भोपालगढ़ (जोधपुर). क्षेत्र में किसानों ने दो-तीन साल पहले मिले प्याज के बंपर भावों की आशा में इस बार भी प्याज की बंपर बुवाई की है. उपज भी आशानुरूप हुई है. लेकिन इस बार कोरोना के कहर और लॉकडाउन ने किसानों के साथ-साथ व्यापारियों का भी सारा गणित बिगाड़ कर रख दिया है. इससे किसानों के खेतों में पैदा हुई उपज बिक नहीं पा रही है. किसानों की माने, तो प्याज की एक बीघा खेती में करीब 15 हजार रुपए तक का खर्च आता है. जबकि एक बीघा में होने वाली उपज से 12 से 13 हजार तक की मिल पाते हैं.
भंडारण की भी सुविधा नहीं
किसानों और व्यापारियों के लिए प्याज की उपज बचाने को लेकर सबसे बड़ी दिक्कत यहां कोई भंडारण की सुविधा नहीं होना है. हर साल भोपालगढ़ क्षेत्र के नाड़सर, हीरादेसर, भोपालगढ़, कुड़ी, बारनी खुर्द, दाड़मी, आसोप, रड़ोद, हिंगोली, सोयला, चटालिया, धनारी, नागड़ी सहित कई ग्रामीण इलाकों में भारी मात्रा में प्याज की पैदावार होती है. लेकिन इसके भंडारण की सुविधा के अभाव में किसानों और व्यापारियों को भावों का इंतजार किए बिना गर्मी और बारिश से खराब होने से पहले ही अपनी उपज को बेचना पड़ता है.
खराबे की बनी आशंका
वर्तमान में पड़ रही प्रचंड गर्मी के कारण जल्दी खराब होने वाले प्याज का भंडारण कर किसान और व्यापारी दोनों ही रिस्क उठा रहे हैं. किसान अपने खाली पड़े खेतों और बाड़ों में प्याज की ढेर और भरे हुए कट्टों को गर्मी और बरसात में होने वाले नुकसान से बचाने की जुगत कर रहे हैं. प्रगतिशील किसान मनोहर परिहार के अनुसार गर्मी के साथ ही बारिश से भी प्याज को बहुत जल्दी नुकसान होता है. जिससे सारी उपज सड़ने लग जाती है. ऐसे में इस बार गर्मी से तो फसल खराब हो ही रही है और समय से पहले आई बारिश से होने वाले संभावित नुकसान ने भी किसानों को चिंता में डाल दिया है.
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एक्सपर्ट की राय
जोधपुर जिले में प्याज की उपज दो तरह से की जाती है. पहली उपज तो फव्वारों से सिंचाई करके और दूसरी सीधे ट्यूबवेल या नहरों से सिंचाई करके की जाती है. फव्वारा से सिंचाई की गई प्याज की उपज बिना भंडारण के महीने भर के अंदर ही खराब होने लगती है. वहीं सीधे सिंचित उपज को भी 40 डिग्री से ऊपर के तापमान में महीने-डेढ़ महीने से ज्यादा समय तक सहेज कर नहीं रखा जा सकता है. ऐसे में दोनों ही प्रकार की उपज को एक-दो माह से अधिक समय तक रोकना किसानों और व्यापारियों दोनों के लिए ही भारी पड़ जाता है
यह है प्याज का गणितः
(1 मण =40 किलो)
- क्षेत्र में बुवाई- लगभग 700 से 750 हेक्टेयर
- पैदावार प्रति हेक्टेयर- लगभग 900-1000 मण
- क्षेत्र में कुल पैदावार- 7 से 8 लाख मण
- अब तक हुई बिक्री- 10 से 20 हजार मण
- भंडारण (किसानों के यहां)- 7 से 7.5 लाख मण
- भंडारण (व्यापारियों के यहां)- 10 से 15 हजार मण
- वर्तमान भाव- फव्वारा से सिंचित - 120 से 150 रुपए प्रति मण और सीधे सिंचित - 140 से 160 रुपए प्रति मण
- भाव की उम्मीद - 400 से 500 रुपए प्रति मण (पिछले साल के भाव)