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Special : IIT पासआउट जॉब छोड़ कर रहे इनडोर फार्मिंग, यह तकनीक क्लाइमेट में भी कर सकती है बदलाव

राजस्थान के दो आईआईटीयन दोस्तों ने कमाल कर दिया है. इन्होंने इनडोर फार्मिंग शुरू की है, जिसमें ग्रोइंग चेंबर बनाकर उसके जरिए खेती करना शुरू किया है. इस तकनीक से छतों पर भी वनस्पति उगाया जा सकता है. दोनों दोस्त इससे होने वाले प्रोडक्शन को कई शहरों में सप्लाई भी कर रहे हैं. यहां जनिए इस स्टार्टअप की पूरी कहानी...

Unique Farming Technique in Kota
Unique Farming Technique in Kota
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Published : Dec 29, 2022, 7:16 PM IST

Updated : Jan 5, 2023, 8:41 AM IST

IIT पासआउट जॉब छोड़ कर रहे इनडोर फार्मिंग

कोटा. आईआईटी मुंबई से पासआउट दो दोस्त अभय सिंह और अमित कुमार ने मिलकर (IIT Bombay Pass Out Friends) कोटा संभाग के साथ देश के कई हिस्सों में हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती शुरू की है. जिसमें उन्होंने ग्रोइंग चेंबर बनाकर उसके जरिए खेती करना शुरू किया है, जिसमें करोड़ों रुपये का इन्वेस्ट लोगों को साथ लेकर इन्होंने किया है. यहां होने वाले प्रोडक्शन को यह बाहर कई शहरों में सप्लाई भी कर रहे हैं, लेकिन वर्तमान में इनके इनडोर फार्मिंग के तहत केवल टमाटर की चार से पांच अलग-अलग वैरायटी का उत्पादन हो रहा है.

इन्होंने इक्की फूड नाम से अपनी एक कंपनी भी खोली है, जिसके जरिए ही माल सप्लाई कर रहे हैं. अभय सिंह इस कंपनी के सीईओ हैं और वे चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा के रहने वाले हैं. वर्तमान में कोटा ही रहते हैं. वहीं, कंपनी के सीओओ अमित कुमार गंगानगर के रहने वाले हैं. दोनों ने साल 2014 में आईआईटी मुंबई से मैटेरियल साइंस में बीटेक पास किया है. इसके बाद (Unique Farming Technique in Kota) उन्होंने कुछ कंपनियों में जॉब की और साल 2018 में यह स्टार्टअप शुरू किया है. इन्होंने कोटा के ही रंगपुर इलाके में एक इनडोर फर्म तैयार किया था. हालांकि, अब उसे हटाकर इन्होंने दूसरी जगह पर फर्मिंग शुरू की है.

Hydroponic Farming in Kota
हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती

बंजर जमीन को बनाया जा सकता है उपजाऊ : हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के असिस्टेंट डायरेक्टर राजवीर सिंह का मानना है कि इस तकनीक से बंजर भूमि या फिर काम नहीं आ रही जमीन को (Organic Farming by IITian Friends) उपजाऊ बनाया जा सकता है. छतों पर इस तरह के फर्म को स्थापित किया जा सकता है. इससे टेंपरेचर भी मेंटेन हो सकता है. जिस तरह से शहरों में कंक्रीट का जाल सब जगह बन गया है, ऐसे में छतों पर अगर इस तरह से बनस्पति उगाया जा सकता है तो शहर के माइक्रोक्लाइमेट को सुधारने का यह प्रयास होगा. इससे वातावरण में नमी और ठंडक बढ़ जाएगी व ऑक्सीजन का लेवल भी बढ़ेगा.

मिट्टी से हो रहे उत्पादन से तुलनात्मक अध्ययन जरूरी : असिस्टेंट डायरेक्टर राजवीर सिंह का कहना है कि कृषि के बढ़ते विस्तार और नए प्रयोगों के चलते ही इस तरह की खेती अब शुरू हुई है. इस तकनीक के जरिए इनका उत्पादन उसी स्तर पर आ जाए कि मिट्टी में होने वाली खेती के बराबर इसमें फायदा हो जाए. साथ ही उन्होंने कहा कि अभी इस तकनीक का शुरुआती दौर चल रहा है और इस पर कई शोध भी हो रहे हैं. हालांकि, अभी उत्पादन कितना हो रहा है और इससे फायदा हो रहा है नहीं यह नहीं देखा जा सका है. ऐसे में जब इस तकनीक में यह दोनों बातें शामिल हो जाएगी. जिसके बाद आम आदमी इस तकनीक को अपना लेगा, तब जाकर ही कुछ अधिकारिक रूप से कह पाने की स्थिति होगी. अभी तो इस फसल में उत्पादन हो रहा है और फसल भी अच्छी लग रही है.

Indoor Farming Can Change the Climate
ऑटोमेशन डिवाइस से टेंपरेचर मेंटेन

पढ़ें : Special : जल सहेजने के लिए शामलात यात्राएं, यहां जानिए इन वाटर लीडर्स की कहानियां

ऑटोमेशन डिवाइस से टेंपरेचर मेंटेन : अभय सिंह के अनुसार पूरे फर्म को उन्होंने पॉली शीट से कवर किया हुआ है. इसके बाद नमी को बरकरार रखा जा रहा है. बैक्टीरिया, कीट व पतंगों से भी फ्री रखने के लिए व्यवस्था की हुई है. साथ ही अंदर के तापमान को मेंटेन रखने के लिए एग्जॉस्ट फैन लगाए हुए हैं. कूलिंग पैड भी में लगे हुए हैं, ताकि गर्मी ज्यादा होने पर कूलिंग पैड का उपयोग कर तापमान को मैनेज किया जा सके. इस पूरे फर्म में उन्होंने ऑटोमेशन डिवाइस लगाई हुई है, ताकि पेड़ पौधे को कितना तापमान चाहिए, उसका अंदाजा लग जाता है. उसके अनुसार ही एग्जॉस्ट इस पूरे इनडोर फर्म में शुरू हो जाता है.

दावा - मिट्टी में पैदा होने वाली फसल से ज्यादा न्यूट्रीशन वैल्यू : अभय सिंह का कहना है कि इनडोर फार्मिंग को ग्रोइंग चेंबर में कर रहे हैं. उसके लिए उन्होंने ऑटोमेशन डिवाइसों का भी उपयोग किया है, ताकि क्लाइमेट कंट्रोल कर सके. फोन से ही पानी सप्लाई की पूरी चैन को मैनेज किया जाता है. मिट्टी से की जाने वाली खेती में 80 फीसदी पानी बर्बाद चला जाता है व 20 फीसदी पौधों के उपयोग में आता है. जबकि उनकी तकनीक से 80 फीसदी पानी की बचत हुए कर रहे हैं. हालांकि, उत्पादन दोनों में लगभग बराबर जैसा ही है. न्यूट्रिशन वैल्यू भी मिट्टी में होने वाली खेती से अच्छी होने का दावा इन्होंने किया है.

पढ़ें : Special: खराब पैदावार...कम दाम से परेशान किसान, इस बार लहसुन की खेती से हुआ मोह भंग!

करोड़ रुपये में तैयार होता है 1 एकड़ का सेटअप : उनका कहना है कि 1 एकड़ में इस तरह के फर्म को तैयार करने में 20 लाख से 1.30 करोड़ रुपये का खर्चा आ जाता है. इसके साथ ही हार्वेस्टिंग, सफाई, कटिंग, ग्राफ्टिंग, छंटनी और कई कामों के लिए लेबर भी उन्होंने लगाई हुई है. वर्तमान में 7.5 एकड़ में यह खेती कर रहे हैं, लेकिन आगे जाकर यह बढ़कर 40 एकड़ से ज्यादा होने वाला है. इसके लिए बूंदी जिले के केशोरायपाटन 15 और लाखेरी 20 एकड़ में भी काम चल रहा है. साथ ही जयपुर में भी यह क्लाइमेट कंट्रोल फार्मिंग के लिए सेटअप तैयार कर रहे हैं. ऐसा ही सेटअप पानीपत में भी 5 एकड़ में हाल ही में तैयार किया है. वर्तमान में इनका आधे एकड़ में बूंदी जिले के तालेड़ा व भीलवाड़ा, एक एकड़ में कोटा के नांता इलाके में फर्म है.

केमिकल फ्री खेती का किया दावा : पानी को पहले आरओ के जरिए प्यूरीफायर किया जाता है. इसके बाद टैंक में डाला जाता है, जिसमें फसलों के लिए जरूरी न्यूट्रिएंट भी डाले जाते हैं. जिसके बाद पानी लगातार ग्रोइंग चेंबर से होकर निकलता है, जिससे पौधे को सीधा ही न्यूट्रीशन मिल जाती है. खाद का डालने का जरिया भी यही होता है. लिक्विड खाते में डाली जाती है. हालांकि, अभय सिंह का कहना है कि पूरी तरह से केमिकल फ्री खेती कर रहे हैं. पानी की खेती होने के लिए उन्होंने ग्रोविंग चेंबर बनाए हुए हैं और इनमें लगातार पानी का सरकुलेशन जारी रहता है.

पढे़ं : पुष्कर के गुलाबी गुलाब पर लगा जल 'ग्रहण', 60 फीसद तक घटी खेती

साल भर की जा सकती है खेती : अभय सिंह का कहना है कि इस तकनीक के जरिए साल भर खेती की जा सकती है, क्योंकि टेंपरेचर को पूरी तरह से मैनेज किया जाता है. ऐसे में पौधे को कभी मौसम के बदलाव की मार नहीं झेलनी पड़ती है. वर्तमान में उन्होंने केवल (Indoor Farming Can Change the Climate) टमाटर ही इसमें लगा रखे हैं, जो कि तीन से चार अलग-अलग क्वालिटी के हैं. इनका उत्पादन होने के बाद इन्हें आगे बेच दिया जाता है. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इस पूरी प्रक्रिया में खाद की बचत भी होती है. करीब 30 से 40 फीसदी खाद ही मिट्टी में डालने से सीधा पौधों तक पहुंचता है, जबकि इस तरीके से जब पानी में ही खेती हो रही है तो उस पानी में मिलाने जाने वाली खाद पूरी पौधों तक पहुंचती है.

IIT पासआउट जॉब छोड़ कर रहे इनडोर फार्मिंग

कोटा. आईआईटी मुंबई से पासआउट दो दोस्त अभय सिंह और अमित कुमार ने मिलकर (IIT Bombay Pass Out Friends) कोटा संभाग के साथ देश के कई हिस्सों में हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती शुरू की है. जिसमें उन्होंने ग्रोइंग चेंबर बनाकर उसके जरिए खेती करना शुरू किया है, जिसमें करोड़ों रुपये का इन्वेस्ट लोगों को साथ लेकर इन्होंने किया है. यहां होने वाले प्रोडक्शन को यह बाहर कई शहरों में सप्लाई भी कर रहे हैं, लेकिन वर्तमान में इनके इनडोर फार्मिंग के तहत केवल टमाटर की चार से पांच अलग-अलग वैरायटी का उत्पादन हो रहा है.

इन्होंने इक्की फूड नाम से अपनी एक कंपनी भी खोली है, जिसके जरिए ही माल सप्लाई कर रहे हैं. अभय सिंह इस कंपनी के सीईओ हैं और वे चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा के रहने वाले हैं. वर्तमान में कोटा ही रहते हैं. वहीं, कंपनी के सीओओ अमित कुमार गंगानगर के रहने वाले हैं. दोनों ने साल 2014 में आईआईटी मुंबई से मैटेरियल साइंस में बीटेक पास किया है. इसके बाद (Unique Farming Technique in Kota) उन्होंने कुछ कंपनियों में जॉब की और साल 2018 में यह स्टार्टअप शुरू किया है. इन्होंने कोटा के ही रंगपुर इलाके में एक इनडोर फर्म तैयार किया था. हालांकि, अब उसे हटाकर इन्होंने दूसरी जगह पर फर्मिंग शुरू की है.

Hydroponic Farming in Kota
हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती

बंजर जमीन को बनाया जा सकता है उपजाऊ : हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के असिस्टेंट डायरेक्टर राजवीर सिंह का मानना है कि इस तकनीक से बंजर भूमि या फिर काम नहीं आ रही जमीन को (Organic Farming by IITian Friends) उपजाऊ बनाया जा सकता है. छतों पर इस तरह के फर्म को स्थापित किया जा सकता है. इससे टेंपरेचर भी मेंटेन हो सकता है. जिस तरह से शहरों में कंक्रीट का जाल सब जगह बन गया है, ऐसे में छतों पर अगर इस तरह से बनस्पति उगाया जा सकता है तो शहर के माइक्रोक्लाइमेट को सुधारने का यह प्रयास होगा. इससे वातावरण में नमी और ठंडक बढ़ जाएगी व ऑक्सीजन का लेवल भी बढ़ेगा.

मिट्टी से हो रहे उत्पादन से तुलनात्मक अध्ययन जरूरी : असिस्टेंट डायरेक्टर राजवीर सिंह का कहना है कि कृषि के बढ़ते विस्तार और नए प्रयोगों के चलते ही इस तरह की खेती अब शुरू हुई है. इस तकनीक के जरिए इनका उत्पादन उसी स्तर पर आ जाए कि मिट्टी में होने वाली खेती के बराबर इसमें फायदा हो जाए. साथ ही उन्होंने कहा कि अभी इस तकनीक का शुरुआती दौर चल रहा है और इस पर कई शोध भी हो रहे हैं. हालांकि, अभी उत्पादन कितना हो रहा है और इससे फायदा हो रहा है नहीं यह नहीं देखा जा सका है. ऐसे में जब इस तकनीक में यह दोनों बातें शामिल हो जाएगी. जिसके बाद आम आदमी इस तकनीक को अपना लेगा, तब जाकर ही कुछ अधिकारिक रूप से कह पाने की स्थिति होगी. अभी तो इस फसल में उत्पादन हो रहा है और फसल भी अच्छी लग रही है.

Indoor Farming Can Change the Climate
ऑटोमेशन डिवाइस से टेंपरेचर मेंटेन

पढ़ें : Special : जल सहेजने के लिए शामलात यात्राएं, यहां जानिए इन वाटर लीडर्स की कहानियां

ऑटोमेशन डिवाइस से टेंपरेचर मेंटेन : अभय सिंह के अनुसार पूरे फर्म को उन्होंने पॉली शीट से कवर किया हुआ है. इसके बाद नमी को बरकरार रखा जा रहा है. बैक्टीरिया, कीट व पतंगों से भी फ्री रखने के लिए व्यवस्था की हुई है. साथ ही अंदर के तापमान को मेंटेन रखने के लिए एग्जॉस्ट फैन लगाए हुए हैं. कूलिंग पैड भी में लगे हुए हैं, ताकि गर्मी ज्यादा होने पर कूलिंग पैड का उपयोग कर तापमान को मैनेज किया जा सके. इस पूरे फर्म में उन्होंने ऑटोमेशन डिवाइस लगाई हुई है, ताकि पेड़ पौधे को कितना तापमान चाहिए, उसका अंदाजा लग जाता है. उसके अनुसार ही एग्जॉस्ट इस पूरे इनडोर फर्म में शुरू हो जाता है.

दावा - मिट्टी में पैदा होने वाली फसल से ज्यादा न्यूट्रीशन वैल्यू : अभय सिंह का कहना है कि इनडोर फार्मिंग को ग्रोइंग चेंबर में कर रहे हैं. उसके लिए उन्होंने ऑटोमेशन डिवाइसों का भी उपयोग किया है, ताकि क्लाइमेट कंट्रोल कर सके. फोन से ही पानी सप्लाई की पूरी चैन को मैनेज किया जाता है. मिट्टी से की जाने वाली खेती में 80 फीसदी पानी बर्बाद चला जाता है व 20 फीसदी पौधों के उपयोग में आता है. जबकि उनकी तकनीक से 80 फीसदी पानी की बचत हुए कर रहे हैं. हालांकि, उत्पादन दोनों में लगभग बराबर जैसा ही है. न्यूट्रिशन वैल्यू भी मिट्टी में होने वाली खेती से अच्छी होने का दावा इन्होंने किया है.

पढ़ें : Special: खराब पैदावार...कम दाम से परेशान किसान, इस बार लहसुन की खेती से हुआ मोह भंग!

करोड़ रुपये में तैयार होता है 1 एकड़ का सेटअप : उनका कहना है कि 1 एकड़ में इस तरह के फर्म को तैयार करने में 20 लाख से 1.30 करोड़ रुपये का खर्चा आ जाता है. इसके साथ ही हार्वेस्टिंग, सफाई, कटिंग, ग्राफ्टिंग, छंटनी और कई कामों के लिए लेबर भी उन्होंने लगाई हुई है. वर्तमान में 7.5 एकड़ में यह खेती कर रहे हैं, लेकिन आगे जाकर यह बढ़कर 40 एकड़ से ज्यादा होने वाला है. इसके लिए बूंदी जिले के केशोरायपाटन 15 और लाखेरी 20 एकड़ में भी काम चल रहा है. साथ ही जयपुर में भी यह क्लाइमेट कंट्रोल फार्मिंग के लिए सेटअप तैयार कर रहे हैं. ऐसा ही सेटअप पानीपत में भी 5 एकड़ में हाल ही में तैयार किया है. वर्तमान में इनका आधे एकड़ में बूंदी जिले के तालेड़ा व भीलवाड़ा, एक एकड़ में कोटा के नांता इलाके में फर्म है.

केमिकल फ्री खेती का किया दावा : पानी को पहले आरओ के जरिए प्यूरीफायर किया जाता है. इसके बाद टैंक में डाला जाता है, जिसमें फसलों के लिए जरूरी न्यूट्रिएंट भी डाले जाते हैं. जिसके बाद पानी लगातार ग्रोइंग चेंबर से होकर निकलता है, जिससे पौधे को सीधा ही न्यूट्रीशन मिल जाती है. खाद का डालने का जरिया भी यही होता है. लिक्विड खाते में डाली जाती है. हालांकि, अभय सिंह का कहना है कि पूरी तरह से केमिकल फ्री खेती कर रहे हैं. पानी की खेती होने के लिए उन्होंने ग्रोविंग चेंबर बनाए हुए हैं और इनमें लगातार पानी का सरकुलेशन जारी रहता है.

पढे़ं : पुष्कर के गुलाबी गुलाब पर लगा जल 'ग्रहण', 60 फीसद तक घटी खेती

साल भर की जा सकती है खेती : अभय सिंह का कहना है कि इस तकनीक के जरिए साल भर खेती की जा सकती है, क्योंकि टेंपरेचर को पूरी तरह से मैनेज किया जाता है. ऐसे में पौधे को कभी मौसम के बदलाव की मार नहीं झेलनी पड़ती है. वर्तमान में उन्होंने केवल (Indoor Farming Can Change the Climate) टमाटर ही इसमें लगा रखे हैं, जो कि तीन से चार अलग-अलग क्वालिटी के हैं. इनका उत्पादन होने के बाद इन्हें आगे बेच दिया जाता है. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इस पूरी प्रक्रिया में खाद की बचत भी होती है. करीब 30 से 40 फीसदी खाद ही मिट्टी में डालने से सीधा पौधों तक पहुंचता है, जबकि इस तरीके से जब पानी में ही खेती हो रही है तो उस पानी में मिलाने जाने वाली खाद पूरी पौधों तक पहुंचती है.

Last Updated : Jan 5, 2023, 8:41 AM IST
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