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राजस्थान के मौजूदा स्वरूप में जोधपुर की रही महती भूमिका, सरदार पटेल की चलती तो बदल जाता नक्शा

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Published : Mar 30, 2023, 6:32 AM IST

राजस्थान दिवस 30 मार्च को मनाया जाता है. अगर इस प्रदेश के स्थापना की पृष्ठिभूमि में जाकर देखा जाए तो इसके निर्माण और मौजूदा स्वरूप में जोधपुर की महती भूमिका रही है. वहीं, यह भी कहा जाता है कि उस समय अगर सरदार पटेल की चलती तो जोधपुर का नक्शा ही बदल गया होता.

Jodhpur important role form of rajasthan
राजस्थान के मौजूदा स्वरूप में जोधपुर की रही महती भूमिका
राजस्थान के मौजूदा स्वरूप में जोधपुर की रही महती भूमिका

जोधपुर. राजस्थान दिवस 30 मार्च को मनाया जाता है. जबकि प्रदेश का वर्तमान स्वरूप 1 नवंबर 1956 को गठित हुआ था. इस दिन सिरोही व अजमेर का विलय हुआ था. वहीं तीस मार्च 1949 को जयपुर, जोधपुर और बीकानेर जैसी रियासत शामिल हुई थीं. इसी दिन राजस्थान की स्थापना तय हो गई थी. खास बात यह है कि राजस्थान के तीस मार्च के एकीकरण और एक नवंबर के विलय दोनों में जोधपुर की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण थी.

तो माउंट आबु गुजरात में होताः तीस मार्च 1949 से पहले जोधपुर के तत्कालीन शासक हनवंत सिंह विलय के लिए तैयार नहीं होते तो नक्शा अलग होता. इसी तरह से तीस मार्च के विलय के बाद राज्यों की सीमाओं को लेकर गठित आयोग में जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने ही सिरोही क्षेत्र का सर्वे किया था. उनकी रिपोर्ट पर सिरोही का राजस्थान में विलय हुआ था. अगर ऐसा नहीं होता तो राजस्थान का एक मात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबु, गुजरात में होता. सरदार पटेल खुद सिरोही का विलय गुजरात में चाहते थे. अगर पटेल की चलती तो राजस्थान का नक्शा बदल जाता.

1953 में बना था फैजल आयोगः आजादी के बाद देश की कई देसी रियासतों के एकीकरण से राज्यों के सीमाकरण के मामले उलझ गए थे. जब वृहत राजस्थान की बात आई तो भी सीमाकरण का मुद्दा उठा. जिसके चलते सरदार पटेल ने जस्टिस फैजल अली आयोग बनाया. इस आयोग ने राज्यों की सीमाओं को लेकर काम किया था. बावजूद इसके सिरोही को लेकर विवाद हुआ. गुजरात के नेता माउंट आबु को अपने यहां चाहते थे. फैजल आयोग में बतौर सदस्य जेएनवीयू के तत्कालीन विभागाध्यक्ष प्रो. दशरथ शर्मा और प्रो. जिनसैन शूरी शामिल थे. जिन्होंने सिरोही का सर्वे किया और लोगों से राय जानी. भाषा सहित कई बिंदुओं पर लोगों ने राजस्थान में मिलाने की इच्छा जताई. जेएनवीयू के शिक्षकों की रिपोर्ट पर सिरोही का विलय राजस्थान में हुआ था.
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महाराजा माने तो बनी बातः देश में आजादी की तिथि तय हो चुकी थी. सरदार पटेल लगातार देसी रियासतों के एकीकरण में जुटे हुए थे. जोधपुर रियासत की स्थिति साफ नहीं थी. जिन्ना द्वारा कई प्रलोभन जोधपुर के तत्कालीन महाराजा हनवंत सिंह को दिए गए. जिन्ना ने यहां तक कहा कि खाली पेपर पर हस्ताक्षर कर देने को तैयार हैं, जो शर्ते चाहे महाराजा भर लें. इसको लेकर महाराजा ने भी मन बना लिया. इसकी जानकारी हुई तो पटेल ने अपने नजदीकी वीपी मेनन और माउंट बेटन को महाराज से मिलने भेजा. मेनन अकेले कमरे में थे, तो उन्होंने महाराजा से विलय पत्र पर हस्ताक्षर का आग्रह किया. यह भी कहा कि जिन्ना के प्रलोभन से धोखा खा जायेंगे. इस दौरान जब महाराजा ने पेन निकाला तो वह पिस्टल की शक्ल का था. जिसे देख मेनन डर गए. इस दौरान माउंट बेटन वापस आ गए. उन्होंने वह गन की शक्ल का पेन ले लिया. 11 अगस्त 1947 को आजादी से चार दिन पहले महाराजा ने जोधपुर रियासत में मिलने के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए.

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लैरी ने लिखा फ्रीडम एट मिड नाइट में वाकियाः जोधपुर महाराजा हनवंत सिंह के पाकिस्तान में मिलने की मंशा से लेकर भारत में विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने की पूरी घटना का उल्लेख तत्कालीन समय के पत्रकार लैरी कॉलिंस व लैपियर की लिखी किताब फ्रीडम एट मिड नाइट के हिंदी अनुवाद की किताब के पेज नंबर 171 व 172 पर वर्णित है. उसमें बताया गया है कि महाराजा उमेदसिंह के बाद जोधपुर की कमान हनवंत सिंह को सौंपी गई थी. उस समय बीकानेर, जैसलमेर रियासत भोपाल नवाब के संपर्क में थी. नवाब के सलाहकार सर जफर उल्लाह खान ने हनवंत सिंह से मुलाकात कर पाकिस्तान में शामिल होने की बात कही थी. उनकी जिन्ना से मुलाकात दिल्ली में हुई थी. उसी दिन इंपीरियल होटल में सरदार पटेल के विश्वस्त वीपी मेनन भी महारजा हनवंत सिंह से मिले थे. जहां पिस्टल वाली घटना हुई. जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. जहूर मोहम्मद का कहना है कि महाराजा अपनी जनता का भला चाहते थे. इसलिए पाकिस्तान में मिलने की बात उनकी रणनीति थी. जिससे जोधपुर को विशेष रियायतें मिल सके. जोधपुर का वर्चस्व बना रहे, यही उनका लक्ष्य था.

राजस्थान के मौजूदा स्वरूप में जोधपुर की रही महती भूमिका

जोधपुर. राजस्थान दिवस 30 मार्च को मनाया जाता है. जबकि प्रदेश का वर्तमान स्वरूप 1 नवंबर 1956 को गठित हुआ था. इस दिन सिरोही व अजमेर का विलय हुआ था. वहीं तीस मार्च 1949 को जयपुर, जोधपुर और बीकानेर जैसी रियासत शामिल हुई थीं. इसी दिन राजस्थान की स्थापना तय हो गई थी. खास बात यह है कि राजस्थान के तीस मार्च के एकीकरण और एक नवंबर के विलय दोनों में जोधपुर की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण थी.

तो माउंट आबु गुजरात में होताः तीस मार्च 1949 से पहले जोधपुर के तत्कालीन शासक हनवंत सिंह विलय के लिए तैयार नहीं होते तो नक्शा अलग होता. इसी तरह से तीस मार्च के विलय के बाद राज्यों की सीमाओं को लेकर गठित आयोग में जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने ही सिरोही क्षेत्र का सर्वे किया था. उनकी रिपोर्ट पर सिरोही का राजस्थान में विलय हुआ था. अगर ऐसा नहीं होता तो राजस्थान का एक मात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबु, गुजरात में होता. सरदार पटेल खुद सिरोही का विलय गुजरात में चाहते थे. अगर पटेल की चलती तो राजस्थान का नक्शा बदल जाता.

1953 में बना था फैजल आयोगः आजादी के बाद देश की कई देसी रियासतों के एकीकरण से राज्यों के सीमाकरण के मामले उलझ गए थे. जब वृहत राजस्थान की बात आई तो भी सीमाकरण का मुद्दा उठा. जिसके चलते सरदार पटेल ने जस्टिस फैजल अली आयोग बनाया. इस आयोग ने राज्यों की सीमाओं को लेकर काम किया था. बावजूद इसके सिरोही को लेकर विवाद हुआ. गुजरात के नेता माउंट आबु को अपने यहां चाहते थे. फैजल आयोग में बतौर सदस्य जेएनवीयू के तत्कालीन विभागाध्यक्ष प्रो. दशरथ शर्मा और प्रो. जिनसैन शूरी शामिल थे. जिन्होंने सिरोही का सर्वे किया और लोगों से राय जानी. भाषा सहित कई बिंदुओं पर लोगों ने राजस्थान में मिलाने की इच्छा जताई. जेएनवीयू के शिक्षकों की रिपोर्ट पर सिरोही का विलय राजस्थान में हुआ था.
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महाराजा माने तो बनी बातः देश में आजादी की तिथि तय हो चुकी थी. सरदार पटेल लगातार देसी रियासतों के एकीकरण में जुटे हुए थे. जोधपुर रियासत की स्थिति साफ नहीं थी. जिन्ना द्वारा कई प्रलोभन जोधपुर के तत्कालीन महाराजा हनवंत सिंह को दिए गए. जिन्ना ने यहां तक कहा कि खाली पेपर पर हस्ताक्षर कर देने को तैयार हैं, जो शर्ते चाहे महाराजा भर लें. इसको लेकर महाराजा ने भी मन बना लिया. इसकी जानकारी हुई तो पटेल ने अपने नजदीकी वीपी मेनन और माउंट बेटन को महाराज से मिलने भेजा. मेनन अकेले कमरे में थे, तो उन्होंने महाराजा से विलय पत्र पर हस्ताक्षर का आग्रह किया. यह भी कहा कि जिन्ना के प्रलोभन से धोखा खा जायेंगे. इस दौरान जब महाराजा ने पेन निकाला तो वह पिस्टल की शक्ल का था. जिसे देख मेनन डर गए. इस दौरान माउंट बेटन वापस आ गए. उन्होंने वह गन की शक्ल का पेन ले लिया. 11 अगस्त 1947 को आजादी से चार दिन पहले महाराजा ने जोधपुर रियासत में मिलने के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए.

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लैरी ने लिखा फ्रीडम एट मिड नाइट में वाकियाः जोधपुर महाराजा हनवंत सिंह के पाकिस्तान में मिलने की मंशा से लेकर भारत में विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने की पूरी घटना का उल्लेख तत्कालीन समय के पत्रकार लैरी कॉलिंस व लैपियर की लिखी किताब फ्रीडम एट मिड नाइट के हिंदी अनुवाद की किताब के पेज नंबर 171 व 172 पर वर्णित है. उसमें बताया गया है कि महाराजा उमेदसिंह के बाद जोधपुर की कमान हनवंत सिंह को सौंपी गई थी. उस समय बीकानेर, जैसलमेर रियासत भोपाल नवाब के संपर्क में थी. नवाब के सलाहकार सर जफर उल्लाह खान ने हनवंत सिंह से मुलाकात कर पाकिस्तान में शामिल होने की बात कही थी. उनकी जिन्ना से मुलाकात दिल्ली में हुई थी. उसी दिन इंपीरियल होटल में सरदार पटेल के विश्वस्त वीपी मेनन भी महारजा हनवंत सिंह से मिले थे. जहां पिस्टल वाली घटना हुई. जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. जहूर मोहम्मद का कहना है कि महाराजा अपनी जनता का भला चाहते थे. इसलिए पाकिस्तान में मिलने की बात उनकी रणनीति थी. जिससे जोधपुर को विशेष रियायतें मिल सके. जोधपुर का वर्चस्व बना रहे, यही उनका लक्ष्य था.

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