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पॉक्सो के केस में हाईकोर्ट ने दी जमानत, ट्रायल कोर्ट को पीड़िता के दोबारा बयान कराने के निर्देश - धारा 119 के प्रावधानों की अवहेलना की गई

राजस्थान हाईकोर्ट ने पॉक्सो के एक केस में अदालत की निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए आरोपियों को जमानत दे दी है. साथ ही ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिए हैं कि वह पीड़िता के दोबारा बयान दर्ज करवाए.

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पॉक्सो के केस में हाईकोर्ट ने दी जमानत
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Published : Jun 16, 2023, 9:53 PM IST

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने पॉक्सो के मामले में एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है. अपने इस आदेश के लिए अदालत ने कोर्ट में निहित शक्तियों का उपयोग किया. इसके बाद आरोपियों की जमानत अर्जी स्वीकार कर ली. साथ ही पीड़िता के ट्रायल कोर्ट में दर्ज बयानों को निरस्त करते हुए नए सिरे से दोबारा बयान दर्ज करने के निर्देश जारी किए हैं.

साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 के प्रावधानों की अवहेलना की गईः जस्टिस कुलदीप माथुर की एकलपीठ में एक महत्वपूर्ण मामले में दो आरोपियों ने जमानत याचिकाएं पेश की थीं. आरोपियों की ओर से अधिवक्ताओं ने कहा कि भीलवाड़ा के प्रतापनगर थाने में दोनों आरोपियों के खिलाफ 376 (2) (L)आईपीसी और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5(J) (2) /6, 5(K) (G)/6 के तहत दर्ज मामले में गिरफ्तार किया गया. अधिवक्ताओं ने कहा कि पीड़िता मूक-बधिर है. पीड़िता के 20 जुलाई 2022 को ट्रायल कोर्ट में बयान दर्ज किए गए थे. जिसमें भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 में निहित प्रावधानों की घोर अवहेलना की गई है.

ये भी पढ़ेंः High Court News: हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दिए निर्देश, प्रतिमाह 5 दिन न्यायिक कार्य करें

मूक-बधिर है पीड़िताः पीड़िता के मूक-बधिर होने से विद्या शर्मा जो कि संकेत भाषा विशेषज्ञ हैं, लेकिन उन्होंने कोर्ट में बयान दर्ज कराने में सहायता करने में असमर्थता दिखाई. वह स्वयं पीड़िता की भाषा को समझ नहीं सकीं. इस पर कोर्ट में पीड़िता की बहन व पिता ने इशारों द्वारा संप्रेषित बयानों की व्याख्या कर बयान रिकॉर्ड करवाए जो कि अविश्वसनीय हैं. गवाह के बयान स्वतंत्र होने चाहिए और मूक-बधिर होने की स्थिति में दुभाषिया या संकेत भाषा विशेषज्ञ ऐसा हो जिसका हित न हो. बावजूद इसके बहन व पिता ने ही बयान रिकॉर्ड करवाए हैं. इस पर कोर्ट ने दोनों आरोपियों की जमानत याचिका को मंजूर कर लिया.

अदालत ने CRPC की धारा 482 का किया उपयोगः कोर्ट ने इसके साथ सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए पीड़िता के ट्रायल कोर्ट में दर्ज बयानों को निरस्त कर दिया. हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिए हैं कि वो पीड़िता को दोबारा तलब कर नए सिरे से साक्ष्य अधिनियम और पॉक्सो अधिनियम की पालना करते हुए बयान दर्ज करे. यदि ट्रायल कोर्ट को सांकेतिक भाषा विशेषज्ञ की व्यवस्था करने में कोई कठिनाई आती है तो वह राजस्थान विधिक सेवा प्राधिकरण जोधपुर या जयपुर से सेवाए ले सकते हैं. सांकेतिक भाषा विशेषज्ञ का खर्च भी विधिक सेवा प्राधिकरण वहन करेगा. ट्रायल कोर्ट को ट्रायल में तेजी लाने के भी निर्देश दिए गए है.

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने पॉक्सो के मामले में एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है. अपने इस आदेश के लिए अदालत ने कोर्ट में निहित शक्तियों का उपयोग किया. इसके बाद आरोपियों की जमानत अर्जी स्वीकार कर ली. साथ ही पीड़िता के ट्रायल कोर्ट में दर्ज बयानों को निरस्त करते हुए नए सिरे से दोबारा बयान दर्ज करने के निर्देश जारी किए हैं.

साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 के प्रावधानों की अवहेलना की गईः जस्टिस कुलदीप माथुर की एकलपीठ में एक महत्वपूर्ण मामले में दो आरोपियों ने जमानत याचिकाएं पेश की थीं. आरोपियों की ओर से अधिवक्ताओं ने कहा कि भीलवाड़ा के प्रतापनगर थाने में दोनों आरोपियों के खिलाफ 376 (2) (L)आईपीसी और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5(J) (2) /6, 5(K) (G)/6 के तहत दर्ज मामले में गिरफ्तार किया गया. अधिवक्ताओं ने कहा कि पीड़िता मूक-बधिर है. पीड़िता के 20 जुलाई 2022 को ट्रायल कोर्ट में बयान दर्ज किए गए थे. जिसमें भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 में निहित प्रावधानों की घोर अवहेलना की गई है.

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मूक-बधिर है पीड़िताः पीड़िता के मूक-बधिर होने से विद्या शर्मा जो कि संकेत भाषा विशेषज्ञ हैं, लेकिन उन्होंने कोर्ट में बयान दर्ज कराने में सहायता करने में असमर्थता दिखाई. वह स्वयं पीड़िता की भाषा को समझ नहीं सकीं. इस पर कोर्ट में पीड़िता की बहन व पिता ने इशारों द्वारा संप्रेषित बयानों की व्याख्या कर बयान रिकॉर्ड करवाए जो कि अविश्वसनीय हैं. गवाह के बयान स्वतंत्र होने चाहिए और मूक-बधिर होने की स्थिति में दुभाषिया या संकेत भाषा विशेषज्ञ ऐसा हो जिसका हित न हो. बावजूद इसके बहन व पिता ने ही बयान रिकॉर्ड करवाए हैं. इस पर कोर्ट ने दोनों आरोपियों की जमानत याचिका को मंजूर कर लिया.

अदालत ने CRPC की धारा 482 का किया उपयोगः कोर्ट ने इसके साथ सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए पीड़िता के ट्रायल कोर्ट में दर्ज बयानों को निरस्त कर दिया. हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिए हैं कि वो पीड़िता को दोबारा तलब कर नए सिरे से साक्ष्य अधिनियम और पॉक्सो अधिनियम की पालना करते हुए बयान दर्ज करे. यदि ट्रायल कोर्ट को सांकेतिक भाषा विशेषज्ञ की व्यवस्था करने में कोई कठिनाई आती है तो वह राजस्थान विधिक सेवा प्राधिकरण जोधपुर या जयपुर से सेवाए ले सकते हैं. सांकेतिक भाषा विशेषज्ञ का खर्च भी विधिक सेवा प्राधिकरण वहन करेगा. ट्रायल कोर्ट को ट्रायल में तेजी लाने के भी निर्देश दिए गए है.

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