जोधपुर. लूणी रेलवे स्टेशन अपने रसगुल्लों के लिए प्रसिद्ध है. इसके अलावा लूणी नदी के किनारे होने की वजह से यह क्षेत्र पूरे राजस्थान में जाना जाता है, लेकिन यहां की सियासत में न तो कोई मिठास है और न ही विकास की कोई बानगी. साथ ही जातीय खट्टापन शुरू से ही सीट के समीकरण को प्रभावित करता रहा है. जिले में सर्वाधिक मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में पटेल, राजपूत और जाट बहुलता में हैं. वहीं, विश्नोई चौथे नंबर पर हैं, लेकिन कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे स्वर्गीय रामसिंह विश्नोई चार दशक तक यहां से जीत दर्ज करते रहे. अब उनके परिवार की तीसरी पीढ़ी के रूप में उनके पौत्र व वर्तमान विधायक महेंद्रसिंह विश्नोई को कांग्रेस ने दूसरी बार मौका दिया है. साल 2003 से इनका मुकाबला जोगाराम पटेल से हो रहा है.
लूणी में तीन बार जीती भाजपा : जोगाराम पटेल ने 2003 में सामाजिक न्याय मंच से चुनाव लड़ा था, लेकिन नजदीकी मुकाबले में उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा था. वहीं, रामसिंह विश्नोई के निधन के बाद 2005 के उपचुनाव में भाजपा ने पटेल को मैदान में उतारा था. इस चुनाव में भाजपा जीती थी, तभी पटेल भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं और दो बार विधायक रह चुके हैं. इस बार राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने भी यहां से प्रत्याशी उतारा है. ऐसे में त्रिकोणिय मुकाबले के आसार बन रहे हैं. हालांकि, साल 1972 से अब तक यहां एक उपचुनाव सहित 12 चुनाव हुए हैं, जिसमें भाजपा को सिर्फ तीन बार जीत मिली है.
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जाटों से दोनों पार्टियों ने किया किनारा : लूणी में सर्वाधिक मतदाता जाट हैं, लेकिन इसके बावजूद राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियां इन्हें टिकट नहीं देती हैं. दरअसल, जाट बाहुल्य बिलाड़ा और भोपालगढ़ के आरक्षित होने के बाद भाजपा और कांग्रेस सिर्फ ओसियां से ही जाट प्रत्याशी को उतारती आ रही हैं. इसलिए जाट लूणी पर नजरें गड़ाए हुए हैं. साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि इस बार जाट मतदाताओं ने कांग्रेस से दूरी बनाने का मन बना लिया है, ताकि आगे उनका भी नंबर लग सके. कांग्रेस लूणी के अलावा लोहावट से विश्नोई को टिकट देती आ ही है, जबकि भाजपा सिर्फ फलौदी से विश्नोई प्रत्याशी को मैदान में उतारती आई हैं. ऐसे में इस बार का चुनाव लूणी के भविष्य की तस्वीर भी साफ करेगा.
लूणी के मुद्दे : शहर के नजदीक होने से यहां खेती के साथ-साथ इंडस्ट्रीज भी आई है, लेकिन इंडस्ट्रीज का कचरा और रसायनयुक्त पानी यहां के खेतों के लिए काल बन गया है. साथ ही नदी का पानी भी जहरीला होता जा रहा है. इसके अलावा क्षेत्र की जमीनें बंजर हो रही हैं. इंडस्ट्रीज के पानी के ट्रीटमेंट का मुदृा दो दशकों से गरमाया है, लेकिन कोई भी सरकार इसके निस्तारण के लिए प्रभावी कदम नहीं उठा रही है.
जातीय गणित : लूणी विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक 3 लाख 34 हजार 621 मतदाता हैं. कहने को सभी जातियां यहां हैं, लेकिन अनुमानित मतदाताओं की संख्या की बात करें तो 54 हजार जाट, 45 हजार पटेल, 30 हजार राजपूत, 30 हजार विश्नोई मुख्य रूप से हैं. इनके अलावा एससी-एसटी, माली, प्रजापत, मूल ओबीसी के भी मतदाता हैं.
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कांग्रेस प्रत्याशी महेंद्र सिंह विश्नोई का मजबूत पक्ष : दादा रामसिंह विश्नोई का नाम इन्हें विरासत में मिला है. विश्नोई के अलावा एससी-एसटी और अल्पसंख्यकों के बीच वो खासा लोकप्रिय हैं. इसके अलावा बीते पांच सालों में उन्होंने क्षेत्र में काम कराया और सरकार की गारंटी योजना का भी विश्नोई को लाभ मिल सकता है.
महेंद्र सिंह विश्नोई का कमजोर पक्ष : पांच साल में कई जगहों पर जातिगत ट्रांसफर पोस्टिंग का विवाद, जाटों की पूनिया की प्याऊ प्रकरण से नाराजगी और क्षेत्र में अवैध बजरी खनन व मादक पदार्थों की तस्करी से स्थानीय बाशिंदें परेशान हैं.
भाजपा प्रत्याशी जोगाराम पटेल का मजबूत पक्ष : भाजपा प्रत्याशी जोगाराम पटेल जाति से आते हैं. सभी वर्गों में उनका बेहतर संपर्क है. भाजपा के बड़े नेता क्षेत्र में लगातार सक्रिय होकर सभाएं कर रहे हैं. केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी यहां कई बार दौरा कर चुके हैं और यहां भाजपा के परंपरागत मतदाता हैं.
जोगाराम पटेल का कमजोर पक्ष : भाजपा के परंपरागत मतदाता कुम्हार प्रजापत समाज का प्रतिनिधि राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से मैदान में है. अगर वो वोट काटने में सफल रहा तो फिर यहां कांग्रेस को फायदा हो सकता है.
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विश्नोई वर्सेस पटेल : 43 साल के महेंद्रसिंह विश्नोई पहली बार 2018 में विधायक बने. युवा चेहरा और परिवार की विरासत के चलते लोगों ने उनका समर्थन किया. परिवार परंपरागत राजनीतिक से है, लेकिन उनका विधायक का अनुभव सिर्फ पांच साल का है. इससे पहले वो संगठन में सक्रिय नहीं थे. वहीं, 68 साल के जोगाराम पटेल पेशे से अधिवक्ता हैं और 1998 से राजनीति में सक्रिय हैं. साथ ही दो बार विधायक रह चुके हैं और एक बार संसदीय सचिव भी बने.