जोधपुर. प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार तय हो रहे हैं. दिल्ली में बैठकें चल रही हैं. इस बीच कांग्रेस के लिए जोधपुर की सूरसागर सीट गलफांस बनी हुई है. इसके चलते गहलोत के घर में कलह हो रही है. सूरसागर विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ता सीएम अशोक गहलोत से नाराज हैं. उनका कहना है कि अगर वैभव गहलोत चुनाव हार गए, तो इसमें हमारी क्या गलती है? कार्यकर्ता तो सिर्फ भागदौड़ कर सकता है. हार जीत तो उम्मीदवार के कर्मों से होती है. हमारे काम नहीं होते. सीएम हाउस में एंट्री नहीं होती.
बुधवार को जोधपुर शहर जिला कांग्रेस कमेटी में सूरसागर क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की बैठक में दोनों जिलाध्यक्ष सलीम खान व नरेश जोशी को खरी-खरी सुनाई. पार्षद शहाबुद्दीन, निसार अहमद और पूर्व पार्षद राजेश बोराणा ने भड़ास निकाली. दक्षिण जिलाध्यक्ष नरेश जोशी निशाने पर रहे और पार्षद निसार अहमद तो लड़ने पर उतारु हो गए. संगठन मंत्री ओमकार वर्मा ने बीच-बचाव किया. तेज बहस के बीच जेडीए के पूर्व अध्यक्ष राजेंद्र सिंह सोलंकी भी पहुंचे, लेकिन कार्यकर्ता बोलते रहे.
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हालांकि इस पूरे मसले को दोनों जिलाध्यक्ष नरेश जोशी व सलीम खान ने घर की बात कहकर किनारा कर लिया. बैठक में पूर्व पार्षद राजेश बोराणा ने कहा कि सूरसागर का कार्यकर्ता हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार है. वोटर को बूथ तक कार्यकर्ता ही लेकर जाता है. हालांकि जब वे सीएम हाउस जाते हैं, तो अंदर नहीं जाने दिया जाता है. कार्यकर्ताओं के लिए कांग्रेस ने क्या पॉलिसी तैयार की है. 20 साल से वार्ड अध्यक्ष नहीं है. जिलाध्यक्ष के पास पावर नहीं है. प्रदेशाध्यक्ष के पास सारे पावर हैं. वैभव गहलोत चुनाव हार गए, तो इसमें हमारा क्या कसूर है.
एक लाइन के प्रस्ताव पर उठे सवाल: बैठक में पार्षद शहाबुद्दीन ने कहा कि अशोक गहलोत जिसे भी टिकट देंगे, हम उनके साथ हैं. लेकिन एक लाइन का प्रस्ताव किस बैठक में पारित हुआ. कार्यकर्ताओं ने इस बैठक और प्रस्ताव पर जमकर सवाल खड़े किए. इस दौरान पार्षद निसार अहमद किसी बात को लेकर जिलाध्यक्ष नरेश जोशी के सामने हो गए. संगठन मंत्री ने बीच-बचाव किया.
सूरसागर में चेहरा बदलने की कवायद: सूरसागर में कांग्रेस लगातार चार चुनाव हार चुकी है. गत बार प्रत्याशी बनाए गए प्रो अयूब को सरकार ने आरपीएससी सदस्य बना दिया. जिसके बाद से अब यहां चेहरा बदलने की कवायद चल रही है. अल्पसंख्यक अपना दावा नहीं छोड़ रहे हैं, जबकि अल्पसंख्यक प्रत्याशी लगातार चुनाव हार रहे हैं. इस बार पार्टी को चेहरा बदलना है.