नागौर. ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के खतरे के बीच 5 जून को सभी जगह World Environment Day मनाया जा रहा है. आज पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लोगों को दिलाया जा रहा है, लेकिन राजस्थान के नागौर जिले के रोटू में एक ऐसी जगह है, जहां पर्यावरण संरक्षण की गौरवशाली परंपरा 550 साल से चली आ रही है.
जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर रोटू गांव है. बताया जाता है कि किसी जमाने में इस गांव और आसपास के रेतीले इलाके में एक भी पेड़ ऐसा नहीं था, जिसकी छाया में लोग बैठ सके. ग्रामीणों की इसी परेशानी को दूर करने के लिए इस गांव में आए गुरु जंभेश्वर महाराज ने 550 साल पहले एक रात में खेजड़ी के 3700 पेड़ लगाकर पर्यावरण संरक्षण का पहला बीज रोपा था. इस परंपरा को अब गांव के युवा और बुजुर्ग बखूबी निभा रहे हैं. उस समय लगाए गए खेजड़ी के पेड़ आज भी सुरक्षित हैं.
पेड़ की छंटाई पर भी पाबंदी
इस गांव में पेड़ काटना तो दूर की बात है, उसकी छंटाई पर भी पाबंदी है. साथ ही गांव में हो रहे सड़क या मकान निर्माण के बीच यदि कोई पेड़ आता है तो उसे काटा नहीं जाता है, बल्कि उस निर्माण की प्लानिंग में बदलाव कर दिया जाता है. जिससे पेड़ों को कोई नुकसान नहीं हो. गांव में टोकी धोरा जाने वाली सड़क पक्की बनी, तब भी इस बात का खास तौर पर ध्यान रखा गया. इस सड़क के बीच में डिवाइडर की तरह पेड़ खड़े हैं. इन पेड़ों के दोनों तरफ सड़क की डामर बनी है.
गांव में विचरण करते हैं वन्य जीव
पेड़ के साथ ही वन्य जीवों की सुरक्षा को लेकर भी इस गांव के ग्रामीण खास तौर पर सजग हैं. यही कारण है कि इस गांव की सीमाओं में चिंकारा और काले हिरण जैसे वन्य जीव खेतों में और घरों के आसपास स्वच्छंद विचरण करते दिखाई पड़ते हैं. रेतीले टीलों के बीच रोटू गांव की सीमा में खड़े खेजड़ी के हजारों हरे-भरे पेड़ वीर योद्धाओं की भांति खड़े दिखाई देते हैं, जो रेतीले रेगिस्तान के तमाम हमलों को झेलकर भी यहां के लोगों को जीवटता और कभी हार नहीं मानने का संदेश दे रहे हैं. इन पेड़ों के कारण यह इस गांव की सीमाएं आसपास के दूसरे गांवों से ज्यादा हरी भरी दिखाई पड़ती हैं.
महिलाएं हिरण के बच्चे को दूध पिला करती है पालन
खेजड़ी के कई पुराने पेड़ आज इतने घने और विशाल हैं कि एक-एक पेड़ पर सैकड़ों पक्षियों का बसेरा है. इनकी घनी छाया में बैठकर वन्यजीव और मनुष्य दोनों अपनी थकान दूर करते हैं. जिले के दूसरे इलाकों की तुलना में यहां चिंकारा, काले हिरण और मोर जैसे पशु पक्षियों की काफी ज्यादा तादाद है. वन्य जीवों के प्रति यहां के ग्रामीणों में इतना लगाव है कि इस गांव के कई घरों में तो चिंकारा पालतू पशु से बढ़कर घर के किसी सदस्य की भांति रहते हैं. किसी कारण से हिरण का बच्चा कम उम्र में अपनी मां से अलग हो जाता है तो यहां की महिलाएं उसे अपना दूध पिलाकर बड़ा करती हैं. ऐसे भी कई उदाहरण इस गांव में हैं.
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हर साल 1 हजार पेड़ लगाने का संकल्प
अब रोटू के युवाओं ने अपनी इस समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाते हुए एक नई मुहिम शुरू की है. ये युवा गांव की खाली पड़ी जमीन पर नए पेड़ लगाकर उनकी नियमित देखभाल कर रहे हैं. इन्होंने हर साल एक हजार नए पौधे लगाकर उन्हें पेड़ बनाने का संकल्प लिया है. इसके लिए मानसून के दौरान हर घर में दो पौधे ये युवा देते हैं और बदले में इनकी नियमित देखभाल के संकल्प दिलाते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि वे गुरु जंभेश्वर महाराज और जोधपुर के खेजड़ली गांव में पेड़ों को बचाने के लिए अमृता देवी के नेतृत्व में शहीद हुए 363 लोगों से प्रेरणा लेकर ये अपना काम कर रहे हैं.
वन्यजीवों को नुकसान पहुंचान वाले को कड़ी सजा देने की मांग
रोटू गांव में चिंकारा, कृष्ण मृग और मोर सहित अन्य पशु पक्षियों की खासी संख्या को देखते हुए राज्य सरकार ने 2012 में इस गांव के आसपास 112 हेक्टेयर में रोटू वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र घोषित किया था, लेकिन आज भी सरकारी स्तर पर इतने संसाधन मुहैया नहीं करवाए गए हैं, जितनी दरकार है. इस गांव के युवाओं में कहीं न कहीं इस बात को लेकर भी चिंता और आक्रोश है कि पर्यावरण और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए जो कानून बने हुए हैं, वे उतने असरदार नहीं है.
इसलिए, कई मामलों में वन्य जीवों को नुकसान पहुंचाने वाले शिकारी आसानी से बचकर निकल जाते हैं. ऐसे में इनकी मांग यह भी है कि वन और वन्य जीवों से संबंधित कानूनों को और सख्त किया जाए. जिससे इन्हें नुकसान पहुंचाने वालों को कड़ी सजा मिले और दूसरों को वन्यजीवों को नुकसान न पहुंचाने का सबक मिले.