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घटती मांग और बढ़ती महंगाई के कारण मटका व्यवसाय बुरे दौर में

मटकों के व्यवसाय पर निर्भर परिवारों के सामने अब रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है. फ्रिज और वाटर कूलरों के बीच मटकों की मांग दिनोंदिन कम होती जा रही है.

मटकों की मांग में आ रही है कमी
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Published : May 11, 2019, 6:20 PM IST

करौली. भले ही आधुनिकता के इस दौर में अब मिट्टी के बर्तनों का स्थान धातु के बर्तनों ने ले लिया है मगर आज भी किसी न किसी रूप से मिट्टी निर्मित बर्तन अपनी पहचान बनाए हुए हैं. लेकिन इनकी मांग में दिनोंदिन कमी आ रही है. आधुनिक दौर में 40 डिग्री से ऊपर बढ़ते तापमान में ज्यादातर लोग फ्रिज के पानी को ही पसंद करते है. हालांकि ग्रामीण इलाकों में जरूर मटकों की डिमांड है.

महंगाई कर रही है परेशान

महंगाई की मार
मटके को गरीब का फ्रिज कहा जाता है, मगर यह भी महंगाई से अछूता नहीं है. हर वर्ष मटकों की कीमत बढ़ती जा रही है. इस सीजन की बात करें तो छोटा मटका बाजार में 60 से 100 रुपये में बिक रहा है. जबकि बड़ा मटका 150 से 300 रुपये तक की कीमत में बिक रहा है.

कुछ ही बनाते हैं मिट्टी के बर्तन.
शहर में मटकों का व्यापार करने वाले संजय प्रजापति ने बताया की पहले जिले में कई जगह मिट्टी के मटके जाते थे. मगर अब कुछ ही जगह पर बनाए जाते हैं. मटके बेचने और बनाने का पुश्तैनी काम चलता हुआ आ रहा है.. लेकिन समय की मार और मंहगाई के चलते. अब मिट्टी के बर्तन बनाने और दुकानों में बेचने की भी कमी आई है. दुकानदार संजय प्रजापत ने बताया सर्दी में बनने वाले मटकों की ज्यादा डिमांड है. क्योंकि सर्दी में बनने वाले मटको में नमी रहती है और राख नहीं रहती है. जबकि गर्मी में बनने वाले मटका में राख रह जाती है. जिससे मटका खराब होने का डर रहता है.

करौली. भले ही आधुनिकता के इस दौर में अब मिट्टी के बर्तनों का स्थान धातु के बर्तनों ने ले लिया है मगर आज भी किसी न किसी रूप से मिट्टी निर्मित बर्तन अपनी पहचान बनाए हुए हैं. लेकिन इनकी मांग में दिनोंदिन कमी आ रही है. आधुनिक दौर में 40 डिग्री से ऊपर बढ़ते तापमान में ज्यादातर लोग फ्रिज के पानी को ही पसंद करते है. हालांकि ग्रामीण इलाकों में जरूर मटकों की डिमांड है.

महंगाई कर रही है परेशान

महंगाई की मार
मटके को गरीब का फ्रिज कहा जाता है, मगर यह भी महंगाई से अछूता नहीं है. हर वर्ष मटकों की कीमत बढ़ती जा रही है. इस सीजन की बात करें तो छोटा मटका बाजार में 60 से 100 रुपये में बिक रहा है. जबकि बड़ा मटका 150 से 300 रुपये तक की कीमत में बिक रहा है.

कुछ ही बनाते हैं मिट्टी के बर्तन.
शहर में मटकों का व्यापार करने वाले संजय प्रजापति ने बताया की पहले जिले में कई जगह मिट्टी के मटके जाते थे. मगर अब कुछ ही जगह पर बनाए जाते हैं. मटके बेचने और बनाने का पुश्तैनी काम चलता हुआ आ रहा है.. लेकिन समय की मार और मंहगाई के चलते. अब मिट्टी के बर्तन बनाने और दुकानों में बेचने की भी कमी आई है. दुकानदार संजय प्रजापत ने बताया सर्दी में बनने वाले मटकों की ज्यादा डिमांड है. क्योंकि सर्दी में बनने वाले मटको में नमी रहती है और राख नहीं रहती है. जबकि गर्मी में बनने वाले मटका में राख रह जाती है. जिससे मटका खराब होने का डर रहता है.

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गर्मी के बढ़ते तेवरों के बीच मटको का चलन छीना फ्रिजो ने,



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गर्मी के बढ़ते तेवरों के बीच मटको का चलन छीना फ्रिजो ने,


करौली


गर्मी के बढते तेवर व सूरज की प्रचंड किरणों के बीच जिले का तापमान इन दिनों 40 डिग्री को पार कर गया है.तापमान की बढोतरी होते ही जिले मे मटको की दुकान भी नजर आने लगी है..


भले ही आधुनिकता के इस दौर में अब मिट्टी के बर्तनों का स्थान धातु के बर्तनों ने ले लिया है मगर आज भी किसी न किसी रूप से मिट्टी निर्मित बर्तन अपनी पहचान बनाए हुए हैं।जिले मे आज भी मटको के पानी की लोगो मे डिमांड देखने को मिलती है..चाहे घरो मे फ्रिज और फिर भी घर का कोई ना कोई सदस्य मिट्टी से निर्मित मटके का पानी ही उपयोग मे लेता है.. गरीबों के लिए मटका वर्तमान में भी फ्रिज का काम कर रहा है..बेशक फ्रिज और बोतलों ने मटकों की जगह ले ली है लेकिन समाज के कई तबकों में आज भी मटका गरीब के लिए किसी फ्रिज से कम नहीं है। महंगाई के इस दौर में गरीब वर्ग फ्रिज तो नहीं ला सकता, मगर मटके के ठंडे पानी से अपनी प्यास बुझा रहा है। बड़े घरों में पानी शुद्ध करने के लिए मशीनों और दवाइयों का सहारा लिया जाता है। मगर मटके में कुछ अलग ही खासियत है। मटके में केवल पानी ठंडा ही नहीं शुद्ध भी रहता है क्योंकि मटका पानी में जमा धूल के कणों और सूक्ष्म जीवाणुओं को सोख लेता है, जिससे पानी साफ हो जाता है। ग्रामीण आचल में तो आज भी मटके का ही क्रेज है। गावों में बिजली बहुत कम रहती है और खेतों में फ्रिज को ले जाया नहीं जा सकता। इसलिए किसान मटके को ही तवज्जो देते हैं। खेतों में काम करने वाले पूरा दिन मटके से ठंडा पानी पीते हैं।


 मटकों का चलन फ्रिजो ने छीना,


समय के साथ-साथ मिट्टी के बर्तनों मटको की माग घटती व बढ़ती रही है। आधुनिक दौर में 40 डिग्री से ऊपर बढ़ते तापमान में ज्यादातर नव युवा फ्रिज का ठंडा पानी पीते हैं. तो वही बुजुर्ग किसान गरीब लोगों के लिए मटके का पानी फ्रिज से कम नहीं है. समय के बदलाव के चलते घरों में मटको की जगह फ्रीज नजर आने लगी हैं. बीते सालों से मटको का क्रेज कम होता हुआ भी नजर आ रहा है..


महंगाई की पडी मार..


मटके को गरीब का फ्रिज कहा जाता है, मगर यह भी महंगाई से अछूता नहीं है। हर वर्ष मटकों की कीमत बढ़ती जा रही है। अबकी बार छोटा मटका बाजार में 60 से 100 रुपये में बिक रहा है जबकि बड़ा मटका 150 से 300 रुपये तक की कीमत में बिक रहा है। जिनमें आधुनिक दौर को देखते हुए थोटी वाले यानी की नल वाले मटके भी शामिल है..



कुछ ही बनाते हैं मिट्टी के बर्तन.


कॉलेज के सामने मटको का व्यापार करने वाले संजय प्रजापति ने बताया की पहले जिले में कई जगह मिट्टी के मटके जाते थे। मगर अब कुछ ही जगह पर बनाए जाते हैं। मटके बेचने और बनाने का पुश्तैनी काम चलता हुआ आ रहा है.. लेकिन समय की मार और मंहगाई के चलते. अब मिट्टी के बर्तन बनाने और दुकानों में बेचने की भी कमी आई है..वैसे शहर ही नहीं गांवों के लोग भी यहां मटके खरीदने आते हैं..


सर्दी वाले मटको की है ज्यादा डिमांड.


दुकानदार संजय प्रजापत ने बताया की मटको में सबसे ज्यादा सर्दी में बनने वाले मटको की ज्यादा डिमांड है. क्योंकि सर्दी में बनने वाले मटको में नमी रहती है और राख  नहीं रहती है.. जबकि गर्मी में बनने वाले मटका में राख रह जाती है.. जिससे मटका खराब होने का डर रहता है. वही सर्दी के मटको में ज्यादा दिन तक ठंडा पानी रहता है..इसलिए सर्दी के मटको कि ग्राहकों में ज्यादा डिमांड है..


बाईट--संजय





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