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...तो इसलिए विजयदशमी पर जोधपुर में रावण के वंशज मनाते हैं शोक

आज भी सूर्य नगरी जोधपुर में एक तबका ऐसा है, जो दशहरे पर रावण दहन के दौरान शोक मनाता है. यह तबका खुद को रावण का वंशज (Ravana descendants in Jodhpur) मानता है.

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Published : Oct 4, 2022, 7:52 PM IST

Updated : Oct 4, 2022, 8:18 PM IST

जोधपुर. दशहरा असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक (Dussehra Symbol of Truth over Falsehood) है. इस दिन पूरे देश में रावण के पुतले का दहन होता है. लेकिन सूर्य नगरी जोधपुर (Surya Nagari Jodhpur) में एक तबका ऐसा भी है, जो इस दिन को शोक के रूप में मनाता है. जोधपुर के श्रीमाली गोधा ब्राह्मण अपने आप को रावण का वंशज मानते हैं, लिहाजा वो दशहरे के दिन शोक मनाते हैं. इस दिन जोधपुर में रावण के मंदिर में पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की (Ravana is worshiped in Jodhpur) जाती है. श्रीमाली गोधा ब्राह्मणों की मानें तो रावण एक महान संगीतज्ञ विद्वान होने के साथ ही ज्योतिष शास्त्र का प्रकांड पंडित था. ऐसी मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी जोधपुर के मंडोर से थी. इसलिए रावण को दामाद भी माना जाता है.

जोधपुर के मेहरानगढ़ किला रोड पर स्थित मंदिर में रावण (Ravana temple is near Mehrangarh) और मंदोदरी की मूर्ति स्थापित है. इस मंदिर का निर्माण भी गोधा गौत्र के श्रीमाली ब्राह्मणों ने ही करवाया है. इनका मानना है कि रावण की पूजा करने सुफल की प्राप्ति होती है. वहीं, पिछले दो सालों से कोरोना संक्रमण के कारण शहर में रावण दहन नहीं हुआ था. बावजूद इसके यहां शोक की परंपरा बदस्तूर निभाई गई थी. खैर, अब बुधवार को दो साल बाद पूरे उत्साह के साथ शहर में रावण दहन होने जा रहा है.

इसे भी पढ़ें - धार्मिक आयोजनों पर प्रतिबंध: दशहरा महोत्सव का इस बार भी नहीं होगा आयोजन

जनेऊ बदलने की परंपरा: पंडित कमलेश कुमार बताते हैं कि रावण दहन के बाद स्नान करना अनिवार्य होता है. पूर्व में जलाशय होते थे तो हम सभी वहां स्नान करते थे, लेकिन अब हम घरों के बाहर ही स्नान कर लेते हैं. साथ ही इस दौरान जनेऊ बदलना भी अनिवार्य होता है. इसके उपरांत मंदिर में रावण और शिव की पूजा की जाती है. इस दौरान देवी मंदोदरी की भी आराधना की जाती है.

जोधपुर में रावण के वंशज मनाते हैं शोक

दामाद को खाने का दर्द: ऐसी मान्यता है कि मायासुर ने ब्रह्मा के आशीर्वाद से अप्सरा हेमा के लिए मंडोर का निर्माण किया था. जिनकी संतान का नाम मंदोदरी था. पौराणिक कथाओं के अनुसार मंडोर का नाम मंदोदरी के नाम पर रखा गया है. मंदोदरी बहुत सुंदर थी. इसलिए वर की तलाश की गई. मंदोदरी के योग्य वर नहीं मिला तो अंत में रावण पर मायासुर की खोज समाप्त हुई.

लंकाधिपति रावण जो स्वयं एक प्रतापी राजा होने के साथ-साथ एक गुणी विद्वान भी था. उसके साथ मंदोदरी का विवाह हुआ. मंडोर की पहाड़ी पर आज वो स्थान है, जहां विवाह संपन्न हुआ था. उस स्थान को चंवरी कहा जाता है. इधर, रावण मंदिर के पुजारी कमलेश कुमार श्रीमाली ने बताया कि हम रावण के वंशज हैं. जब उनका विवाह हुआ था, तब उनके साथ आए थे. कुछ लोग यहीं बस गए थे, जिनकी संतान हम हैं. उनके अनुसार रावण एक महान संगीतज्ञ, विद्वान और ज्योतिषि पुरुष था. रावण की मूर्ति के दर्शन मात्र से इंसान में आत्मविश्वास बढ़ जाता है.

जोधपुर. दशहरा असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक (Dussehra Symbol of Truth over Falsehood) है. इस दिन पूरे देश में रावण के पुतले का दहन होता है. लेकिन सूर्य नगरी जोधपुर (Surya Nagari Jodhpur) में एक तबका ऐसा भी है, जो इस दिन को शोक के रूप में मनाता है. जोधपुर के श्रीमाली गोधा ब्राह्मण अपने आप को रावण का वंशज मानते हैं, लिहाजा वो दशहरे के दिन शोक मनाते हैं. इस दिन जोधपुर में रावण के मंदिर में पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की (Ravana is worshiped in Jodhpur) जाती है. श्रीमाली गोधा ब्राह्मणों की मानें तो रावण एक महान संगीतज्ञ विद्वान होने के साथ ही ज्योतिष शास्त्र का प्रकांड पंडित था. ऐसी मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी जोधपुर के मंडोर से थी. इसलिए रावण को दामाद भी माना जाता है.

जोधपुर के मेहरानगढ़ किला रोड पर स्थित मंदिर में रावण (Ravana temple is near Mehrangarh) और मंदोदरी की मूर्ति स्थापित है. इस मंदिर का निर्माण भी गोधा गौत्र के श्रीमाली ब्राह्मणों ने ही करवाया है. इनका मानना है कि रावण की पूजा करने सुफल की प्राप्ति होती है. वहीं, पिछले दो सालों से कोरोना संक्रमण के कारण शहर में रावण दहन नहीं हुआ था. बावजूद इसके यहां शोक की परंपरा बदस्तूर निभाई गई थी. खैर, अब बुधवार को दो साल बाद पूरे उत्साह के साथ शहर में रावण दहन होने जा रहा है.

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जनेऊ बदलने की परंपरा: पंडित कमलेश कुमार बताते हैं कि रावण दहन के बाद स्नान करना अनिवार्य होता है. पूर्व में जलाशय होते थे तो हम सभी वहां स्नान करते थे, लेकिन अब हम घरों के बाहर ही स्नान कर लेते हैं. साथ ही इस दौरान जनेऊ बदलना भी अनिवार्य होता है. इसके उपरांत मंदिर में रावण और शिव की पूजा की जाती है. इस दौरान देवी मंदोदरी की भी आराधना की जाती है.

जोधपुर में रावण के वंशज मनाते हैं शोक

दामाद को खाने का दर्द: ऐसी मान्यता है कि मायासुर ने ब्रह्मा के आशीर्वाद से अप्सरा हेमा के लिए मंडोर का निर्माण किया था. जिनकी संतान का नाम मंदोदरी था. पौराणिक कथाओं के अनुसार मंडोर का नाम मंदोदरी के नाम पर रखा गया है. मंदोदरी बहुत सुंदर थी. इसलिए वर की तलाश की गई. मंदोदरी के योग्य वर नहीं मिला तो अंत में रावण पर मायासुर की खोज समाप्त हुई.

लंकाधिपति रावण जो स्वयं एक प्रतापी राजा होने के साथ-साथ एक गुणी विद्वान भी था. उसके साथ मंदोदरी का विवाह हुआ. मंडोर की पहाड़ी पर आज वो स्थान है, जहां विवाह संपन्न हुआ था. उस स्थान को चंवरी कहा जाता है. इधर, रावण मंदिर के पुजारी कमलेश कुमार श्रीमाली ने बताया कि हम रावण के वंशज हैं. जब उनका विवाह हुआ था, तब उनके साथ आए थे. कुछ लोग यहीं बस गए थे, जिनकी संतान हम हैं. उनके अनुसार रावण एक महान संगीतज्ञ, विद्वान और ज्योतिषि पुरुष था. रावण की मूर्ति के दर्शन मात्र से इंसान में आत्मविश्वास बढ़ जाता है.

Last Updated : Oct 4, 2022, 8:18 PM IST
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