कोटा. प्रदेश में खरीफ के सीजन की फसलों को समर्थन मूल्य पर खरीदने की मंगलवार से शुरुआत हुई. लेकिन कोटा संभाग में एक भी केंद्र अभी शुरू नहीं किया गया है. इसका कारण है किसानों का रुझान कम होना. किसानों ने खरीफ के सीजन पर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों को बेचने पर कोई रुचि नहीं दिखाई (No registration at crop buying centers in Kota) है. क्योंकि उन्हें मंडी में ही अपनी फसलों के ज्यादा दाम मिल रहे हैं. ये दाम एमएसपी से 10 से 30 फीसदी से ज्यादा हैं.
सोयाबीन की एमएसपी जहां पर 4300 रुपए और उड़द की 6600 रुपए से ज्यादा है, लेकिन मंडियों में ही किसानों को इससे ज्यादा दाम मिल रहे हैं. कुछ किसानों ने रजिस्ट्रेशन भी करवा लिया है, लेकिन उन्हें विभाग खरीद की तारीख नहीं दे पा रहा है. केंद्रों के औसत के अनुसार भी रजिस्ट्रेशन देखा जाए, तो रजिस्ट्रेशन भी नहीं आ रहे हैं. राजफैड के क्षेत्रीय अधिकारी गुलाब चंद मीणा का कहना है कि हाड़ौती में 38 केंद्रों पर खरीद होनी है. जबकि रजिस्ट्रेशन 73 ही हैं. ये रजिस्ट्रेशन महज 9 केंद्रों पर ही हैं. जबकि 29 केंद्रों पर कोई रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है. इसलिए किसानों को तारीख देने में थोड़ी समस्या आ रही है.
उड़द का 73 किसानों का रजिस्ट्रेशन, सोयाबीन के एक भी नहीं : हाड़ौती की ही बात की जाए तो कोटा, बारां, बूंदी व झालावाड़ चारों जिलों में महज 73 किसानों ने ही खरीफ के सीजन की फसलों को एमएसपी पर बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया है. जिनमें सभी रजिस्ट्रेशन उड़द के हैं. जबकि सोयाबीन का एक भी रजिस्ट्रेशन नहीं है. कोटा जिले की बात की जाए तो उड़द का केवल एक रजिस्ट्रेशन इटावा इलाके के किसान ने करवाया है. जबकि सर्वाधिक 58 रजिस्ट्रेशन झालावाड़ जिले में हुए हैं. उनमें भी सबसे ज्यादा रजिस्ट्रेशन अकलेरा केंद्र के हैं, जहां पर एक साथ ही 47 रजिस्ट्रेशन हैं. जबकि बूंदी में 9 और बारां में 5 रजिस्ट्रेशन हैं.
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खरीद नहीं होने पर मिलता है फायदा: खरीद नहीं होने के कारण राजफैड, नेफैड और मार्केटिंग सोसायटी को भी नुकसान हो रहा है. जहां नेफैड खरीद होने पर फायदे का हिस्सा रखता है, उसी तरह से तय प्रतिशत राजफैड और मार्केटिंग सोसायटी को मिलता है. ऐसे में अगर करोड़ों रुपए की खरीद होती है, तो राजफैड को भी करोड़ों की आय होती है. कोटा, बारां, बूंदी व झालावाड़ में 38 केंद्र बनाए गए हैं. जिनमें सबसे कम केंद्र बारां जिले में 7 व कोटा जिले में 9 केंद्र हैं. वहीं बूंदी व झालावाड़ में 11-11 केंद्र हैं.
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पूजा-अर्चना कर शुरू किया केंद्र: कोटा के भामाशाह कृषि उपज मंडी में कोटा कोऑपरेटिव मार्केटिंग सोसायटी के खरीद केंद्र पर मंगलवार को कर्मचारी व्यवस्थाएं करते दिखे. लेकिन हालात ऐसे हैं कि वहां एक भी रजिस्ट्रेशन नहीं है. ऐसे में खरीद होने की उम्मीद नहीं है. केवल औपचारिकता निभाने के लिए आज पूजा-अर्चना कर केंद्र को शुरू किया गया है. हाड़ौती के कोटा, बारां, बूंदी व झालावाड़ के कई केंद्रों में तो इस तरह की व्यवस्था अभी भी नहीं की गई है. वहां मार्केटिंग सोसायटी को खरीद की उम्मीद ही नहीं है.
व्यवस्था में हो जाएगा लाखों खर्च: दूसरी तरफ, मार्केटिंग सोसायटी को इन खरीद केंद्रों पर व्यवस्था भी करनी होती है. जिनमें कंप्यूटर और तुलाई की व्यवस्था करनी होती है. जिसके लिए श्रमिकों को भी लगाया जाता है. साथ ही राजफैड को बारदाना व ट्रांसपोर्टेशन के लिए भी टेंडर करना होता है, लेकिन यह रबी के सीजन में ही होते हैं. जिनके जरिए ही खरीफ के सीजन में भी तुलाई करवा ली जाती है. इस तरह केवल खरीफ सीजन में खरीद के लिए करीब 1 सेंटर पर करीब 20 हजार रुपए का खर्चा होता है. कोटा संभाग के सेंटरों पर करीब साढ़े 7 लाख रुपए का खर्चा होगा. वहीं इस तरह से साल 2018 के बाद यह चौथा वर्ष है, जिसमें एमएसपी पर किसान फसल बेचने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं.