कोटा. राजस्थान में बिजली उत्पादन के लिए कई तरह के प्लांट लगे हुए हैं. कोटा संभाग में गैस, कोयला, परमाणु, बायोमास, पानी और सोलर से भी बिजली का उत्पादन हो रहा है. दावा है कि इन सब में सस्ती बिजली पानी से बन रही है. राजस्थान में दो पनबिजली घर यानी हाइड्रो पावर प्लांट चित्तौड़गढ़ के रावतभाटा राणा प्रताप सागर बांध और बूंदी जिले के जवाहर सागर डैम पर लगे हुए हैं, जहां बिजली उत्पादन की कॉस्टिंग महज 30 पैसे प्रति यूनिट है.
कॉस्टिंग करीब 33 पैसे के आसपास : इन दोनों डैम का ऑपरेशन कार्य कोटा में राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RVUNL) के डिप्टी चीफ इंजीनियर एनएस खंगारोत के अधीन है. उन्होंने बताया कि अधिकांश पैसा यहां पर लगे कार्मिकों की सैलरी और यूनिट के मेंटेनेंस में ही खर्च हो रहा है. उनका दावा है कि राजस्थान के दो हाइड्रो पावर प्लांट सबसे सस्ती बिजली बना रहे हैं. बीते 7 सालों में 36167 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन इन पनबिजली घरों में हुआ है, जिसकी कॉस्टिंग करीब 33 पैसे के आसपास आ रही है. बीच में आरपीएस डैम का पनबिजली घर बंद था, इसके चलते यह कॉस्टिंग बढ़ी है. ऐसा नहीं होता तो यह कॉस्टिंग 25 पैसे से भी कम होती.
20 करोड़ का खर्चा, 300 करोड़ की बिजली : आरवीयूएनएल के डिप्टी चीफ इंजीनियर एनएस खंगारोत के अनुसार साल 2016-17 के वित्तीय वर्ष में दोनों हाइड्रो प्लांट में 7565 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन किया था. इस बिजली उत्पादन की कॉस्टिंग महज 16 पैसे प्रति यूनिट ही आई थी. ऐसे में महज 12.13 करोड़ रुपए में यह बिजली बन गई थी, जबकि इस पूरी बिजली का बाजार मूल्य 300 करोड़ से भी ज्यादा है. इसके साथ ही साल 2022-23 में भी अच्छा बिजली जनरेशन हुआ, जो 7252 लाख यूनिट रहा. इस बिजली को उत्पादन में 27 पैसे प्रति यूनिट खर्च आया है.
बारिश में कम हो जाता है उत्पादन : पनबिजली घर में इलेक्ट्रिसिटी जनरेशन बारिश के ऊपर ही निर्भर करता है. बांध के दरवाजे अगर एक साथ नहीं खोले जाते हैं तब बिजली का उत्पादन कम रहता है. जब डैम से धीरे-धीरे पानी निकाला जाता है, तब बिजली जनरेशन ज्यादा होता है. अगर एक साथ बारिश और बाढ़ जैसी स्थिति हो जाती है तो डैम के गेट खोल दिए जाते हैं. ऐसे में बिजली जनरेशन में कमी रहती है. इसके अलावा पूरे सीजन रुक-रुक कर बारिश होती है तो डैम के दरवाजे नहीं खोलकर हाइड्रो पावर प्लांट की यूनिट के जरिए पानी को धीरे-धीरे निकाला जाता है, तब टरबाइन ज्यादा चलती है और बिजली उत्पादन काफी अच्छा होता है. साल 2022-23 में लंबे समय तक पनबिजली घर के प्लांट संचालित हुए थे. इससे अच्छी खासी तादाद में बिजली का उत्पादन हुआ था.
4-6 रुपए प्रति यूनिट कोयला उत्पादित बिजली : हाड़ौती में कोयला से बिजली उत्पादन के चार बड़े प्लांट स्थापित हैं, जिनकी क्षमता 4000 मेगावाट से ज्यादा हैं. इनमें तीन सरकारी और एक निजी प्लांट हैं. इनमें बिजली उत्पादन में 4 से 6 रुपए प्रति यूनिट का खर्चा आ रहा है. पुराने प्लांट से कैपिटल कॉस्ट निकल चुकी है. ऐसे में उनका महज कुछ पैसा ही लग रहा है. नए प्लांट में कैपिटल कॉस्ट ज्यादा है. कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट के चीफ इंजीनियर केएल मीणा का कहना है कि उनके यहां पर प्रति यूनिट 5 रुपए का खर्चा बिजली उत्पादन में हो रहा है. नए प्लांट में कैपिटल कॉस्ट और ऑपरेशनल कॉस्ट जुड़ती है. इसमें कोयला, सैलरी, फ्यूल और ब्याज भी शामिल है. हालांकि, दूसरे प्लांट में यह खर्चा कम ज्यादा हो सकता है.
ज्यादा प्लांट चलेगा, कम होगी कॉस्टिंग : डिप्टी सीई खंगारोत के अनुसार जितना ज्यादा हाइड्रो प्लांट चलेंगे, बिजली का उत्पादन भी उतना ज्यादा होगा और कॉस्टिंग भी तभी कम होगी. साल 2019 में आरपीएस डैम में पानी घुस गया था और डैम बंद हो गया था. इसके बाद के तीन सालों में बिजली उत्पादन की कॉस्टिंग काफी बढ़ गई. जवाहर सागर प्लांट ही केवल चल रहा था. ऐसे में साल 2019-20 में महज 3695, साल 2020-21 में 2500 और साल 2021-22 में 2953 लाख यूनिट का उत्पादन हुआ था. इन दौरान बिजली की कॉस्टिंग 47 से लेकर 74 पैसे प्रति यूनिट रही.
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खत्म हो गई है कैपिटल कॉस्ट : इंटरस्टेट प्रोजेक्ट के तहत पनबिजली घर स्थापित किए गए थे. इनमें एक यूनिट गांधी सागर डैम, मध्य प्रदेश में स्थित है, जबकि दो यूनिट राणा प्रताप सागर चित्तौड़गढ़ और जवाहर सागर बूंदी, राजस्थान में है. यह 1968 और 1972 में स्थापित हुए थे और तब से ही अच्छा उत्पादन करते जा रहे हैं. राजस्थान के दो प्लांट की सभी यूनिट्स चलती हैं तब 7000 लाख यूनिट के आसपास बिजली उत्पादन एक वित्तीय वर्ष में होता है. इन दोनों प्लांट्स की पूरी लागत भी अब निकल चुकी है, केवल स्टाफ की सैलरी, मेंटेनेंस और ऑपरेशनल कॉस्ट ही बिजली उत्पादन में आती है. डिप्टी सीई खंगारोत के अनुसार करीब 125 लोगों का स्टाफ दोनों प्लांट्स और ऑफिस में लगा हुआ है. इनमें इंजीनियर, अकाउंट, ऑपरेटर, प्रशासनिक कार्य से लेकर अन्य वर्कर शामिल हैं.
पानी की उपलब्धता से सस्ती बिजली : डिप्टी सीई खंगारोत के अनुसार सस्ती बिजली इसलिए बन रही है, क्योंकि यहां पानी की उपलब्धता है. हिमाचल प्रदेश, असम और नॉर्थ ईस्ट में भी इस तरह के प्लांट लगे हुए हैं. राजस्थान के दोनों प्लांट भी ज्यादातर तभी चलते हैं, जब नहरों में पानी छोड़ा जाता है. ऐसे में मुख्य रूप से रबी के सीजन में मध्यप्रदेश को भी राजस्थान से निकलने वाली नहरों से पानी दिया जाता है. प्रमुख रूप से 6 महीने ही यह प्लांट संचालित होते हैं, ज्यादा संचालन होने पर बिजली का उत्पादन भी ज्यादा होता है.
पानी लगातार मिले तो कम हो सकती है कॉस्ट : यूनिट के संचालन में पानी मिलने पर उत्पादन ज्यादा होता है, जिससे प्रति यूनिट खर्चा कम हो जाता है. खंगारोत के अनुसार बिजली उत्पादन के बाद डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों को दे देते हैं. हमारे यहां उपयोग की गई बिजली का समायोजन जयपुर स्तर पर होता है। इसमें यह भी है कि राजस्थान में बिजली कितने प्रयोग में ली और मध्यप्रदेश में कितनी उपयोग में ली इसका भी प्रतिशत जयपुर में ही तय होता है.