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20 साल कारगिल : करौली के हीरा सिंह की शहादत को याद कर भावुक हुए परिजन...बेटे ने कहा- मुझे गर्व है

वर्ष 1999 में हुए ऐतिहासिक कारगिल युद्ध में एक ओर जहां देशवासी विजय महोत्सव के रूप में मना रहे हैं. वहीं करौली जिले के हिण्डौन उपखण्ड स्थित मुकन्दपुरा गांव में शहीद हीरासिंह के परिजन व ग्रामीण उसकी शहादत के आगे नतमस्तक हुए गम में डूबे हुए थे..आज जब कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा था तब शहीद की पत्नी व पुत्र भाव विभोर हो गए और आंखे नम हो गई.

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Published : Jul 26, 2019, 7:43 PM IST

करौली. वर्ष 1999 में हुए ऐतिहासिक कारगिल युद्ध में एक ओर जहां देशवासी विजय महोत्सव के रूप में मना रहे थे. वहीं करौली जिले के हिण्डौन उपखण्ड स्थित मुकन्दपुरा गांव में शहीद हीरासिंह के परिजन और ग्रामीण उनकी शहादत के आगे नतमस्तक हुए गम में डूबे हुए थे. आज जब कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा था तब शहीद की पत्नी और पुत्र भाव विभोर हो गए और आंखे नम हो गई. ज्ञात रहे कि 21 जून 1999 में जिले के मुकन्दपुरा निवासी हीरासिंह देश सेवा में कारगिल युद्ध के दौरान अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे.

इस शहादत को यादकर जिला प्रशासन द्वारा आयोजित कारगिल विजय उत्सव के तहत शहीद को श्रद्धांजलि भी दी गई. कारगिल विजय दिवस के अवसर पर ईटीवी भारत संवाददाता ने कारगिल में शहीद हुए जिले के मुकन्दपुरा निवासी शहीद हीरासिंह के परिजनो से बातचीत की. बातचीत के दौरान परिजन बीते पलों को स्मरण कर भाव विभोर हो गए.

शहीद के पुत्र चंद्रशेखर ने बताया की 21 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान मेरे पिताजी शहीद हो गये थे. जब मैं कक्षा तीन में पढ़ता था तब मुझे मेरी माताजी ने मेरे पिताजी की देश की सेवा करते हुए शहीद होने के बारे में बताया. तब मुझे पता चला. छठवीं कक्षा तक गांव के ही स्कूल में पढ़ाई की है. इसके बाद मुझे सैनिक कल्याण बोर्ड के सहयोग से दिसंबर मे करौली कोषागार कार्यालय में एलडीसी पद पर अनुकंपा नियुक्ति मिल गई है. जहां भी मैं गया मुझे मेरी पिताजी की वजह से बहुत सम्मान मिला है. शहीद के पुत्र ने बताया देश मे सेनाओं क सम्मान होना चाहिए. मुझे मेरे पिताजी पर गर्व है. इसी के साथ उन्होंने जिला सैनिक कल्याण बोर्ड के प्रयासों की भी सराहना की.

करौली के हीरा सिंह की शहादत को याद कर भावुक हुए परिजन

शहीद हीरासिंह की वीरांगना उर्मिला देवी भावुक हो गई. और कैमरे के सामने ना आकर बताया की 21 जून 1999 को कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे. शहादत से चार माह पहले बेटे की जन्म की सूचना पर शहीद हीरा सिंह घर आए थे. ड्यूटी पर लौटने के कुछ दिन बाद ही हीरासिंह की कारगिल में सरहदी मोर्चे पर तैनाती हो गई. कुछ माह बाद हीरा सिंह की पार्थिव देह तिरंगे में लिपटकर गांव में आया. पति के शहीद होने की खबर मिलते ही उस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. उस समय पुत्र चंद्रशेखर सात माह का था. अब पुत्र को राज्य सरकार की अनुकम्पा से जिला कोषाधिकारी कार्यालय अनुकंपा नियुक्ति मिल गई है.

शहीद के समाज के लोगों ने बताया की हमको शहीद हीरा सिंह पर गर्व है. हम बुड्ढों के रगों में भी उनको देखकर खून उबलता है कि हमें भी देश की सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए. आमजन को यही संदेश देना चाहेंगे कि चाहे कोई कुर्बानी देनी पड़े लेकिन देश सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए.

कार्यवाहक जिला सैनिक कल्याण अधिकारी सूबेदार नरेश सिंह ने बताया की हम शहीद के परिवार से बराबर सम्पर्क में रहते हैं. अभी शहीद के पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति भी दिलवा दी है. बाकी बचे शहीदो के परिजनों की भी लिस्ट तैयार कर रखी है. जैसे-जैसे नंबर आता है उनको भी नियुक्ति दिलवा रहे हैं.

करौली. वर्ष 1999 में हुए ऐतिहासिक कारगिल युद्ध में एक ओर जहां देशवासी विजय महोत्सव के रूप में मना रहे थे. वहीं करौली जिले के हिण्डौन उपखण्ड स्थित मुकन्दपुरा गांव में शहीद हीरासिंह के परिजन और ग्रामीण उनकी शहादत के आगे नतमस्तक हुए गम में डूबे हुए थे. आज जब कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा था तब शहीद की पत्नी और पुत्र भाव विभोर हो गए और आंखे नम हो गई. ज्ञात रहे कि 21 जून 1999 में जिले के मुकन्दपुरा निवासी हीरासिंह देश सेवा में कारगिल युद्ध के दौरान अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे.

इस शहादत को यादकर जिला प्रशासन द्वारा आयोजित कारगिल विजय उत्सव के तहत शहीद को श्रद्धांजलि भी दी गई. कारगिल विजय दिवस के अवसर पर ईटीवी भारत संवाददाता ने कारगिल में शहीद हुए जिले के मुकन्दपुरा निवासी शहीद हीरासिंह के परिजनो से बातचीत की. बातचीत के दौरान परिजन बीते पलों को स्मरण कर भाव विभोर हो गए.

शहीद के पुत्र चंद्रशेखर ने बताया की 21 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान मेरे पिताजी शहीद हो गये थे. जब मैं कक्षा तीन में पढ़ता था तब मुझे मेरी माताजी ने मेरे पिताजी की देश की सेवा करते हुए शहीद होने के बारे में बताया. तब मुझे पता चला. छठवीं कक्षा तक गांव के ही स्कूल में पढ़ाई की है. इसके बाद मुझे सैनिक कल्याण बोर्ड के सहयोग से दिसंबर मे करौली कोषागार कार्यालय में एलडीसी पद पर अनुकंपा नियुक्ति मिल गई है. जहां भी मैं गया मुझे मेरी पिताजी की वजह से बहुत सम्मान मिला है. शहीद के पुत्र ने बताया देश मे सेनाओं क सम्मान होना चाहिए. मुझे मेरे पिताजी पर गर्व है. इसी के साथ उन्होंने जिला सैनिक कल्याण बोर्ड के प्रयासों की भी सराहना की.

करौली के हीरा सिंह की शहादत को याद कर भावुक हुए परिजन

शहीद हीरासिंह की वीरांगना उर्मिला देवी भावुक हो गई. और कैमरे के सामने ना आकर बताया की 21 जून 1999 को कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे. शहादत से चार माह पहले बेटे की जन्म की सूचना पर शहीद हीरा सिंह घर आए थे. ड्यूटी पर लौटने के कुछ दिन बाद ही हीरासिंह की कारगिल में सरहदी मोर्चे पर तैनाती हो गई. कुछ माह बाद हीरा सिंह की पार्थिव देह तिरंगे में लिपटकर गांव में आया. पति के शहीद होने की खबर मिलते ही उस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. उस समय पुत्र चंद्रशेखर सात माह का था. अब पुत्र को राज्य सरकार की अनुकम्पा से जिला कोषाधिकारी कार्यालय अनुकंपा नियुक्ति मिल गई है.

शहीद के समाज के लोगों ने बताया की हमको शहीद हीरा सिंह पर गर्व है. हम बुड्ढों के रगों में भी उनको देखकर खून उबलता है कि हमें भी देश की सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए. आमजन को यही संदेश देना चाहेंगे कि चाहे कोई कुर्बानी देनी पड़े लेकिन देश सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए.

कार्यवाहक जिला सैनिक कल्याण अधिकारी सूबेदार नरेश सिंह ने बताया की हम शहीद के परिवार से बराबर सम्पर्क में रहते हैं. अभी शहीद के पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति भी दिलवा दी है. बाकी बचे शहीदो के परिजनों की भी लिस्ट तैयार कर रखी है. जैसे-जैसे नंबर आता है उनको भी नियुक्ति दिलवा रहे हैं.

Intro:वर्ष 1999 में हुए ऐतिहासिक कारगिल युद्ध मे एक ओर जहा देशवासी विजय महोत्सव के रूप में मना रहे थे.. वही करौली जिले के हिण्डौन उपखण्ड स्थित मुकन्दपुरा गांव में शहीद हीरासिंह के परिजन व ग्रामीण उसकी शहादत के आगे नतमस्तक हुए गम में डूबे हुए थे..आज जब कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा था तब शहीद की पत्नी व पुत्र भाव विभोर हो गए और आंखे नम हो गई..


Body:
कारगिल दिवस पर विशेष,

शहीद पिता के बेटा होने का गर्व मुझे-चंद्रशेखर



करौली


वर्ष 1999 में हुए ऐतिहासिक कारगिल युद्ध मे एक ओर जहा देशवासी विजय महोत्सव के रूप में मना रहे थे.. वही करौली जिले के हिण्डौन उपखण्ड स्थित मुकन्दपुरा गांव में शहीद हीरासिंह के परिजन व ग्रामीण उसकी शहादत के आगे नतमस्तक हुए गम में डूबे हुए थे..आज जब कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा था तब शहीद की पत्नी व पुत्र भाव विभोर हो गए और आंखे नम हो गई..ज्ञात रहे की 21 जून 1999 में जिले के मुकन्दपुरा निवासी हीरासिंह देश सेवा में कारगिल युद्ध के दौरान अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे..इस शहादत  को यादकर जिला प्रशासन द्वारा आयोजित कारगिल विजय उत्सव के तहत शहीद को श्रद्दांजलि भी दी गई... कारगिल विजय दिवस के अवसर पर ईटीवी भारत संवाददाता ने कारगिल में शहीद हुए जिले के मुकन्दपुरा निवासी शहीद हीरासिंह के परिजनो से बातचीत की..बातचीत के दोरान परिजन बीते पलों को स्मरण कर भाव विभोर हो गए..



शहीद के पुत्र चंद्रशेखर ने बताया की 21 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान मेरे पिताजी शहीद हो गये थे..जब मै कक्षा तीन पढता था तब मुझे मेरी माताजी ने मेरे पिताजी की देश की सेवा करते हुए शहीद होने के बारे में बताया..तब मुझे पता चला.. छठवीं कक्षा तक गांव के ही स्कूल में पढ़ाई की है... इसके बाद मुझे सैनिक कल्याण बोर्ड के सहयोग से दिसंबर मे करौली कोषागार कार्यालय में एलडीसी पद पर अनुकंपा नियुक्ति मिल गई है.. जहां भी मैं गया मुझे मेरी पिताजी की वजह से बहुत सम्मान मिला है..शहीद के पुत्र ने बताया देश मे सेनाओं क सम्मान होना चाहिए.. मुझे मेरे पिताजी पर गर्व है..इसी के साथ उन्होंने जिला सैनिक कल्याण बोर्ड के प्रयासों की भी सराहना की..



शहीद हीरासिंह की वीरांगना उर्मिला देवी भावुक हो गई. और कैमरे के सामने ना आकर बताया की 21 जून 1999 को कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे.. शहादत से चार माह पहले बेटे की जन्म की सूचना पर शहीद हीरा सिंह घर आया था.. ड्यूटी पर लौटने के कुछ दिन बाद ही हीरासिंह की कारगिल में सरहदी मोर्चे पर तैनाती हो गई.. कुछ माह बाद हीरा सिंह की पार्थिव देह तिरंगे में लिपटकर गांव में आयी.. पति के शहीद होने की खबर मिलते ही उस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा.. उस समय पुत्र चंद्रशेखर सात माह का था..अब पुत्र को राज्य सरकार की  अनुकम्पा से जिला कोषाधिकारी कार्यालय अनुकंपा नियुक्ति मिल गई है..



शहीद के समाज के लोगों ने बताया की हमको शहीद हीरा सिंह पर गर्व है.. हम बुड्ढों के रगों में भी उनको देखकर खून उबलता है..की हमे भी देश की सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए. आमजन को यही संदेश देना चाहेंगे कि चाहे कोई कुर्बानी देनी पड़े लेकिन देश सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए...


कार्यवाहक जिला सैनिक कल्याण अधिकारी सूबेदार नरेश सिंह ने बताया की हम शहीद के परिवार से बराबर सम्पर्क में रहते हैं.. अभी शहीद के पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति भी दिलवा दी है.. बाकी बचे शहीदो के परिजनों की भी लिस्ट तैयार कर रखी है.. जैसे-जैसे नंबर आता है उनको भी नियुक्ति दिलवा रहे हैं...



वाईट-- चंद्रशेखर शहीद हीरा सिंह का पुत्र,


वाईट--- सूबेदार नरेश सिंह का जिला सैनिक कल्याण अधिकारी,

वाईट-- प्रकाश,शहीद हीरा सिंह के समाज के लोग,

वाईट-- इंदु देवी प्रधान करौली,





Conclusion:
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