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'बछ बारस' पर बछड़े की पूजा कर महिलाओं ने की सुख-समृद्धि की कामना

जोधपुर के लूणी में रविवार को महिलाओं ने बछ बारस का पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया. इस दौरान महिलाओं ने गाय और बछड़े की पूजा-अर्चना की. बता दें कि गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़े की पूजा करने का खास महत्व है.

महिलाओं ने की सुख समृद्धि की कामना, Women wished for happiness and prosperity
बछ बारस पर बछड़े की महिलाओं ने की पूजा
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Published : Aug 16, 2020, 12:31 PM IST

लूणी (जोधपुर). क्षेत्र में रविवार को महिलाओं ने संतान की लंबी आयु और सुख सौभाग्य की कामना करते हुए बछ-बारस का पर्व मनाया. इस अवसर पर जगह-जगह महिलाओं ने गाय और बछड़े की पूजा-अर्चना की. इस दौरान महिलाओं ने बछ बारस की प्रचलित कथाओं का श्रवण किया.

भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को बछ बारस का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष ये त्योहार 16 अगस्त को है. इस दिन गाय और बछड़े की पूजा की जाती है. साथ ही पूजन और उपवास कर संतान की लंबी आयु और सुख सौभाग्य की कामना की जाती हैं. राजस्थान में यह पर्व बहुत खास होता है. इस दिन बछ बारस का चित्र बनाकर उसका पूजन किया जाता है.

इसके लिए जल, भैंस का दही, भीगा हुआ मुंग, मोठ, चना, चवला, बाजरा, (बाजरे के आटे में चीनी मिलाकर बनाए गए एक मीठा पकवान) रोली, चावल दक्षिणा चढ़ाई जाती है. इस दिन महिलाएं घर में हरी सब्जियां नहीं बनाती हैं. साथ ही महिलाएं खेतों में हरे घास को नहीं काटती हैं. वहीं बछड़े की पूजा करने के बाद महिलाएं कथा सुनती हैं. इस बार कोरोना के चलते मंदिर बंद होने से महिलाओं ने घरों में ही कथा सुनकर पूजा-पाठ किया.

पढे़ं- भीलवाड़ा: बारिश ने दी गर्मी से राहत, किसानों के खिले चेहरे

पौराणिक जानकारी के अनुसार भगवान कृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गौमाता का दर्शन और पूजन किया था. जिस गौमाता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पांव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया.

लूणी (जोधपुर). क्षेत्र में रविवार को महिलाओं ने संतान की लंबी आयु और सुख सौभाग्य की कामना करते हुए बछ-बारस का पर्व मनाया. इस अवसर पर जगह-जगह महिलाओं ने गाय और बछड़े की पूजा-अर्चना की. इस दौरान महिलाओं ने बछ बारस की प्रचलित कथाओं का श्रवण किया.

भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को बछ बारस का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष ये त्योहार 16 अगस्त को है. इस दिन गाय और बछड़े की पूजा की जाती है. साथ ही पूजन और उपवास कर संतान की लंबी आयु और सुख सौभाग्य की कामना की जाती हैं. राजस्थान में यह पर्व बहुत खास होता है. इस दिन बछ बारस का चित्र बनाकर उसका पूजन किया जाता है.

इसके लिए जल, भैंस का दही, भीगा हुआ मुंग, मोठ, चना, चवला, बाजरा, (बाजरे के आटे में चीनी मिलाकर बनाए गए एक मीठा पकवान) रोली, चावल दक्षिणा चढ़ाई जाती है. इस दिन महिलाएं घर में हरी सब्जियां नहीं बनाती हैं. साथ ही महिलाएं खेतों में हरे घास को नहीं काटती हैं. वहीं बछड़े की पूजा करने के बाद महिलाएं कथा सुनती हैं. इस बार कोरोना के चलते मंदिर बंद होने से महिलाओं ने घरों में ही कथा सुनकर पूजा-पाठ किया.

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पौराणिक जानकारी के अनुसार भगवान कृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गौमाता का दर्शन और पूजन किया था. जिस गौमाता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पांव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया.

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