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नावां विधानसभा सीट पर है वर्चस्व की लड़ाई, कांग्रेस के महेंद्र चौधरी का मुकाबला बीजेपी के विजय सिंह से - महेंद्र चौधरी बनाम विजय सिंह

नावां विधानसभा सीट शुरू से ही परिवारवाद और वंशवाद का गढ़ रहा है. इसकी बानगी नावां विधानसभा क्षेत्र में देखने को मिलती रही है. आज के दौर में भी दोनों प्रमुख पार्टियों के नेता अपनी सियासी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं.

Rajasthan assembly Election 2023
नावां की लड़ाई
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 14, 2023, 4:07 PM IST

कुचामनसिटी. राजस्थान विधानसभा चुनाव में दो हफ्तों से भी कम का समय बाकी है. कम समय होने की वजह से सियासत की बिसात पर शह और मात के खेल में सभी दलों की सक्रियता बढ़ गई है. राजनीतिक दल के स्टार प्रचारक भी मैदान में पहुंचने लगे हैं. इस बीच प्रदेश की नावां सीट शुरू से ही परिवारवाद और वंशवाद का गढ़ रहा है. नवगठित डीडवाना-कुचामन जिले की नावां विधानसभा सीट का इतिहास बेहद खास रहा है. यहां की सियासत 72 साल से सिर्फ चार परिवारों के इर्द गिर्द घूम रही है. अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस के 9 और भाजपा के पांच विधायक नावां से बन चुके हैं.

नावां विधानसभा क्षेत्र से चुने गए पहले विधायक कृष्ण लाल शाह यहां से लगातार दो बार विधायक रहे, इसके बाद उनका यह रिकॉर्ड रामेश्वर लाल चौधरी ने तोड़ा जो कि नावां विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी विजय सिंह चौधरी के पिता थे. रामेश्वर लाल चौधरी यहां से 1972, 1977 और 1980 में लगातार विधायक चुने गए. इसके बाद रामेश्वर लाल 1993 में भी जीते और विधानसभा पहुंचे. वहीं बीजेपी के हरिश्चंद्र ने भी चार बार विधानसभा चुनाव में जीत का परचम फहराया. 1985 और 1990 में हरिश्चंद्र लगातार दो बार चुनाव जीते. इसके बाद 1993 में उन्हें हार मिली, लेकिन 1998 और 2003 में हरिश्चंद्र फिर से लगातार दो बार चुनाव जीतने में कामयाब हुए. वहीं महेंद्र चौधरी के नाम भी दो बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड है.

पढ़ें:अशोक गहलोत बोले- दम है तो मुद्दों पर बहस करें, पीएम नरेंद्र मोदी व अमित शाह दुश्मनों जैसी बात कर रहे हैं

इन नेताओं को मिली सियासी विरासत: आज के दौर में भी दोनों प्रमुख पार्टियों के नेता अपनी सियासी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं जहां हनुमान चौधरी के पुत्र महेंद्र चौधरी मौजूदा विधायक हैं. वहीं, 4 बार जीत हासिल करने वाले रामेश्वर लाल चौधरी के पुत्र विजय सिंह 2013 से 2018 तक विधायक रह चुके हैं.

2023 का विधानसभा चुनाव: इस बार का चुनाव बेहद ही रोमांचक रहने वाला है इसकी सबसे बड़ी वजह नागौर से अलग होकर नावां विधानसभा क्षेत्र के कुचामन डीडवाना में शामिल करने को लेकर है. हालांकि नए जिले बनने का जितना फायदा यहां के मौजूदा विधायक को हुआ है उतना ही अब नुकसान होता भी दिखाई पड़ रहा है. जिला मुख्यालय अस्थाई तौर पर डीडवाना में बनाए जाने को लेकर नावां की जनता में खासी नाराजगी है. कुचामनसिटी की जनता पिछले 42 साल से नए जिले की मांग कर रही थी. इस मांग को पूरा करवाने में महेंद्र चौधरी कामयाब तो हो गए, लेकिन अब जिला मुख्यालय को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कुचामनसिटी को नया जिला बनाने की घोषणा तो कर दी. लेकिन नोटिफिकेशन जारी नहीं किया.

जातीय समीकरण: नावां विधानसभा क्षेत्र में लंबे वक्त से जाट बनाम जाट का मुकाबला होता आया है. ऐसे में यहां कुमावत समाज निर्णायक भूमिका निभाता है, हालांकि इस क्षेत्र में कुमावत समाज भी बहुसंख्यक है, लेकिन उसके बावजूद जाटों का यहां सियासी वर्चस्व देखने को मिलता रहा है. इसके अलावा यहां ब्राह्मण और एससी, एसटी की भी खासी आबादी है जो चुनाव में अहम भूमिका निभाती है.

पढ़ें:Rajasthan Election 2023 : यह दिग्गज फंसे हैं चुनावी भंवर में, 25 नवंबर को तय होगी किस्मत

1972 के चुनाव में दोनों के पिता हुए आमने- सामने: 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रामेश्वर लाल को चुनावी मैदान में उतारा, जबकि उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार हनुमान सिंह चौधरी से चुनौती मिली. इस चुनाव में हनुमान सिंह चौधरी को 14,622 मतदाताओं का साथ मिला तो वहीं कांग्रेस के रामेश्वर लाल को 18,953 मत मिले. इसके साथ ही कांग्रेस के रामेश्वर लाल की इस चुनाव में जीत हुई. रामेश्वर लाल लगातार तीसरी बार नावां से विधायक चुने गए. रामेश्वर लाल का रिकॉर्ड आज तक कोई दूसरा नेता नहीं तोड़ पाया है.

2013 का विधानसभा चुनाव : 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने तीन बार कांग्रेस से विधायक रहे रामेश्वर लाल चौधरी के पुत्र विजय सिंह को टिकट दिया. वहीं उन्हें एक बार फिर महेंद्र चौधरी से चुनौती मिली. हालांकि इस चुनाव में विजय सिंह चौधरी को मोदी लहर के कारण प्रचंड जीत हासिल हुई.

पढ़ें: राजस्थान में इस हफ्ते जोर पकड़ेगा कांग्रेस का प्रचार अभियान, इन दिग्गज नेताओं की होंगी सभाएं

2018 का विधानसभा चुनाव: 2018 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर महेंद्र चौधरी और विजय सिंह चौधरी आमने- सामने थे. हालांकि नावां की जनता ने परिवर्तन का मन बना लिया था और इसी का नतीजा रहा कि कांग्रेस के महेंद्र सिंह चौधरी को 72168 वोटों के साथ जीत हासिल हुई. 2018 के विधानसभा चुनाव में कुमावत समाज ने अपना निर्दलीय उम्मीदवार शिम्भू दयाल कुमावत को खड़ा किया था जिसका फायदा कांग्रेस पार्टी को हुआ और नावां विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा. इस बार कुमावत समाज ने निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा नहीं करके भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार को अपना समर्थन देने की बात कही है, जिससे कांग्रेस प्रत्याशी महेंद्र चौधरी को नुकसान हो सकता है.

कुचामनसिटी. राजस्थान विधानसभा चुनाव में दो हफ्तों से भी कम का समय बाकी है. कम समय होने की वजह से सियासत की बिसात पर शह और मात के खेल में सभी दलों की सक्रियता बढ़ गई है. राजनीतिक दल के स्टार प्रचारक भी मैदान में पहुंचने लगे हैं. इस बीच प्रदेश की नावां सीट शुरू से ही परिवारवाद और वंशवाद का गढ़ रहा है. नवगठित डीडवाना-कुचामन जिले की नावां विधानसभा सीट का इतिहास बेहद खास रहा है. यहां की सियासत 72 साल से सिर्फ चार परिवारों के इर्द गिर्द घूम रही है. अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस के 9 और भाजपा के पांच विधायक नावां से बन चुके हैं.

नावां विधानसभा क्षेत्र से चुने गए पहले विधायक कृष्ण लाल शाह यहां से लगातार दो बार विधायक रहे, इसके बाद उनका यह रिकॉर्ड रामेश्वर लाल चौधरी ने तोड़ा जो कि नावां विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी विजय सिंह चौधरी के पिता थे. रामेश्वर लाल चौधरी यहां से 1972, 1977 और 1980 में लगातार विधायक चुने गए. इसके बाद रामेश्वर लाल 1993 में भी जीते और विधानसभा पहुंचे. वहीं बीजेपी के हरिश्चंद्र ने भी चार बार विधानसभा चुनाव में जीत का परचम फहराया. 1985 और 1990 में हरिश्चंद्र लगातार दो बार चुनाव जीते. इसके बाद 1993 में उन्हें हार मिली, लेकिन 1998 और 2003 में हरिश्चंद्र फिर से लगातार दो बार चुनाव जीतने में कामयाब हुए. वहीं महेंद्र चौधरी के नाम भी दो बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड है.

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इन नेताओं को मिली सियासी विरासत: आज के दौर में भी दोनों प्रमुख पार्टियों के नेता अपनी सियासी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं जहां हनुमान चौधरी के पुत्र महेंद्र चौधरी मौजूदा विधायक हैं. वहीं, 4 बार जीत हासिल करने वाले रामेश्वर लाल चौधरी के पुत्र विजय सिंह 2013 से 2018 तक विधायक रह चुके हैं.

2023 का विधानसभा चुनाव: इस बार का चुनाव बेहद ही रोमांचक रहने वाला है इसकी सबसे बड़ी वजह नागौर से अलग होकर नावां विधानसभा क्षेत्र के कुचामन डीडवाना में शामिल करने को लेकर है. हालांकि नए जिले बनने का जितना फायदा यहां के मौजूदा विधायक को हुआ है उतना ही अब नुकसान होता भी दिखाई पड़ रहा है. जिला मुख्यालय अस्थाई तौर पर डीडवाना में बनाए जाने को लेकर नावां की जनता में खासी नाराजगी है. कुचामनसिटी की जनता पिछले 42 साल से नए जिले की मांग कर रही थी. इस मांग को पूरा करवाने में महेंद्र चौधरी कामयाब तो हो गए, लेकिन अब जिला मुख्यालय को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कुचामनसिटी को नया जिला बनाने की घोषणा तो कर दी. लेकिन नोटिफिकेशन जारी नहीं किया.

जातीय समीकरण: नावां विधानसभा क्षेत्र में लंबे वक्त से जाट बनाम जाट का मुकाबला होता आया है. ऐसे में यहां कुमावत समाज निर्णायक भूमिका निभाता है, हालांकि इस क्षेत्र में कुमावत समाज भी बहुसंख्यक है, लेकिन उसके बावजूद जाटों का यहां सियासी वर्चस्व देखने को मिलता रहा है. इसके अलावा यहां ब्राह्मण और एससी, एसटी की भी खासी आबादी है जो चुनाव में अहम भूमिका निभाती है.

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1972 के चुनाव में दोनों के पिता हुए आमने- सामने: 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रामेश्वर लाल को चुनावी मैदान में उतारा, जबकि उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार हनुमान सिंह चौधरी से चुनौती मिली. इस चुनाव में हनुमान सिंह चौधरी को 14,622 मतदाताओं का साथ मिला तो वहीं कांग्रेस के रामेश्वर लाल को 18,953 मत मिले. इसके साथ ही कांग्रेस के रामेश्वर लाल की इस चुनाव में जीत हुई. रामेश्वर लाल लगातार तीसरी बार नावां से विधायक चुने गए. रामेश्वर लाल का रिकॉर्ड आज तक कोई दूसरा नेता नहीं तोड़ पाया है.

2013 का विधानसभा चुनाव : 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने तीन बार कांग्रेस से विधायक रहे रामेश्वर लाल चौधरी के पुत्र विजय सिंह को टिकट दिया. वहीं उन्हें एक बार फिर महेंद्र चौधरी से चुनौती मिली. हालांकि इस चुनाव में विजय सिंह चौधरी को मोदी लहर के कारण प्रचंड जीत हासिल हुई.

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2018 का विधानसभा चुनाव: 2018 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर महेंद्र चौधरी और विजय सिंह चौधरी आमने- सामने थे. हालांकि नावां की जनता ने परिवर्तन का मन बना लिया था और इसी का नतीजा रहा कि कांग्रेस के महेंद्र सिंह चौधरी को 72168 वोटों के साथ जीत हासिल हुई. 2018 के विधानसभा चुनाव में कुमावत समाज ने अपना निर्दलीय उम्मीदवार शिम्भू दयाल कुमावत को खड़ा किया था जिसका फायदा कांग्रेस पार्टी को हुआ और नावां विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा. इस बार कुमावत समाज ने निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा नहीं करके भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार को अपना समर्थन देने की बात कही है, जिससे कांग्रेस प्रत्याशी महेंद्र चौधरी को नुकसान हो सकता है.

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