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SPECIAL: मारोठ में है 98 साल पुरानी बकरशाला, यहां रहते हैं भैरव बाबा के 'अमर' बकरे

गोवंश के संरक्षण और देखभाल के लिए कमोबेश देश के हर गांव और शहर में गोशाला मिल ही जाती है. लेकिन नागौर के मारोठ गांव में एक ऐसी जगह है. जहां बकरों को रखा जाता है और उनकी देखभाल की जाती है. इस रिपोर्ट में जानिए क्या है इस बकरशाला का इतिहास और क्या है यहां की खासियत...

bakarshala in maroth Village, bakarshala in rajasthan
नागौर के मारोठ गांव की बकरशाला
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Published : Aug 24, 2020, 9:05 PM IST

Updated : Aug 25, 2020, 2:51 PM IST

नागौर. गोशाला में गायों की देखभाल और सेवा के बारे में आपने कई बातें पढ़ी और सुनी होंगी. लेकिन क्या आपने सुना है कि बकरों की देखभाल और संरक्षण के लिए भी कोई खास जगह है. जहां न केवल बकरों को रखा जाता है. बल्कि, खाने-पीने और बीमार होने पर उपचार तक के तमाम इंतजाम भी किए जाते हैं.

नागौर के नावां उपखंड के मारोठ गांव में बकरों के लिए खास तौर पर बकरशाला बनवाई गई है. जिसका संचालन जीव दया समिति के जनसहयोग से किया जा रहा है. यहां बकरों की देखभाल उसी तरह होती है, जैसे किसी गोशाला में गायों की होती है. खास बात यह है कि यह बकरशाला 98 साल पुरानी है और दावा किया जाता है कि देश की यह एकमात्र बकरशाला है.

देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट

यहां है भैरव बाबा का ऐतिहासिक और चमत्कारी मंदिर

ग्रामीणों का कहना है कि मारोठ गांव में भैरव बाबा का ऐतिहासिक और चमत्कारी मंदिर है. जहां लोग अपनी मनौतियां और जात-जडूले लेकर आते हैं. बताया जाता है कि पुराने समय में अपनी मनौती पूरी होने पर श्रद्धालुओं द्वारा यहां बकरे की बलि देने का रिवाज था. लेकिन अब भैरव मंदिर में आने वाले सभी बकरों को बकरशाला भेजा जाता है. जहां उनका पालन-पोषण होता है.

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मारोठ गांव की बकरशाला

ये भी पढ़ें- SPECIAL: कोटा मेडिकल कॉलेज CT Scan से भी करेगी कोरोना जांच, सप्लीमेंट्री टेस्ट के रूप में लेगा काम

मंदिर में थी बलि की पुरानी परंपरा

ग्रामीणों ने बताया कि भैरव बाबा के मंदिर में बलि की पुरानी परंपरा थी. लेकिन करीब 98 साल पहले जैन समाज के लोगों ने गांव के सामने प्रस्ताव रखा कि बलि देने के बजाए भैरव बाबा के नाम से बकरों को अमर करके छोड़ दिया जाए. जब ग्रामीणों ने इन बकरों की देखभाल पर होने वाले खर्च को लेकर चिंता जताई तो जैन समाज के लोग आगे आए और बकरों की देखभाल पर होने वाला पूरा खर्च वहन करने के लिए तैयार हो गए.

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यहां मौजूद हैं 250 से 300 बकरे

1922 में रखी गई थी बकरशाला की नींव

तब 23 सितंबर 1922 को जीव दया पालक समिति के नाम से ट्रस्ट की स्थापना कर इसके तहत इस बकरशाला की नींव रखी गई. तब से भैरव बाबा के मंदिर में बकरों की बलि बंद कर दी गई और मनौती पूरी होने पर श्रद्धालुओं द्वारा लाए गए बकरों को अमर करके बकरशाला में छोड़ा जाने लगा. यह परंपरा आज भी अनवरत जारी है. स्थानीय भाषा में बकरशाला के बकरों को भैरव बाबा के 'अमर' बकरे कहा जाता है.

मारोठ भैरव बाबा मंदिर के पुजारी बाबूलाल महाराज का कहना है कि अभी भी यहां देशभर से श्रद्धालु अपनी मनौती लेकर आते हैं और मनौती पूरी होने पर बकरा मंदिर में भेंट करते हैं. इन बकरों को सिंदूर का तिलक लगाकर बकरशाला में भेज दिया जाता है. बकरशाला की व्यवस्था से जुड़े लोगों का कहना है कि वर्तमान में करीब 250-300 बकरे बकरशाला में रह रहे हैं.

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खाने में दी जाती हैं जौ और खेजड़ी की पत्तियां

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जैन समाज करता है पूरा खर्चा वहन

एक बार जो बकरा यहां आता है, उसे जीवनभर यहीं रखा जाता है. उसके खाने-पीने से लेकर बीमार होने पर दवा और डॉक्टर तक की व्यवस्था यहीं पर की जाती है. इस बकरशाला में बकरों की देखभाल पर होने वाला खर्च जैन समाज के लोगों, प्रवासियों और भामाशाहों द्वारा वहन किया जाता है. बकरशाला में दो बाड़ों में बकरों को रखा जाता है. एक में बड़े बकरों को और दूसरे में छोटे बकरों को रखा जाता है.

इन बकरों की देखभाल में लगे बुजुर्ग रुघाराम मेहरा बताते हैं कि वे 20 साल से इन बकरों की देखभाल कर रहे हैं. अब तो ये बकरे इनकी आवाज तक पहचानने लगे हैं. जैसे ही वह बकरों को बाड़े से बाहर आने या भीतर जाने के लिए कहते हैं, बकरे वैसा ही करते हैं. उनका कहना है कि जौ और खेजड़ी की पत्तियां इन बकरों को खाने के लिए दी जाती हैं. इसके अलावा चारागाह भी ले जाया जाता है. इनके खानपान का मौसम के हिसाब से भी ध्यान रखा जाता है.

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मारोठ गांव में भैरव बाबा का मंदिर

ये भी पढ़ें- स्पेशल: 'वेस्ट को बेस्ट' बनाने का नायाब तरीका...बिना लागत तैयार कर दिए 2 हजार नीम के पौधे

हर दिन आता है 4 से 5 हजार रुपए का खर्चा

बकरशाला का संचालन करने वाली जीव दया पालक समिति के कोषाध्यक्ष पंकज जैन का कहना है कि बकरशाला की व्यवस्था पर हर दिन 4 से 5 हजार रुपए का खर्च आता है, जो जैन समाज के लोग आपसी सहयोग और भामाशाहों की मदद से जुटाते हैं. उनका कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में बकरों के लिए खाने-पीने का इंतजाम करने और देखभाल करने के लिए चार-पांच कर्मचारी लगाए गए हैं, जो बकरशाला में चारा और दाना-पानी की व्यवस्था करते हैं. यही लोग बकरशाला की साफ-सफाई करते हैं और बकरों को चारागाह भी ले जाते हैं.

2022 में बकरशाला की स्थापना को हो जाएंगे 100 साल पूरे

मारोठ जैन समाज के लोग बताते हैं कि साल 2022 में इस बकरशाला की स्थापना को 100 साल पूरे हो जाएंगे. इस खास मौके को अलग अंदाज में मनाने के लिए उन्होंने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं. उनका कहना है कि इस संबंध में देशभर में फैले जैन समाज के लोगों से चर्चा की जा रही है. ताकि बकरशाला की स्थापना के सौ साल पूरे होने का जश्न धूमधाम से मनाया जा सके. इस समिति से जुड़े लोगों की मांग है कि गोशाला की तर्ज पर इस बकरशाला को भी सरकारी सहयोग मिले और इसकी तर्ज पर अन्य जगहों पर भी ऐसी संस्था बनाई जाए.

नागौर. गोशाला में गायों की देखभाल और सेवा के बारे में आपने कई बातें पढ़ी और सुनी होंगी. लेकिन क्या आपने सुना है कि बकरों की देखभाल और संरक्षण के लिए भी कोई खास जगह है. जहां न केवल बकरों को रखा जाता है. बल्कि, खाने-पीने और बीमार होने पर उपचार तक के तमाम इंतजाम भी किए जाते हैं.

नागौर के नावां उपखंड के मारोठ गांव में बकरों के लिए खास तौर पर बकरशाला बनवाई गई है. जिसका संचालन जीव दया समिति के जनसहयोग से किया जा रहा है. यहां बकरों की देखभाल उसी तरह होती है, जैसे किसी गोशाला में गायों की होती है. खास बात यह है कि यह बकरशाला 98 साल पुरानी है और दावा किया जाता है कि देश की यह एकमात्र बकरशाला है.

देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट

यहां है भैरव बाबा का ऐतिहासिक और चमत्कारी मंदिर

ग्रामीणों का कहना है कि मारोठ गांव में भैरव बाबा का ऐतिहासिक और चमत्कारी मंदिर है. जहां लोग अपनी मनौतियां और जात-जडूले लेकर आते हैं. बताया जाता है कि पुराने समय में अपनी मनौती पूरी होने पर श्रद्धालुओं द्वारा यहां बकरे की बलि देने का रिवाज था. लेकिन अब भैरव मंदिर में आने वाले सभी बकरों को बकरशाला भेजा जाता है. जहां उनका पालन-पोषण होता है.

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मारोठ गांव की बकरशाला

ये भी पढ़ें- SPECIAL: कोटा मेडिकल कॉलेज CT Scan से भी करेगी कोरोना जांच, सप्लीमेंट्री टेस्ट के रूप में लेगा काम

मंदिर में थी बलि की पुरानी परंपरा

ग्रामीणों ने बताया कि भैरव बाबा के मंदिर में बलि की पुरानी परंपरा थी. लेकिन करीब 98 साल पहले जैन समाज के लोगों ने गांव के सामने प्रस्ताव रखा कि बलि देने के बजाए भैरव बाबा के नाम से बकरों को अमर करके छोड़ दिया जाए. जब ग्रामीणों ने इन बकरों की देखभाल पर होने वाले खर्च को लेकर चिंता जताई तो जैन समाज के लोग आगे आए और बकरों की देखभाल पर होने वाला पूरा खर्च वहन करने के लिए तैयार हो गए.

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यहां मौजूद हैं 250 से 300 बकरे

1922 में रखी गई थी बकरशाला की नींव

तब 23 सितंबर 1922 को जीव दया पालक समिति के नाम से ट्रस्ट की स्थापना कर इसके तहत इस बकरशाला की नींव रखी गई. तब से भैरव बाबा के मंदिर में बकरों की बलि बंद कर दी गई और मनौती पूरी होने पर श्रद्धालुओं द्वारा लाए गए बकरों को अमर करके बकरशाला में छोड़ा जाने लगा. यह परंपरा आज भी अनवरत जारी है. स्थानीय भाषा में बकरशाला के बकरों को भैरव बाबा के 'अमर' बकरे कहा जाता है.

मारोठ भैरव बाबा मंदिर के पुजारी बाबूलाल महाराज का कहना है कि अभी भी यहां देशभर से श्रद्धालु अपनी मनौती लेकर आते हैं और मनौती पूरी होने पर बकरा मंदिर में भेंट करते हैं. इन बकरों को सिंदूर का तिलक लगाकर बकरशाला में भेज दिया जाता है. बकरशाला की व्यवस्था से जुड़े लोगों का कहना है कि वर्तमान में करीब 250-300 बकरे बकरशाला में रह रहे हैं.

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खाने में दी जाती हैं जौ और खेजड़ी की पत्तियां

ये भी पढ़ें- SPECIAL: पाली में मानसून ने फिर दिया धोखा, आसमान की ओर टकटकी लगाए देखते रहे किसान

जैन समाज करता है पूरा खर्चा वहन

एक बार जो बकरा यहां आता है, उसे जीवनभर यहीं रखा जाता है. उसके खाने-पीने से लेकर बीमार होने पर दवा और डॉक्टर तक की व्यवस्था यहीं पर की जाती है. इस बकरशाला में बकरों की देखभाल पर होने वाला खर्च जैन समाज के लोगों, प्रवासियों और भामाशाहों द्वारा वहन किया जाता है. बकरशाला में दो बाड़ों में बकरों को रखा जाता है. एक में बड़े बकरों को और दूसरे में छोटे बकरों को रखा जाता है.

इन बकरों की देखभाल में लगे बुजुर्ग रुघाराम मेहरा बताते हैं कि वे 20 साल से इन बकरों की देखभाल कर रहे हैं. अब तो ये बकरे इनकी आवाज तक पहचानने लगे हैं. जैसे ही वह बकरों को बाड़े से बाहर आने या भीतर जाने के लिए कहते हैं, बकरे वैसा ही करते हैं. उनका कहना है कि जौ और खेजड़ी की पत्तियां इन बकरों को खाने के लिए दी जाती हैं. इसके अलावा चारागाह भी ले जाया जाता है. इनके खानपान का मौसम के हिसाब से भी ध्यान रखा जाता है.

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मारोठ गांव में भैरव बाबा का मंदिर

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हर दिन आता है 4 से 5 हजार रुपए का खर्चा

बकरशाला का संचालन करने वाली जीव दया पालक समिति के कोषाध्यक्ष पंकज जैन का कहना है कि बकरशाला की व्यवस्था पर हर दिन 4 से 5 हजार रुपए का खर्च आता है, जो जैन समाज के लोग आपसी सहयोग और भामाशाहों की मदद से जुटाते हैं. उनका कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में बकरों के लिए खाने-पीने का इंतजाम करने और देखभाल करने के लिए चार-पांच कर्मचारी लगाए गए हैं, जो बकरशाला में चारा और दाना-पानी की व्यवस्था करते हैं. यही लोग बकरशाला की साफ-सफाई करते हैं और बकरों को चारागाह भी ले जाते हैं.

2022 में बकरशाला की स्थापना को हो जाएंगे 100 साल पूरे

मारोठ जैन समाज के लोग बताते हैं कि साल 2022 में इस बकरशाला की स्थापना को 100 साल पूरे हो जाएंगे. इस खास मौके को अलग अंदाज में मनाने के लिए उन्होंने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं. उनका कहना है कि इस संबंध में देशभर में फैले जैन समाज के लोगों से चर्चा की जा रही है. ताकि बकरशाला की स्थापना के सौ साल पूरे होने का जश्न धूमधाम से मनाया जा सके. इस समिति से जुड़े लोगों की मांग है कि गोशाला की तर्ज पर इस बकरशाला को भी सरकारी सहयोग मिले और इसकी तर्ज पर अन्य जगहों पर भी ऐसी संस्था बनाई जाए.

Last Updated : Aug 25, 2020, 2:51 PM IST
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