जोधपुर. राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 के चुनावी मैदान में बिसात बिछने लगी है. चुनावी चौसर में प्रतिद्वंदी को मात देते हुए सियासी कुर्सी का ताज हासिल करने के लिए राजनीतिक दलों के महारथी मैदान में उतरने लगे हैं. भाजपा-कांग्रेस समेत दूसरे राजनीतिक दलों की ओर से एक-एक दिन बीतने के साथ ही बयानों के तीर की रफ्तार भी बढ़ने लगी है, वहीं जारी आरोप-प्रत्यारों के बीच सियासी पारा लगातार हाई होता जा रहा है. इन सबके बीच आज हम आपको राजस्थान की सबसे हॉट और वीवीआईपी सीट मानी जाने वाली सरदारपुरा के बारे में बता रहे हैं. अभेद्य सीट मानी जाने वाली सरदारपुरा से सीएम अशोक गहलोत पिछले 25 साल से विधानसभा पहुंच रहे हैं.
ये सीट न केवल सीएम गहलोत के लिए लकी मानी जाती है, बल्कि यहां उनका जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोलता है. इस सीट पर गहलोत को हराकर जीत का झंडा गाड़ने के लिए भाजपा समेत दूसरे राजनीतिक पिछले 25 साल से कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हर बार यह सीट अशोक गहलोत के लिए 'अभेद्य दुर्ग' के रूप में रही है. इस सीट पर जादूगर गहलोत के आगे सारे सूरमा पस्त होते रहे हैं. क्योंकि यहां सर्वाधिक माली जाति के मतदाता हैं, यहां माली उम्मीदवार ही चुनाव जीतते आए हैं.
सरदारपुरा सीट का राजनीतिक परिचयः सरदारपुरा विधानसभा सीट से सीएम अशोक गहलोत पहली बार 1999 में जीत हासिल की थी. दरअसल 1998 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद जब बतौर सीएम अशोक गहलोत का चुनाव किया गया तो उस समय वे विधायक नहीं थे. 1998 में विधानसभा चुनाव में सरदारपुरा से मानसिंह देवड़ा विजयी हुए थे. अशोक गहलोत सीएम बने तो देवड़ा ने सीट खाली की थी. इसके बाद अप्रैल 1999 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ, जिसमे अशोक गहलोत मुख्यमंत्री रहते हुए विधायक निर्वाचित हुए. उन्होंने भाजपा के मेघराज लोहिया को 49 हजार 280 मतों से पराजित किया था. गहलोत को 69856 मत मिले, जबकि लोहिया को महज 20576 वोट मिले थे. इस जीत के बाद से सरदारपुरा सीट का केवल एक ही 'सरदार' अशोक गहलोत हैं. इसके बाद वे यहां से 2003, 2008, 2013 और 2018 में विधायक का चुनाव जीत चुके हैं. हालांकि, अशोक गहलोत विधायक का पहला चुनाव यहां 1977 में हार भी चुके हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की परंपरागत विधानसभा सीट बन गई है. वे पांच बार यहां से लगातार विधायक चुने जा चुके हैं, उनके अलावा भाजपा के राजेंद्र गहलोत दो बार यहां से विधायक चुने गए हैं.
सीट की राजनीतिक स्थितिः सरदारपुरा माली बाहुल्य सीट है. 1967 में सरदारपुरा विधानसभा में पहला चुनाव हुआ था. इसके बाद से अब तक इस सीट पर 12 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. इसमें एक बार उपचुनाव भी हुए हैं. वर्ष 1967, 1977 में भारतीय जनसंघ और जनता पार्टी ने इस सीट पर चुनावी जीत हासिल की थी. 1990 व 1993 में भाजपा के राजेंद्र गहलोत ने विधायक के रूप में चुनाव जीता था. इसके अलावा बाकी चुनावों का परिणाम कांग्रेस के पक्ष में रहा है. जिसमें पांच बार अशोक गहलोत ने जीत दर्ज की है.
लोकसभा में भाजपा को बढ़तः सरदारपुरा विधानसभा सीट की खास बात यह है कि विधानसभा चुनाव में भले ही यहां माली मतदाता कांग्रेस को मत देते हैं. लेकिन लोकसभा चुनाव में इस विधानसभा क्षेत्र भाजपा को ही बढ़त मिलती रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत भी सरदारपुरा से पीछे रहे थे.
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जीत का फैक्टर क्या है: सरदारपुरा माली बाहुल्य सीट होने के कारण इस सीट पर एक तरफा माली जाति के मतदाताओं का रूझान ही चुनाव परिणाम तय करता है. गत पांच चुनावों में अशोक गहलोत को सीएम मानकर ही यहां वोट दिया जाता है. इसके अलावा अल्पसंख्यक, जाट, राजपूत, महाजन व ओबीसी के मतदाता हैं. राजपूत भी बडी संख्या में हैं, भाजपा ने दो बार यहां राजपूत प्रत्याशी उतारा लेकिन सफलता नहीं मिली.
सीट की पहचान: जोधपुर पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है. मेहरानगढ़, उमेद भवन, मंडोर गार्डन और भीतरी शहर का कुछ हिस्सा इस सरदारपुरा विधानसभा क्षेत्र मे आते हैं.
प्रदेश के राजनीतिक समीकरण का नहीं यहां असरः सरदारपुरा विधानसभा सीट से अशोक गहलोत के विधायक चुने जाने के बाद से प्रदेश की राजनीतिक समीकरण का असर इस सीट पर पड़ता नजर नहीं आता है. प्रदेश में कोई भी राजनीतिक समीकरण बने, लेकिन यहां का समीकरण बदलता नहीं है. पिछले 25 सालों में दो बार भाजपा की सरकार भी बनी, जोधपुर की अन्य दो सीटें व जिले की दूसरी सीटों पर भाजपा जीती भी, लेकिन सरदारपुरा में कोई बदलाव नहीं हुआ. ऐसे में कहा जा सकता है कि यहां अशोक गहलोत को वोट दिया जाता है, न की पार्टी को. माली जाति के मतदाता परंपरागत भाजपा के वोटर होते हैं. लेकिन वे विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत को ही पसंद करते हैं, यानी की पार्टी से ज्यादा व्यक्ति को तवज्जो दी जाती है. गहलोत से पहले यहां भाजपा व जनसंघ का दबदबा रहा है.
इस बार कौन मैदान में: कांग्रेस की ओर से सरदारपुरा से अशोक गहलोत ही एक मात्र उम्मीदवार हैं, बदलाव सिर्फ उनकी मर्जी से ही हो सकता है. इस बार गहलोत सरकार रिपिट करने की जद्दोजहद में लगे हैं ऐसे में यह तय है कि चुनाव वे ही लडेंगे, जिससे जनता में क्लियर मैसेज होगा कि वे अभी सक्रिय हैं. भाजपा के टिकट पर शंभूसिंह खेतासर दो बार चुनाव हार चुके हैं. गत बार तो 45 हजार से ज्यादा जीत के मतों का अंतर रहा है. ऐसे में भाजपा इस बार नया चेहरा मेदान में उतारेगी. गहलोत के सामने पहले भाजपा मेघराज लोहिया, राजेंद्र गहलोत, महेंद्र झाबक को चुनाव मैदान में उतार चुकी है.
यहां मुद्दे रहते हैं बेमानीः मुद्दे व जरूरतें इस सीट पर पूरी तरह से बेमानी रहते हैं, क्योंकि सीएम गहलोत की सीट रहने के कारण यहां काम होते ही हैं. गहलोत जब सत्ता में रहते हैं, तब जोधपुर का प्रशासन व विकास प्राधिकरण क्षेत्र की जरूरतों का ध्यान रखते हैं. इसके अलावा गहलोत के सिपहसालार बाकी जिम्मा उठाते हैं और लोगों के काम और विकास कार्य करवाते हैं.