कोटा. कोटा बूंदी लोकसभा क्षेत्र में सुपोषित मां अभियान संचालित किया जा रहा है, जिसका लक्ष्य कोटा - बूंदी जिले में कुपोषण को कम करना और मदर एंड चाइल्ड मोर्टलिटी रेट को भी कंट्रोल में लाना है. इस अभियान को बिना सरकारी सहायता के लोकसभा स्पीकर ओम बिरला की प्रेरणा से शुरू किया गया था. वर्तमान में करीब 6 हजार गर्भवतियों या प्रसूताओं को इससे फायदा मिला है. एक तरह से कहा जाए तो मां और नवजात के लिए यह अभियान मददगार रहा है, जिसमें महिलाओं की जांच से लेकर जरूरत पड़ने पर उनका अस्पताल में इलाज और न्यूट्रीशन के लिए पोषण किट वितरण करने का काम है. इस अभियान के संयोजक डॉ. मीनू बिरला ने दावा किया है कि इस किट के जरिए मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी आई है. इसके साथ ही प्रसव के दौरान होने वाली परेशानियों से भी गर्भवतियों को मुक्ति मिली है.
शिशुओं का स्वास्थ्य भी ठीक और वजन भी अच्छा - डॉ. मीनू बिरला ने कहा कि किट को लेने वाली गर्भवती का स्वास्थ्य प्रसव तक ठीक रहा है. कई महिलाओं का फीडबैक है कि वे पूरे 9 महीने तक काम करती हुई बिना परेशानी के प्रसव हुआ है. साथ ही बच्चा भी काफी स्वस्थ हो रहे हैं, उन्होंने यह भी दावा किया कि हमने जब जांच की तब सामने आया कि प्रसव के बाद शिशु का वजन करीब ढाई किलो से ज्यादा ही होना सामने आया है. कुछ केस में यह कम था, लेकिन अधिकांश में बच्चा स्वस्थ हुआ है.
3 से 5 हजार महिलाओं को हर महीने पहुंच रहा किट - साल 2020 में फरवरी महीने में सुपोषित मां अभियान की शुरुआत हुई थी, जिसमें करीब 1000 महिलाओं को किट वितरित किए गए थे. कोविड-19 के तहत लॉकडाउन लग जाने के चलते यह अभियान थम गया था. कोविड-19 के बाद यह अभियान दोबारा बीते साल 2022 में शुरू किया गया था, जिसको 1 साल से ज्यादा हो गया है. इसमें रजिस्ट्रेशन का आंकड़ा के 6000 के ऊपर पहुंच गया है, साथ ही दो हजार ऐसी महिलाएं हैं जिनको पूरे 10 महीने का किट उपलब्ध करा दिया गया है, वर्तमान में 3 से 5 हजार महिलाओं को यह किट प्रति माह दिया जा रहा है.
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चिकित्सक की सलाह पर बना दिया जाता है कार्ड - महिलाओं को यह किट उपलब्ध कराने के लिए चिकित्सक अभियान में जुटे हुए हैं, इसके अलावा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और कुछ सामाजिक कार्यकर्ता भी इस अभियान में शामिल हैं. इनके जरिए महिलाओं पर रजिस्ट्रेशन कराया जाता है, उनके रिकमेंडेशन पर ही महिलाओं को किट वितरित कर दिया जाता है. इन सभी गर्भवती महिलाओं का एक कार्ड भी बनवा दिया जाता है, जिनके आधार पर ही उन्हें यह किट उपलब्ध करवा दिया जाता है. साथ ही यह किट 10 महीने तक गर्भवती महिला को दिया जाता है, जो कि डिलीवरी के 1 महीने बाद तक शामिल है.
हेल्थ एग्जामिन में जरूरत होने पर करवा लेते हैं मेडिकल टेस्ट - डॉ. मीनू बिरला का कहना है कि जिन महिलाओं का वजन 45 किलो से कम होता है या फिर चिकित्सक जिनकी रिकमेंडेशन देते हैं. उनको ही यह किट उपलब्ध कराया जाता है. ऐसी महिलाओं के स्वास्थ्य की मॉनिटरिंग भी रखी जाती है. उन्हें हर महीने 17 से 20 तारीख के बीच में किट उपलब्ध करा दिया जाता है. साथ ही उनके स्वास्थ्य का परीक्षण भी कराया जाता है.
कोटा बूंदी के 100 डॉक्टर जुड़े हैं अभियान से - डॉ. मीनू बिरला ने बताया कि इस पूरे अभियान में 100 के करीब चिकित्सक जुड़े हुए हैं, कोटा शहर में ही अकेले 25 चिकित्सक जुड़े हुए हैं. साथ ही जितने भी गांव हैं, उनमें भी एक एक चिकित्सक इनसे जुड़े हैं. वहीं करीब 300 से 500 लोगों को भी अभियान में जोड़ा हुआ है, यह महिलाओं तक किट पहुंचाने से लेकर उनका रजिस्ट्रेशन करवाने और दूसरे काम में जुटे हुए हैं. अभियान कोटा बूंदी जिले में सभी एरिया में संचालित हो रहा है, जिसमें कोटा के सुल्तानपुर, दीगोद, सीमलिया, इटावा, सांगोद, रामगंजमंडी, लाडपुरा, बूंदी के केशोरायपाटन, कापरेन, लाखेरी, तालेड़ा व नैनवा शामिल है. प्रेग्नेंट होने के बाद महिलाओं को यह किट रजिस्ट्रेशन के बाद उपलब्ध कराना शुरू कर दिया जाता है.
अस्पताल में नवजातों की मौत के बाद शुरू हुआ अभियान - साल 2020 में कोटा के जेके लोन अस्पताल में लगातार शिशुओं की मौत हुई थी. इसके बाद ही लोक सभा स्पीकर ओम बिरला ने जेके लोन अस्पताल का विजिट किया था और वहां पर सामने आया था कि गर्भावस्था के दौरान ठीक से पोषण नहीं मिलने के चलते भी प्रीमेच्योर प्रसव हो रहे हैं. इन प्रीमेच्योर प्रसव में कमजोर बच्चों का जन्म हो रहा है, इसी के चलते नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है. इसको दूर करने के लिए लोकसभा स्पीकर बिरला ने इस अभियान की योजना बनवाई थी.
इसके तहत कोटा शहर व अन्य जगह की कई संस्थाओं से मिलाकर सुपोषित मां अभियान शुरू करवाया है, इसमें किसी भी तरह की कोई सरकारी सहायता नहीं मिलती है, लेकिन व्यवस्था पूरी सरकारी सिस्टम की तरह है. जिसमें पोषक कार्ड बनाने से लेकर उनके स्वास्थ्य की जांच, किट पहुंचाना और जरूरत पड़ने पर उपचार कराना तक शामिल है.
17 किलोग्राम के आसपास से संतुलित आहार - डॉ. मीनू बिरला ने बताया कि एक किट में करीब 17 किलोग्राम के आसपास का संतुलित आहार महिलाओं को उपलब्ध कराया जा रहा है. इसमें गेहूं, चना, मक्का और बाजरे का आटा है, देसी घी के लड्डू, तेल, दलिया, दाल, सोयाबीन, बड़ी, मूंगफली, भुने हुए चने और खजूर के साथ-साथ चावल भी शामिल हैं. इनके जरिए महिलाओं को काफी कुछ राहत और मदद मिलती है. इस किट की लाभार्थी महिलाओं का कहना है कि पूरा पोषण गर्भावस्था के दौरान नहीं मिलता, क्योंकि उनका परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है. दूसरी तरफ ऐसी महिलाएं भी इसमें शामिल है, जिनको पूरा भोजन ही नहीं मिल पाता है. इसीलिए उनके आने वाली संतान स्वस्थ और उनका भी स्वास्थ्य पूरे 9 महीने ठीक रहे, इसीलिए इस योजना को शुरू किया गया था.
वजन भी बढ़ा, बच्चा भी स्वस्थ रहा - सुपोषित मां अभियान से साल 2020 में किट ले चुकी दिव्या गोस्वामी का कहना है कि पहली डिलीवरी के समय उन्हें काफी परेशानी हुई थी, लेकिन दूसरे प्रसव के समय उन्हें कमर दर्द से लेकर कई समस्या नहीं हुई. बच्चे का वजन भी काफी अच्छा था. इसी तरह निर्मला कंवर का कहना है कि प्रसव के समय उनका वजन 40 किलो के आसपास था, लेकिन बिस्किट से वजन में बढ़ोतरी हुई. यह वजन भी 45 से 50 के बीच है. बच्चा भी हेल्थी 2.7 किलो का था. केशवपुरा इलाके की कविता सागर का कहना है कि किट देने के लिए जब उन्हें बुलाया जाता था, तब स्वास्थ्य परीक्षण भी होता था. साथ ही वजन लिया जाता था इससे लगातार मॉनिटरिंग भी उनकी हुई है.
कम हुए प्रीमेच्योर डिलीवरी व सिजेरियन - किट वितरण में जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता नंदकंवर हाड़ा का कहना है कि किट के लिए 45 किलो से कम वजन की महिलाओं को चुना था. इसमें सामान्य परिवार या गरीब तबके की महिलाओं को प्राथमिकता दी गई थी. हमने पूरे सिस्टम के अनुसार उन महिलाओं का डाटा कलेक्ट किया. उन्हें किट उपलब्ध कराएं हैं. करीब 70 से 80 किट अभी भी वितरित किए जा रहे हैं. गर्भवती को किट देते समय हर महीने वजन लिया है. जिसमें वजन बढ़ने के साथ शिशु भी स्वस्थ हुए है. प्रीमेच्योर डिलीवरी की संख्या भी कम हुई है. सिजेरियन प्रसव भी कम हुए हैं.