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Dhinga Gavar Pujan : जोधपुर में गणगौर के बाद धींगा गवर पूजन, बेंत लगी तो जल्द होगा विवाह, जानें दिलचस्प पर्व के बारे में - ETV Bharat Rajasthan news

जोधपुर में धींगा गवर का पूजन किया जा रहा (Dhinga Gavar Pujan Begins) है. गणगौर की तरह ही ये भी 16 दिन के लिया पूजी जाती है. पूजन के अंतिम दिन बेंतमार जुलूस निकाला जाता है.

Dhinga Gavar Pujan Begins
जोधपुर में धींगा गवर पूजन
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Published : Apr 1, 2023, 7:57 PM IST

Updated : Apr 1, 2023, 8:18 PM IST

जोधपुर में गणगौर के बाद धींगा गवर पूजन

जोधपुर. गणगौर के बाद अब धींगा गवर पूजन किया जा रहा है, जिसके तहत गवर का पूजन किया जाता है. यह भी गणगौर की तरह पूरे 16 दिन चलेगा. त्योहार की शुरुआत गणगौर के अगले दिन यानी 25 मार्च से हुई थी. इसके अंतिम दिन पूजन के बाद महिलाएं अलग-अलग स्वांग बनाकर निकलती हैं. इसे बेंतमार मेला भी कहा जाता है, जिसे देखने के लिए पूरा शहर उमड़ता है.

श्रद्धालु बताती हैं कि इस मेले में महिलाएं सज-धज कर अपने हाथ में एक लकड़ी की बेंत लेकर चलती हैं. इस बेंत से वो कुंवारों को मारती हैं. मान्यता है कि जिसको बेंत लगती है उसका जल्द विवाह हो जाता है. धींगा गवर का पूजन भाद्र के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन से शुरू होता है, जो 16 दिन चलता है. गवर को पार्वती के रूप में पूजा जाता है. जोधपुर व मेवाड़ के इतिहास को लेकर लिखे गए ग्रंथ वीर विनोद में भी धींगा गवर का उल्लेख है. इस ग्रंथ में 1884 तक के राजाओं के शासन का वर्णन है.

पढ़ें. झीलों की नगरी उदयपुर में शुरू हुआ गणगौर महोत्सव, विदेशी सैलानी हुए मंत्रमुग्ध..देखें वीडियो

कविराज श्यामलदास ने लिखा है कि महाराणा राजसिंह की छोटी रानी जिसका जोधपुर से संबंध था, उसकी नाराजगी दूर करने के लिए पारंपरिक रीत से हटकर धींगा गवर का पर्व मनाया गया था. सामान्य भाषा में धींगाई का अर्थ जबरदस्ती है. संस्कृत के धिंग (हठपूर्वक) से ही धींगा शब्द बना है, यानी की परंपरा से हटकर जबरदस्ती. यह पूजन सदियों पहले राज परिवार में शुरू हुआ था. जोधपुर के भीतरी शहर में इसका आयोजन होता है. विशेषकर पुष्करणा ब्राहमण समाज की महिलाएं इसमें शामिल होती हैं.

कुंवारी नहीं विधवा व विवाहिता ही पूजती हैं : श्रद्धालु बताते हैं कि धींगा गवर पूजन में कुंवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता है. इस पूजा में सिर्फ विवाहिताएं और विधवा शामिल होती हैं. भीतरी शहर के घरों, मोहल्लों में उत्साह से पूजन चल रहा है. गवर का चित्र बनाकर पूजन होता है. इस पूजन में कच्चे सूत के धागे का पूजन होता है. 16 दिन तक हर दिन धागे का पूजन होता है. इस धागे में सोलह गांठे भी लगाई जाती हैं. इस पूजन से विवाहिता अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है.

अंतिम दिन निकलता है मेला : इस बार धींगा गवर पूजन 9 अप्रेल को समाप्त होगा. इस दिन पूरी रात परकोटे की सड़कों पर अलग-अलग रूप धर महिलाएं बाहर निकलेंगी. पूरी रात वे घूमती हैं और सुबह चार बजे गवर की भोलावनी की रस्म होती है. इस समय महिलाओं के रास्ते में पुरुषों को आने की मनाही होती है. मान्यता है कि अगर कोई पुरुष उस समय व्रत करने वाली तिजणियों के सामने आता है तो उसकी मृत्यु हो जाती है.

जोधपुर में गणगौर के बाद धींगा गवर पूजन

जोधपुर. गणगौर के बाद अब धींगा गवर पूजन किया जा रहा है, जिसके तहत गवर का पूजन किया जाता है. यह भी गणगौर की तरह पूरे 16 दिन चलेगा. त्योहार की शुरुआत गणगौर के अगले दिन यानी 25 मार्च से हुई थी. इसके अंतिम दिन पूजन के बाद महिलाएं अलग-अलग स्वांग बनाकर निकलती हैं. इसे बेंतमार मेला भी कहा जाता है, जिसे देखने के लिए पूरा शहर उमड़ता है.

श्रद्धालु बताती हैं कि इस मेले में महिलाएं सज-धज कर अपने हाथ में एक लकड़ी की बेंत लेकर चलती हैं. इस बेंत से वो कुंवारों को मारती हैं. मान्यता है कि जिसको बेंत लगती है उसका जल्द विवाह हो जाता है. धींगा गवर का पूजन भाद्र के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन से शुरू होता है, जो 16 दिन चलता है. गवर को पार्वती के रूप में पूजा जाता है. जोधपुर व मेवाड़ के इतिहास को लेकर लिखे गए ग्रंथ वीर विनोद में भी धींगा गवर का उल्लेख है. इस ग्रंथ में 1884 तक के राजाओं के शासन का वर्णन है.

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कविराज श्यामलदास ने लिखा है कि महाराणा राजसिंह की छोटी रानी जिसका जोधपुर से संबंध था, उसकी नाराजगी दूर करने के लिए पारंपरिक रीत से हटकर धींगा गवर का पर्व मनाया गया था. सामान्य भाषा में धींगाई का अर्थ जबरदस्ती है. संस्कृत के धिंग (हठपूर्वक) से ही धींगा शब्द बना है, यानी की परंपरा से हटकर जबरदस्ती. यह पूजन सदियों पहले राज परिवार में शुरू हुआ था. जोधपुर के भीतरी शहर में इसका आयोजन होता है. विशेषकर पुष्करणा ब्राहमण समाज की महिलाएं इसमें शामिल होती हैं.

कुंवारी नहीं विधवा व विवाहिता ही पूजती हैं : श्रद्धालु बताते हैं कि धींगा गवर पूजन में कुंवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता है. इस पूजा में सिर्फ विवाहिताएं और विधवा शामिल होती हैं. भीतरी शहर के घरों, मोहल्लों में उत्साह से पूजन चल रहा है. गवर का चित्र बनाकर पूजन होता है. इस पूजन में कच्चे सूत के धागे का पूजन होता है. 16 दिन तक हर दिन धागे का पूजन होता है. इस धागे में सोलह गांठे भी लगाई जाती हैं. इस पूजन से विवाहिता अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है.

अंतिम दिन निकलता है मेला : इस बार धींगा गवर पूजन 9 अप्रेल को समाप्त होगा. इस दिन पूरी रात परकोटे की सड़कों पर अलग-अलग रूप धर महिलाएं बाहर निकलेंगी. पूरी रात वे घूमती हैं और सुबह चार बजे गवर की भोलावनी की रस्म होती है. इस समय महिलाओं के रास्ते में पुरुषों को आने की मनाही होती है. मान्यता है कि अगर कोई पुरुष उस समय व्रत करने वाली तिजणियों के सामने आता है तो उसकी मृत्यु हो जाती है.

Last Updated : Apr 1, 2023, 8:18 PM IST
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