जोधपुर: काजरी ने छोटी जोत के किसानों के लिए एक ऐसा मॉडल तैयार (CAZRI prepared special model for farmers) किया है, जिससे अब उन्हें पूरे साल काम, खाद्यान, पशु के लिए चारा और हाथ में नकद मिलना संभव होगा. यह मॉडल आठ हैक्टेयर बीघा तक की जोत वाले किसानों के लिए काफी लाभदायक है. काजरी ने पहले खुद अपने परिसर में इस मॉडल के तहत काम है. इसके बाद इसे किसानों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, ताकि वो भी आगे इससे लाभान्वित हो सके.
काजरी की ओर से समन्वित कृषि प्रणाली (integrated farming system) के दो मॉडल बनाए हैं. जिनमें एक वह क्षेत्र जहां किसान सिर्फ बारिश पर ही निर्भर है, यानी की बारानी कृषि और दूसरा ऐसे क्षेत्र जहां पर किसानों के पास जमीन का कुछ हिस्सा नलकूप या अन्य साधनों से सिंचित होता है. केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान काजरी के इस मॉडल में पूरे साल के लिए किसानों की आय बढ़ाने पर जोर दिया गया है. साथ ही अब किसान इस तरह के मॉडल में पशु पालन से अधिक आय अर्जित कर सकेंगे. इस प्रणाली को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने (Indian Council of Agricultural Research) पुरस्कृत भी किया गया है.
बारानी क्षेत्र में बैर की खेती: काजरी के प्रमुख वैज्ञानिक एसपीएस तंवर ने बताया कि इस प्रणाली को तैयार करने का मकसद यह है कि बारिश के कारण खेती में जो अनिश्चता है, उसे दूर किया जा सके. जिससे पूरे सालभर किसान खुश रह सके. बारानी क्षेत्र में चार हैक्टेयर का मॉडल विकसित किया गया है. इसमें खेत की मेड के चारों तरफ ऐस पेड़ लगाए जाएंगे, जिसके पत्ते पशुओं के काम आ सके.
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साथ ही बीच में फसलों का विविधिकरण यानी की तीन या चार फसलों का समन्वय किया जा सकेगा. इसमें बाजरा, मूंग, मोठ, ग्वार और अन्य शामिल है. इसके अलावा खेत के एक हिस्से में बारानी की उद्यानिकी फसलें लगाई जा सकेगी. इनमें बैर महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि बैर को दुबारा पानी की जरूरत नहीं होती है.
सिंचित में औषधीय पौधे का प्रयोग: डॉ. तंवर ने बताया कि सिंचित क्षेत्र में किसानों के बड़े रकबे नहीं होते हैं. छोटी जोत में दो से तीन हैक्टेयर या फिर बीघा वाले खेत की मेड पर पेड़ लगाए जा सकेंगे. करीब आधे हेक्टेयर के हिस्से में पूरे साल चारा भी उपलब्ध होगा. इनमें रिजका, नेपियर, फोडर आदि शामिल होंगे. वहीं, आय बढ़ाने के लिए औषधीय व सुंगधित फसलें भी लगाई जा सकती है. इनमें करीब आधा बीघा में अश्वगंधा व कैमोमाइल लग सकते हैं. फरवरी में कैमोमाइल की फसल आती है, जिसका तेल बहुत महंगा बिकता है. इस तरह के मॉडल से चार पशुओं के पालन और फसल से पूरे सालभर में चार लाख रुपए तक की कमाई संभव होगी.