करौली. प्रदेश के करौली जिले में सपोटरा उपखण्ड मुख्यालय से करीब पांच किलोमीटर दूर अरावली पर्वत शृंखला के मध्य स्थित रामठरा का प्राचीन चमत्कारिक शिव मंदिर (Shiva temple of Karauli) जन-जन की आस्था का केन्द्र है. सावन माह में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. हर-हर महादेव के स्वर क्षेत्र गुंजायमान रहता है. यूं तो वर्षभर ही यहां श्रद्धालुओं की आवक रहती है, लेकिन श्रावण मास में भक्तों की संख्या और बढ़ जाती है. इतिहासकारों के अनुसार बंजारा जाति के लोगों ने रामठरा में किले के नीचे महादेव मन्दिर की स्थापना कराई थी. यह शिव मंदिर करीब 400 वर्ष प्राचीन है जो कालीसिल बांध के तट पर स्थित है. काफी सीढ़ियां चढ़कर मंदिर तक पहुंचना पड़ता है.
सैंकड़ों वर्ष प्राचीन रामठरा के शिव मन्दिर में भगवान की बड़े आकार की श्वेत चमत्कारिक प्रतिमा है, जिसकी गर्दन टेढ़ी है. शिव के दाईं ओर गणेशजी और बांयी ओर माता पार्वती की प्रतिमा है. जबकि सामने शिवलिंग व नंदी की प्रतिमा स्थापित है. इतिहासकार व बुुर्जुगों के अनुसार शिव भगवान की प्रतिमा प्रतिदिन तीन वर्ण बदलती है. सुबह के समय प्रतिमा का रंग श्वेत रहता है. जबकि दोपहर में यह नीला हो जाता है औऱ सायंकाल प्रतिमा मटमेले रंग में नजर आती है. इसे देख यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु भी आश्चर्यचकित हो उठते हैं. यह प्राचीन शिव मंदिर अपना खास धार्मिक महत्व भी रखता है. पहाड़ी क्षेत्र में स्थित मंदिर यहां की हरियाली और पास स्थित कालीसिल बांध का मनोरम दृश्य लोगों को आर्कृषित करता है.
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ऐसे मुड़ी प्रतिमा की गर्दन
किवदंती है कि रियासतकाल के दौरान मंदिर के आसपास हजारों घर बसे हुए थे, लेकिन उस दौरान कुछ विशेष लोगों के अत्याचारों से तंग आकर लोगों को यहां से पलायन करना पड़ा. उसके बाद शिव भगवान की प्रतिमा ने भी चमत्कार दिखाते हुए अपना सिर दांऐ कंधे की ओर मोड़ लिया. शिव प्रतिमा के मुंह की ओर वर्तमान मे सपोटरा क्षेत्र बसा हुआ है.
ढाई दशक पूर्व पार्वती की प्रतिमा हुई थी चोरी
इतिहासकार बताते हैं की करीब ढाई दशक पहले चोरों ने शिव भगवान की प्रतिमा को चोरी करने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सके. ऐसे में वे मंदिर से माता पार्वती की प्रतिमा को ही चुरा ले गए. प्रतिमा को चोरों ने कहीं जमीन में दबा दिया लेकिन उनमे सामंजस्य नहीं बैठ पाए और फिर लोगों को प्रतिमा के बारे में पता चल गया जिसके बाद प्रतिमा को पुन: स्थापित कर दिया गया.
मंदिर में वर्ष भर होते हैं धार्मिक आयोजन
मंदिर के पुजारी विनोद शर्मा ने बताया कि रामठरा स्थित प्राचीन शिव मंदिर में वर्ष भर अनेक धार्मिक आयोजन होते रहते हैं. शिव भक्तों की ओर से रामठरा शिव मंदिर में सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. भक्त शिव की प्रतिमा पर बेलपत्र चढ़ाने के साथ दूध से अभिषेक करते हैं. भगवान शिव का रोज श्रृंगार किया जाता है. दिन में तीन बार आरती की जाती है और रात्रि को भजन संध्या का आयोजन भी होता है. इससे मंदिर में वर्षभर शिव भक्तों का तांता लगा रहता है. कहा जाता है कि यहां सच्ची श्रद्दा और आस्था के साथ जो भी मनोकामना भक्त करता भोले बाबा उसे जरूर पूरा करते हैं.
आकर्षित करती है यहां की प्राकृतिक सुंदरता
रामठरा का यह प्राचीन शिव मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि प्राकृतिक दृष्टिकोण से भी रमणीक सुंदरता वाला स्थान है. 75 मीटर ऊंचाई पर स्थित मंदिर के चारों ओर हरियाली छाई है. शिव मंदिर के पास ही रियासत कालीन रामठरा किला होने से देशी-विदेशी पर्यटक सैलानी भी यहां घूमने के लिए पहुंचते हैं. शिव मंदिर के एक ओर रामठरा किला है तो सामने भगवान गणेश का प्रसिद्ध मंदिर भी है जहां पर हर वर्ष गणेश चतुर्थी पर मेला लगता है.
गणेश मंदिर के पास ही बिलोनी माता का मंदिर भी है. बिलोनी माता के मंदिर के पास में ही काडिस और भैरव बाबा का भी पुराना मंदिर है. शिव मंदिर के दूसरी ओर सोलह सार बाबा और हनुमान मंदिर भी है. शिव मंदिर के पास ही सपोटरा क्षेत्र का प्रसिद्ध कालीसिल बांध है जो वर्ष भर पानी से भरा रहता है जिसमें देशी-विदेशी पर्यटक सैलानी जल क्रीड़ा करते हैं और स्टीमर की सवारी का भी लुत्फ उठाते हैं. कालीसिल बांध से खेतों में सिंचाई के लिए नहर खोली जाती है जिससे यहां के किसान खेतों की सिंचाई करते हैं.
बच्चे और ग्रामीण नहर में नहाकर आनंद लेते हैं
यहां की प्राकृतिक सुंदरता बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है. शिव मंदिर के समीप ही यहां पर विदेशी तकनीक से बड़े-बड़े उद्यान लगाए गए हैं जो वर्ष भर फलों से लदे रहते हैं. पहाड़ी क्षेत्र में छाई हुई हरियाली और पास स्थित कालीसिल बांध का मनोरम दृश्य लोगों को मन मोहने वाला रहता है. यहां की मोहक प्राकृतिक छटा देखने के लिए बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक यहां पहुंचते हैं जिस कारण यह स्थान धीरे-धीरे पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित होने लगा है.