जोधपुर. बेमौसम बरसात ने अबकी मारवाड़ में जीरे की फसल को बेजा नुकसान पहुंचाया है. अकेले जोधपुर जिले में ही एक लाख 60 हैक्टेयर में इस बार जीरे की फसल बोई गई थी. जिसमें से 20 फीसदी फसल पूरी तरह से खराब हो गई. जबकि 30 फीसदी की गुणवत्ता बुरी तरह से प्रभावित हुई है. देश में 80 फीसदी जीरे की बुआई गुजरात और राजस्थान में ही होती है. गुजरात में देश का सर्वाधिक जीरा होता है. इसके बाद राजस्थान का नंबर आता है. राजस्थान में सर्वाधिक पश्चिमी राजस्थान में जीरा होता है. लेकिन इस बार बेमौसम हुई बरसात ने जीरे की फसल को खासा नुकसान पहुंचाया है. जानकारों का आंकलन है कि राजस्थान में इस बार जीरा का उत्पादन 15 से 18 फीसदी रह सकता है. साथ ही अबकी गुजरात में भी फसल को नुकसान हुआ है. इसलिए वहां भी किल्लत की स्थिति बनी रहेगी. यही वजह है कि इस बार भाव तेज रहेंगे.
35 हजार तक पहुंचे भाव - जनवरी से जीरे की फसल तैयार होना शुरू हो जाती है. जिन किसानों ने पिछले दिनों फसल निकाल ली, वे जीरा मंडी में लेकर पहुंचने लगे हैं. इसके अलावा कुछ किसान गत वर्ष की फसल भी लेकर आ रहे हैं. मारवाड़ में ये रिवाज भी है कि जीरे की अच्छी फसल होने पर दो-तीन बोरियां किसान बचाकर रखते हैं, जो उनके आगे काम आती है. जोधपुर जीरा मंडी के अध्यक्ष पुरुषोतम मूंदडा बताते हैं कि अभी भाव 28 से 35 हजार रुपए तक पहुंच चुके हैं. फसल खराब होने से आवक कम होती तो भावों में तेजी रहेगी. इससे किसानों को भाव अच्छे मिलेंगे.
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जानें क्यों होगी कमी - पुरुषोतम मूंदडा ने बताया कि इस बार देश भर में जीरे का कैरी फारवर्ड स्टॉक बहुत कम है. जिसकी वजह से भाव तेज होंगे. उन्होंने बताया कि नवंबर की गर्मी से नुकसान हुआ. उसके बाद दिसंबर में भी पाला पड़ने से नुकसान हुआ. पिछले साल 45 लाख बोरी उत्पादन था और 35 लाख बोरी का स्टॉक राजस्थान व गुजरात में मिलाकर था. लेकिन इस राजस्थान व गुजरात में मिलाकर 50 से 52 लाख बोरी की क्रॉप दोनों राज्यों से आएगी. जबकि खपत 80 लाख बोरी की होती है. ऐसे में डिमांड के अनुरूप उपलब्धता नहीं होगी, इससे कमी होगी.
मारवाड़ में कहते हैं जीव का बैरी - मारवाड़ में जीरे की फसल को जीव का बैरी यानी किसान के जीवन का दुश्मन कहा जाता है. इसके गीत भी प्रचलित हैं, जिसमें किसान की पत्नी कहती है कि जीरा जीव का बैरी है. इसकी फसल की बुआई मत करो, इसकी वजह भी है, क्योंकि इस फसल को लेने के लिए किसान को बहुत मेहनत करनी पड़ती है. ठंड में फसल की रात भर निगरानी होती है. साथ ही ये फसल पूरी तरह से मौसम पर निर्भर करती है.