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कोटा के बाद सीएम सिटी का हाल भी बेहाल, 1 महीने में 146 बच्चों की मौत

प्रदेश में दिसंबर का महीना बच्चों के लिए काल बनकर सामने आया है. जहां कोटा के जेके लोन अस्पताल में 107 बच्चों की मौत हो चुकी है. वहीं अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृहनगर जोधपुर में तो जेके लोन से भी बड़ा बच्चों की मौत पर खुलासा हुआ है. यहां एक महीने के अंदर 146 बच्चों की मौत हो चुकी है.

जोधपुर एसएन मेडिकल कॉलेज
जोधपुर के एसएन मेडिकल कॉलेज
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Published : Jan 4, 2020, 3:15 PM IST

Updated : Jan 4, 2020, 5:46 PM IST

जोधपुर. पूरे देश में कोटा के जेके लोन हॉस्पिटल में में दिसम्बर महीने के दौरान हुई 107 बच्चों की मौत चर्चा का विषय बनी हुई है. लेकिन प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा इसे एक सामान्य घटना ही बता रहे हैं. वहीं कोटा से भी बड़ी त्रासदी मुख्यमंत्री के गृहनगर जोधपुर के डॉक्टर एसएन मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभाग में हो रही है. जहां हर दिन करीब 5 बच्चों की मौतें हो रहीं हैं.

जोधपुर में 1 महीने में 146 बच्चों की मौत

दिसंबर 2019 के आंकड़ों की बात करें तो यहां 146 बच्चों ने दम तोड़ा है. यहीं नहीं इनमें 98 नवजात है. आंकड़ा इसलिए ज्यादा है, क्योंकि साल 2019 में NICU, PICU में कुल 754 बच्चों की मौत हुई यानि हर माह 62 की मौत, लेकिन दिसम्बर में अचानक यह आंकड़ा 146 तक जा पहुंचा. ऐसे में यहां की व्यवस्थाएं संदेह के घेरे में हैं.

पढ़ें- 'बच्चों को बचाओ': भरतपुर में 1 साल में 114 नवजातों की मौत, कब सुधरेंगे हालात?

जोधपुर मेडिकल कॉलेज एमडीएम और उम्मेद अस्पताल में शिशु रोग विभाग का संचालन करता है. कोटा में हुई त्रासदी के बाद मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की ओर से तैयार की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है. खास बात यह है, कि ईटीवी भारत ने जब इस रिपोर्ट की पड़ताल की तो सामने आया, कि मेडिकल कॉलेज ने जो आंकड़े तैयार किये, उसने बच्चों की मौत का प्रतिशत विभाग में भर्ती होने वाले कुल बच्चों की संख्या से निकाला, जिसमें यह बहुत संतुलित नजर आता है. जबकि सर्वाधिक मौतें नियोनेटल केयर यूनिट (NICU) और पीडियाट्रिक आईसीयू (PICU) में हुई है.

जोधपुर में बच्चों की मौत पर जारी आंकड़े
जोधपुर में बच्चों की मौत पर जारी आंकड़े

2019 में शिशु रोग विभाग में कुल 47,815 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें 754 की मौत हुई. इस हिसाब से मौतें 1.57% हुईं. लेकिन 2019 में ही एनआईसीयू और पीआईसीयू में 5,634 गंभीर नवजात भर्ती हुए, जिनमें 754 की मौत हुई है. यह 13 फीसदी से भी ज्यादा है. अचरज इस बात का भी है, कि 2019 में वार्ड में एक भी मौत नहीं हुई. लेकिन विभाग ने मौतों का प्रतिशत निकलने में वार्डों में भर्ती होने वाले 42 हजार बच्चों की संख्या भी जोड़ दी. जिससे मौतों की संख्या कम नजर आए.

पढ़ें- केंद्रीय टीम पहुंची जेके लोन अस्पताल, डेथ ऑडिट कर सौंपेगी रिपोर्ट

बदनाम रहीं हैं व्यवस्थाएं

डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के अस्पताल की व्यवस्था पहले भी सवालों के घेरे में रही है. यहां 2011 में 30 से ज्यादा प्रसूताओं की संक्रमित ग्लूकोज से मौतें हुईं थीं. इसके बाद सरकार ने उमेद अस्पताल का दबाव कम करने के लिए एमडीएम अस्पताल में भी जनाना विंग शुरू की, लेकिन यहां पूरे पश्चिमी राजस्थान का दबाव रहता है.

जोधपुर. पूरे देश में कोटा के जेके लोन हॉस्पिटल में में दिसम्बर महीने के दौरान हुई 107 बच्चों की मौत चर्चा का विषय बनी हुई है. लेकिन प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा इसे एक सामान्य घटना ही बता रहे हैं. वहीं कोटा से भी बड़ी त्रासदी मुख्यमंत्री के गृहनगर जोधपुर के डॉक्टर एसएन मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभाग में हो रही है. जहां हर दिन करीब 5 बच्चों की मौतें हो रहीं हैं.

जोधपुर में 1 महीने में 146 बच्चों की मौत

दिसंबर 2019 के आंकड़ों की बात करें तो यहां 146 बच्चों ने दम तोड़ा है. यहीं नहीं इनमें 98 नवजात है. आंकड़ा इसलिए ज्यादा है, क्योंकि साल 2019 में NICU, PICU में कुल 754 बच्चों की मौत हुई यानि हर माह 62 की मौत, लेकिन दिसम्बर में अचानक यह आंकड़ा 146 तक जा पहुंचा. ऐसे में यहां की व्यवस्थाएं संदेह के घेरे में हैं.

पढ़ें- 'बच्चों को बचाओ': भरतपुर में 1 साल में 114 नवजातों की मौत, कब सुधरेंगे हालात?

जोधपुर मेडिकल कॉलेज एमडीएम और उम्मेद अस्पताल में शिशु रोग विभाग का संचालन करता है. कोटा में हुई त्रासदी के बाद मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की ओर से तैयार की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है. खास बात यह है, कि ईटीवी भारत ने जब इस रिपोर्ट की पड़ताल की तो सामने आया, कि मेडिकल कॉलेज ने जो आंकड़े तैयार किये, उसने बच्चों की मौत का प्रतिशत विभाग में भर्ती होने वाले कुल बच्चों की संख्या से निकाला, जिसमें यह बहुत संतुलित नजर आता है. जबकि सर्वाधिक मौतें नियोनेटल केयर यूनिट (NICU) और पीडियाट्रिक आईसीयू (PICU) में हुई है.

जोधपुर में बच्चों की मौत पर जारी आंकड़े
जोधपुर में बच्चों की मौत पर जारी आंकड़े

2019 में शिशु रोग विभाग में कुल 47,815 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें 754 की मौत हुई. इस हिसाब से मौतें 1.57% हुईं. लेकिन 2019 में ही एनआईसीयू और पीआईसीयू में 5,634 गंभीर नवजात भर्ती हुए, जिनमें 754 की मौत हुई है. यह 13 फीसदी से भी ज्यादा है. अचरज इस बात का भी है, कि 2019 में वार्ड में एक भी मौत नहीं हुई. लेकिन विभाग ने मौतों का प्रतिशत निकलने में वार्डों में भर्ती होने वाले 42 हजार बच्चों की संख्या भी जोड़ दी. जिससे मौतों की संख्या कम नजर आए.

पढ़ें- केंद्रीय टीम पहुंची जेके लोन अस्पताल, डेथ ऑडिट कर सौंपेगी रिपोर्ट

बदनाम रहीं हैं व्यवस्थाएं

डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के अस्पताल की व्यवस्था पहले भी सवालों के घेरे में रही है. यहां 2011 में 30 से ज्यादा प्रसूताओं की संक्रमित ग्लूकोज से मौतें हुईं थीं. इसके बाद सरकार ने उमेद अस्पताल का दबाव कम करने के लिए एमडीएम अस्पताल में भी जनाना विंग शुरू की, लेकिन यहां पूरे पश्चिमी राजस्थान का दबाव रहता है.

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Body:जोधपुर में हुई दिसम्बर में 146 बच्चों की हुई मौते



जोधपुर।

पूरे देश मे कोटा मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभाग में दिसम्बर में 104 बच्चों की मौत की खबर की चर्चा बनी हुई है। लेकिन प्रदेश सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा इसे एक सामान्य ही मोदी बता रहे हैं लेकिन कोटा से भी बड़ी नवजात ओं की मौत की त्रासदी मुख्यमंत्री के गृह नगर जोधपुर के डॉक्टर एसएन मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभाग में हो रही है जहां हर दिन करीब 5 बच्चों की मौतें रिकॉर्ड की जा रही है अगर दिसंबर 2019 के आंकड़ों की बात करें तो यहां 146 बच्चों ने दम तोड़ा है खास बात यह है कि इनमें 98 नवजात है। आंकड़ा इसलिए ज्यादा है कि वर्ष 2019 में NICU PICU  में कुल 754 बच्चों की मौत हुई। यानी कि हर माह 62 की मौत लेकिन दिसम्बर में अचानक यह सांख्य 146 तक जा पहुंची। ऐसे में यहां की व्यवस्थाए संदेह के घेरे में है। जोधपुर मेडिकल कॉलेज एमडीएम व उमेद अस्पताल में शिशु रोग विभाग का संचालन करता है। कोटा में  हुई त्रसदी के बाद मेडिकल कॉलेज प्रबंधन द्वारा तैयार की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। खास बात यह है कि ईटीवी भारत ने जब इस रिपोर्ट की पड़ताल की तो सामने आया कि मेडिकल कॉलेज ने जो आंकड़े तैयार किये उसने बच्चों की मौत का प्रतिशत विभाग भर्ती होने वाले कुल बच्चों की संख्या से निकाला जिसमे यह बहुत संतुलित नजर आता है। जबकि सर्वाधिक मौते नियोनेटल केअर यूनिट (NICU) व पीडियाट्रिक आईसीयू (PICU) में हुई है। 2019 में शिशु रोग विभाग में कुल 47815 बच्चे भर्ती हुए जिनमे 754 की मौत हुई। इस हिसाब से मौते 1.57% हुई। लेकिन 2019 में ही एनआईसीयू और पीआईसीयू में 5634  गंभीर नवजात भर्ती हुए जिनमे 754 की मौत हुई है। यह 13 फीसदी से भी ज्यादा है। अचरज इस बात का भी है कि 2019 में वार्ड में एक भी मौत नही हुई लेकिन विभाग ने मौतों का प्रतिशत निकलने में वार्डो में भर्ती होने वाले 42 हजार बच्चों की संख्या भी जोड़ दी। जिससे की मौतों की संख्या कम नजर आए। 




बदनाम रही है व्यवस्थाए

डॉ एसएन मेडिकल कॉलेज के असप्तालों की व्यसवस्थाये पहले भी सवालों के घेरे में रही है। यहां 2011 में 30 से ज्यादा प्रसूताओं की संक्रमित ग्लूकोज से मौते हुई थी इसके बाद सरकार ने उमेद अस्पताल का दबाव कम करने के लिए एमडीएम अस्पताल में भी जनाना विंग शुरू की लेकिन यहां पूरे पश्चिमी राजस्थान का दबाव रहता है।





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Last Updated : Jan 4, 2020, 5:46 PM IST
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