ा उद्योग में गिरावट के बावजूद पाली के औद्योगिक नगरी की पहचान को बरकरार रखते हुए लोगों को बेरोजगार होने के बताने के साथ नया रोजगार दिया. जिले में वर्तमान में चूड़ियों की 2,000 से अधिक संख्या फैक्ट्रियां लगी हुई हैं. जहां चूड़ी पाइप बनाने के साथ कटाई का काम होता है, तो सैकड़ों घरों में इस उद्योग की वजह से महिलाओं को घर बैठे नगीना लगाने सहित विभिन्न काम मिल रहे हैं.

चूड़ी उद्योग पहले कानपुर में ही होता था, लेकिन जिस तरह से यहां के लोगों ने इस उद्योग को अपनाया तो इससे पाली की पहचान बना दिया. पाली में बनी चूड़ियां दिल्ली, मद्रास, महाराष्ट्र, सूरत व मुंबई सही देश के विभिन्न क्षेत्रों में लोगों की पसंद बनती जा रही है. चूड़ी व्यवसाय से जुड़े लोगों की मांग है कि सरकार के अन्य उद्योगों की तरह इस लघु उद्योग को भी सहयोग मिले तो यह आने वाले समय में प्रदेश की पहचान बन सकता है.

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